ग्वालियर। देश में संगीत के कई समारोह होते हैं लेकिन तानसेन समारोह की बात ही कुछ अलग है। यहां हाजिरी लगाने के लिए हर कलाकार अपने आपको खुशकिस्मत समझता है। यहां सभी कलाकार श्रद्धा से आते हैं। यह कहना है मुरादाबाद घराने और ख्यात सरांगी वादक मुराद अली का। वे तानसेन समारोह में 6वीं सभा में प्रस्तुति देंगे, उन्होंने पत्रिका प्लस से फोन पर विशेष बातचीत के दौरान यह बात कही।
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सभी कलाकार आते हैं श्रद्धा से
दूसरी बार मिला मौका
एक सवाल के जवाब में मुराद अली ने कहा कि तानसेन समारोह में यह दूसरा मौका है इससे पहले पिछले साल संगत में बजाने का मौका मिला था लेकिन इस बार सोलो परफोर्म करने का अवसर मिला है। मियां तानसेन का जिसे आर्शीवाद मिल जाए तो युवा कलाकार के लिए इससे बड़ा आर्शीवाद क्या हो सकता है। तानसेन समारोह में तो जितनी बार भी अवसर मिले वह कम ही है।
बाबा बने पहले गुरु
जिस उम्र में बच्चे खेलते और कूदते हैं उस दौरान मुराद अली ने सारंगी थामकर सुरों को समझना शुरू कर दिया था। यही कारण है कि पिता ने उनकी संगीत के प्रति दीवानगी को समझकर खुद ही तालीम देना शुरू कर दिया। मुराद अली ने बाबा उस्ताद सिद्दकी अहमद खान और पिता गुलाम सबीर खान की देखरेख में संगीत की बारीकियां सीखीं।
सौभाग्य से मिलता है ऐसा मौका
संगीत सम्राट तानसेन के प्रति हर एक कलाकार की आस्था होती है। वह चाहता है कि एक बार उनके सम्मान में परफॉर्म करने का मौका जरूर मिले। लेकिन यह सौभाग्य सभी को नहीं मिलता। मैं ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करती हूं जो कि मुझे यह सौभाग्य मिला। यह बात शास्त्रीय संगीत गायिका मंजरी आलेगांवकर ने कही। वे तानसेन समारोह की दूसरी सभा में प्रस्तुति देंगी।
बचपन में ही उठाया तानपुरा
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जब बच्चे गुड्डे और गुडियां का खेल खेलते हैं उस समय उन्होंने तानपुरा के तारों से खेलना शुरू कर दिया था। परिवार में पिता शास्त्रीय संगीत गायक थे। जिसके कारण घर के माहौल में संगीत घुला हुआ था। जिससे उनका संगीत के प्रति लगाव बढ़ता चला गया। उन्होंने वमनराव देशपांडे से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इसके अलावा उन्होंने पंडित बवनराव हलदनकर से भी शिक्षा ग्रहण की। वर्तमान में पं. एमएस कानिटकर से जयपुर गवकी की शिक्षा ले रही हैं।
कॉमर्स की पढ़ाई की लेकिन नहीं की नौकरी
मंजरी आलेगांवकर बताती हैं कि उन्होंने बारहवीं की पढ़ाई के बाद स्नातक कामर्स से किया। लेकिन इसके बावजूद उनका मन कभी भी नौकरी के लिए नहीं हुआ जबकि उनके साथ की अधिकांश सहेली बैंकिंग फील्ड में चली गईं। उन्होंने एमए संगीत से किया और शास्त्रीय संगीत को आत्मसात कर लिया।
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