ग्वालियर@नरेन्द्र कुइया
मैं मध्यप्रदेश सरकार और संस्कृति विभाग का तहे दिल से शुक्रगुजार हूं, जिसने इस बार तानसेन समारोह में आने के लिए आमंत्रित किया। मुझे पुरानी बातों से कोई गिला-शिकवा नहीं है और अपनी मातृभूमि पर शहरवासियों के बीच प्रस्तुति देकर फक्र महसूस करुंगा। यह कहना है प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान का।
वे इस वर्ष के तानसेन समारोह में 17 दिसंबर को प्रस्तुति देने के लिए ग्वालियर आ रहे हैं। करीब 20 वर्षों से उन्हें आमंत्रण नहीं मिलने के कारण वे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो रहे थे। पत्रिका ने फोन पर उनसे विशेष बातचीत की।
समय बड़ा बलवान है
जब उस्ताद अमजद अली से पूछा गया कि आप इतने वर्षों से तानसेन समारोह में क्यों नहीं आ रहे थे? तो उनका कहना था कि मुझे बुलावा नहीं भेजा जाता था। इस वजह से मैं कार्यक्रम में शिरकत नहीं करता था, पर अब मुझे किसी तरह की कोई शिकायत नहीं है। समय बड़ा बलवान है। जब समय आता है तो सब काम ठीक हो जाते हैं। बस मैं यही चाहता हूं कि आगे भी मेरे दोनों पुत्र अमान या अयान या फिर मुझे हर वर्ष इस कार्यक्रम में बुलाया जाए और यही मेरी इल्तिजा भी है। हममें से कोई भी यहां जरूर आना चाहेगा।
तानसेन की परंपरा के गुलाम
2001 में तानसेन अवॉर्ड से सम्मानित किए जा चुके उस्ताद अमजद अली ने कहा कि मैं और मेरा परिवार तानसेन की परंपरा के गुलाम हैं। तानसेन हमारे गुरु के गुरु थे। हम जो भी बजाते हैं वह तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरीदास का आशीर्वाद है। इसी शमा को लेकर पूरी दुनिया में सरोद और शास्त्रीय संगीत का प्रचार कर रहे हैं। इस बार की मेरी प्रस्तुति तानसेन मियां और शहरवासियों को समर्पित होगी।
Hindi News / Gwalior / इस वर्ष सरकार और संस्कृति विभाग के शुक्रगुजार हैं उस्ताद अमजद अली खान, जानिये क्यों?