ग्वालियर। जिला अस्पताल शिवपुरी में रविवार की दोपहर एक प्रसूता का जिला अस्पताल के गेट पर ही न केवल प्रसव हो गया, बल्कि वो अपनी नवजात जीवित बेटी को साड़ी में ही लपेटकर तपती दोपहरी में गेट के बाहर बैठी रही। इस दौरान दो बार आवारा कुत्ते ने नवजात को छीनने का प्रयास किया। 20 मिनट बाद अस्पताल से स्ट्रेचर लेकर आई महिलाकर्मी भी दर्शक दीर्घा में खड़ी हो गई। जब कोई मदद को आगे नहीं आया तो महिला के पति ने ही उसे उठाकर स्ट्रेचर पर लिटाया और परिजन स्ट्रेचर धकेलकरअस्पताल के भीतर लेबर रूम तक ले गए, लेकिन तब तक देर हो गई और नवजात की सांसें थम गईं।
व्यवस्था का यह दु:खद पहलू केवल शिवपुरी जिला अस्पताल में ही सामने नहीं आया, बल्कि प्रसव पीड़ा होने पर 108 एंबुलेंस भी नहीं आई तो महिला का पति उसे बाइक पर बिठाकर पोहरी अस्पताल ले गया।
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जहां ड्यूटी नर्स ने महिला की स्थिति ठीक न होने की बात कहकर शिवपुरी ले जाने की सलाह दी। यहां भी महिला के पति ने वाहन की मदद मांगी तो नर्स ने यह कहकर इनकार कर दिया कि यहां से वाहन नहीं मिलेगा। इतना सब होने के बाद अब जिम्मेदार अपनी कारगुजारियों पर पर्देदारी करने का प्रयास कर रहे हैं।
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पोहरी के ग्राम मचाकला में रहने वाली सीमा पत्नी राजेश कुशवाह को रविवार सुबह प्रसव पीड़ा शुरू हुई। महिला के पति राजेश ने बताया कि हमने 108 एंबुलेंस को कॉल किया, लेकिन वो नहीं आई। इसके बाद स्थिति बिगड़ते देख राजेश अपनी बुआ गुड्डी व पत्नी सीमा को बाइक पर बिठाकर पोहरी अस्पताल के लिए रवाना हुआ।
सुबह 10 बजे पोहरी पहुंचने पर वहां मिली नर्स ने राजेश से कहा कि इनका प्रसव यहां नहीं हो पाएगा, शिवपुरी ले जाओ। राजेश ने जब जननी एक्सप्रेस या 108 एंबुलेंस देने की बात कही तो उसे मना कर दिया गया। हालत लगातार बिगड़ती देख राजेश उसे अपनी बाइक पर बिठाकर शिवपुरी रवाना हो गया। बकौल राजेश, शिवपुरी बस स्टैंड के नजदीक रेलवे पटरी पर जब स्थिति अधिक बिगड़ गई, तो सीमा को ऑटो से जिला अस्पताल ले जाया गया।
अस्पताल के गेट पर ही सीमा का प्रसव हो गया। सीमा ने साड़ी के पल्लू में ही अपनी नवजात बेटी को लपेट लिया और गोद में लेकर बैठ गई। इस बीच उसके परिजनों ने अस्पताल के अंदर जब जानकारी दी तो लगभग 20 मिनिट बाद एक महिलाकर्मी स्ट्रेचर लेकर आई और गेट पर रख दिया, लेकिन किसी भी स्वास्थ्यकर्मी ने प्रसूता को उठाकर उस पर नहीं बिठाया। बाद में महिला के पति ने ही उसे उठाकर स्ट्रेचर पर बिठाया। राजेश का कहना है कि जब बच्ची गोद में थी तो जीवित थी, लेकिन अंदर लेवर रूम में ले जाने के बाद खबर मिली कि नवजात की मौत हो गई।
व्यस्त थे वाहन
अस्पताल में जब महिला को लाया गया तो उसका प्राथमिक उपचार देकर शिवपुरी ले जाने की सलाह दी। हमारी दोनों जननी एक्सप्रेस प्रसूता को लेने व छोडऩे गईं थीं, जबकि 108 एंबुलेंस कुपोषित बच्चों को लेने गई थी। यदि वो कुछ देर रुक जाते तो जननी एक्सप्रेस वापस आ जाती।
डॉ. चंद्रशेखर गुप्ता,बीएमओ पोहरी
आशा रोक देती हैं बाहर
गांव में पदस्थ सभी आशा शहर में निवास कर रही हैं और जब भी कोई प्रसूता आती है तो फोन करके उसे बाहर ही रुकने के लिए कह देती हैं। क्योंकि पर्चे पर नाम नहीं लिखा तो पैसे नहीं मिलेंगे। इसी फेर में प्रसूता बाहर रुक जाती हैं। हमारे अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की कमी है।
डॉ. एसएस गुर्जर, आरएमओ
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