ग्वालियर। बार की बात है जेसी मिल प्रबंधन मजदूरों को वेतन न देने पर अड़ा था, इसकी जानकारी उस समय के इंटक अध्यक्ष तारासिंह वियोगी को लगी। वे इंटक कार्यकर्ताओं की फौज लेकर जेसी मिल पहुंचे और प्रबंधन से कहा, आपको मजदूरों का वेतन देना पड़ेगा, यदि नहीं दिया तो हम एक भी अफसर को बाहर नहीं निकलने देंगे।
वे गेट पर ही धरने पर बैठ गए। आखिर प्रबंधन को उनके सामने झुकना पड़ा और मजदूरों को वेतन बांटा गया। वियोगी में एक खासियत यह थी कि उन्होंने मजदूरों के हक में लड़ाई लड़ी, अपने स्वार्थ के लिए कभी प्रबंधन से समझौता नही किया।
यह कहना था, उनके साथ रहने वाले व उनके मित्र मजदूर वर्ग के नेता कुलदीप सेंगर का। सेंगर बताते हैं, 2 अक्टूबर 1925 को जन्मे गांधीवादी वियोगी को शुरुआत से ही मजदूरों और छात्रों की राजनीति करने का शौक था।
वकालत की शिक्षा करने वाले वियोगी तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सरकार के कार्यकाल में नौ वर्ष तक श्रम कल्याण मजदूर मंडल के अध्यक्ष पद पर रहे, इससे पूर्व वे सन् 1980 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की सरकार में श्रम मंत्री के रूप में रहे।
बच्चों की पढ़ाई का खोला रास्ता
वियोगी के पुत्र मजदूर नेता गोपाल सिंह बताते हैं, श्रम कल्याण मंडल के अध्यक्ष के समय उनके मन में एक ही इच्छा रहती थी कि मजदूरों के बच्चे कैसे पढ़ें, इसके लिए उन्होंने छात्रवृत्ति दिलाने की परम्परा शुरू कराई, जो आज भी मजदूरों के बच्चों को छात्रवृत्ति के रूप में मिल रही है। इंटक का भवन जो हजीरे पर है, उसको दिलवाने में वियोगी की अहम भूमिका रही है।
अफसर को लौटाया वापस
सेंगर बताते हैं, एक बार मुझे और वियोगी को बिलासपुर अधिवेशन में जाना था। हम दोनों भोपाल से बिलासपुर के लिए जाने को स्टेशन पहुंचे, वे उस समय श्रम कल्याण मंडल के अध्यक्ष थे। मिश्रा नाम के एक अधिकारी से उन्होंने दो टिकट बिलासपुर के लिए मंगवाए। वियोगी का टिकट एसी का और उनका टिकट स्लीपर का वे ले आए, इस पर वे नाराज हुए और बोले, मेरा भी टिकट स्लीपर का लाओ, मुझे कुलदीप से अधिवेशन के बारे में कुछ चर्चा करनी है। वह टिकट वापस कराया, दोनों टिकट स्लीपर के आए।
उद्योगपतियों का ठुकराया निमंत्रण
सेंगर बताते हैं कि इंटक के अलावा मजदूर वर्ग की लड़ाई उन्होंने हमेशा लड़ाई लड़ी। उन्हें याद है कि जेसी मिल प्रबंधन के अलावा कई फैक्टरियों के मालिकों ने वियोगी को कई बार फोन पर या व्यक्तिगत मिलकर कहा कि आप हमारे यहां भोजन पर पधारें।
उन्होंने उनके भोजन के निमंत्रण को हमेशा ठुकराया। किसी मजदूर या गरीब ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया तो वे उसके यहां पहुंचे और उसके साथ बैठकर भोजन किया। यही उनकी खासियत मजदूरों में पहचान बन गई। मजदूर जैसे ही अपनी पीड़ा बताता था, वे उसके साथ प्रबंधन से चर्चा करने चल भी देते थे।
Hindi News / Gwalior / ग्वालियर के पुरखे: मजदूरों व छात्रों के सच्चे हितेषी थे तारासिंह वियोगी