ग्वालियर। वह एकादशी जो निर्जला एकादशी के बाद और देवशयनी एकादशी से पहले आती है उसे योगिनी एकादशी कहते हैं। उत्तर भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष के दौरान और दक्षिण भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष के दौरान योगिनी एकादशी पड़ती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत जून अथवा जुलाई के महीने में होता है। आषाढ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी व्रत का विधान है, इस वर्ष 30 जून 2016 के दिन योगिनी एकादशी का व्रत किया जाना है। इस शुभ दिन के उपलक्ष्य पर विष्णु भगवान जी की पूजा उपासना की जाती है. इस एकादशी के दिन पीपल के पेड की पूजा करने का भी विशेष महत्व होता है।
योगिनी एकादशी व्रत पूजा विधि
इस एकादशी का महत्व तीनों लोकों में प्रसिद्ध है. इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मुक्ति प्राप्त होती है. योगिनी एकादशी व्रत करने से पहले की रात्रि में ही व्रत एक नियम शुरु हो जाते हैं. यह व्रत दशमी तिथि कि रात्रि से शुरु होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है. योगिनी एकादशी का व्रत करने से सारे पाप मिट जाते हैं और जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है।
एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है. स्नान करने के लिये मिट्टी का प्रयोग करना शुभ रहता है. इसके अतिरिक्त स्नान के लिये तिल के लेप का प्रयोग भी किया जा सकता है. स्नान करने के बाद कुम्भ स्थापना की जाती है, कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी कि प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है. और धूप, दीप से पूजन किया जाता है। व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए, दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रती को तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए और इसके अतिरिक्त व्रत के दिन नमक युक्त भोजन भी नहीं किया जाता है, इसलिये दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
जानकारों के अनुसार एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
योगिनी एकादशी व्रत कथा
योगिनी एकादशी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा जुडी़ हुई है जिसके अनुसार अलकापुरी नाम की नगरी में एक कुबेर नाम का राजा राज्य करता था, वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था। वह भगवान शिव पर हमेशा ताजे फूल अर्पित किया करता था। जो माली उसके लिए पुष्प लाया करता था उसका नाम हेम था हेम माली अपनी पत्नि विशालाक्षी के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन हेममाली पूजा कार्य में न लग कर, अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। जब राजा कुबेर को उसकी राह देखते -देखते दोपहर हो गई। तो उसने क्रोधपूर्वक अपने सेवकों को हेममाली का पता लगाने की आज्ञा दी।
जब सेवकों ने उसका पता लगा लिया, तो वह कुबेर के पास जाकर कहने लगे, हे राजन, वह माली अभी तक अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है। सेवकों की बात सुनकर कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। जब हेम माली राजा कुबेर के सम्मुख पहुंचा तो कुबेर ने उसे श्राप दिया कि तू स्त्री का वियोग भोगेगा मृत्युलोक में जाकर कोढी हो जायेगा। कुबेर के श्राप से वह उसी क्षण स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर आ गिरा और कोढी हो गया। स्त्री से बिछुड कर मृ्त्युलोक में आकर उसने महा दु;ख भोगे।
परन्तु शिव जी की भक्ति के प्रभाव से उनकी बुद्धि मलीन नहीं हुई और पिछले जन्म के कर्मों का स्मरण करते हुए, वह हिमालय पर्वत की तरफ चल दिया। वहां पर चलते -चलते एक ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। हेममाली ने उन्हें प्रणाम किया और विनय पूर्वक उनसे प्रार्थना की हेममाली की व्यथा सुनकर ऋषि ने कहा की मैं तुम्हारे उद्वार में तुम्हारी सहायता करूंगा। तुम आषाढ मास के कृ्ष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधि-पूर्वक व्रत करो इस व्रत को करने से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि के वचनों के अनुसार हेममाली ने योगिनी एकादशी का व्रत किया° व्रत के प्रभाव से वह फिर से अपने पुराने रुप में वापस आ गया और अपनी स्त्री के साथ प्रसन्न पूर्वक रहने लगा।
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व
योगिनी व्रत की कथा श्रवण का फल अट्ठासी सहस्त्र ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान माना गया है। इस व्रत से समस्त पाप दूर होते है, भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराकर पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए तथा भोग लगाना चाहिए. इस दिन गरीब ब्राह्माणों को दान देना कल्याणकारी माना जाता है।