ग्वालियर। उज्जैन में सिंहस्थ 2016 का पहला शाही स्नान आयोजित किया गया, जिसमें विभिन्न अखाड़ों के साधुओं सहित लाखों श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। शाही स्नान के साथ ही सिंहस्थ 2016 का शुभारंभ हो गया। ऐसे में हम आपको सिंहस्थ और उससे जुड़ी कुछ खास रस्मों के बारे बताने जा रहे हैं।
ग्वालियर से आती है पगड़ी तो शुरू होता है सिंहस्थ
सिहंस्थ की शुरूआत उज्जैन नगरी के महाराजाधिराज महाकाल के कोतवाल कालभैरव को पगड़ी पहनाकर की जाती है। इस रस्म की शुरूआत तत्कालीन सिंधिया शासक महादजी सिंधिया ने शुरू करवाई थी, जो आज भी जारी है। आज भी ग्वालियर में रहले वाले मोहम्मद रफीक की बनाई पगड़ी पहने बिना सिंहस्थ की शुरूआत नहीं होती।
गंगा-जमुना तहजीब की मिसाल है सिंहस्थ
सिंहस्थ सभी महाकुंभों में सबसे ज्यादा खास है, क्योंकि ये देश में गंगा जमुना तहजीब की सबसे बड़ी मिसाल है। हिन्दुओं के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ की शुरूआत एक मुस्लिम द्वारा बनाई गई पगड़ी से होती है। देश में दो धर्मो का इतना गहरा नाता कहीं और देखने को नहीं मिलता।
पेशवाओं की पगड़ी बनाते थे इनके पूर्वज
ग्वालियर के मोहम्मद रफीक के पूर्वज महाराष्ट्र के पुणे में रहते थे और वहां पेशवाओं की पगड़ी बनाने का काम करते थे। मोहम्मद रफीक के पूर्वज सिंधिया शासकों के साथ ग्वालियर आए और आज भी यहां सिंधिया राजघराने की पगडिय़ां बनाते हैं। वर्तमान में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके पुत्र महाआर्यमन सिंधिया की पगडिय़ा बना रहे हैं।
इस सिंधिया शासक ने बनवाया था महाकाल मंदिर
ग्वालियर से पहले उज्जैन सिंधिया शासकों की राजधानी थी। 1726 में तत्कालीन सिंधिया शासक रानौजी सिंधिया ने मालवा को जीतकर यहां सिंधिया साम्राज्य की नींव रखी और उज्जैन को अपनी राजधानी बनाया था, जो 18वीं सदी की अंत तक सिंधियाओं की राजधानी रही और इस दौरान सिंधिया शासकों ने विभिन्न मंदिरों का निर्माण करवाया। सिंधिया शासकों की स्थापत्य कला में सबसे अनूठा रहा महाकाल मंदिर जिसे उज्जैन के महाराजाधिराज की उपाण्धि दी गई।
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