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ग्वालियर

महिलाओं पर बढ़ रहा अत्याचार, फिर भी नहीं हो रहे मामले दर्ज

महिलाओं पर होने वाले अपराधों के आंकड़े में शिवपुरी ग्वालियर-चंबल संभाग में दूसरे नंबर पर है। यह इसलिए भी वास्तविक हैं, क्योंकि यहां महिलाओं को सशक्त करने के प्रयास कागजों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं।

ग्वालियरMar 08, 2016 / 04:46 pm

rishi jaiswal


शिवपुरी। एक तरफ जहां महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए जाने, उन्हें सशक्त करने के दावे तो किए जाते हैं, लेकिन वास्तविक धरातल पर स्थिति इसके विपरीत है। महिलाओं पर होने वाले अपराधों के आंकड़े यह बयां कर रहे हैं कि ग्वालियर-चंबल संभाग में शिवपुरी दूसरे नंबर पर है। यह इसलिए भी वास्तविक हैं, क्योंकि यहां महिलाओं को सशक्त करने के प्रयास कागजों से बाहर नहीं निकल पा रहे।


जहां एक तरफ महिलाओं पर होने वाले अपराधों में कमी नहीं आ रही, वहीं दूसरी ओर उन्हें सशक्त करने वाले जिम्मेदार हर बार पुरस्कार ले रहे हैं। खास बात यह है कि महिला अपराधों के मामले में जहां एक तरफ जिला दूसरे नंबर पर है, लेकिन जिला स्तर पर बनाई गई उत्पीडऩ समिति पर अभी तक एक भी मामला सामने नहीं आया।

विभागों में नहीं हैं उत्पीडऩ समिति
शासन का आदेश है कि सभी शासकीय विभागों में महिला उत्पीडऩ समिति होना चाहिए। इस समिति में उसी विभाग की महिला कर्मचारी को प्रमुख बनाना था। ताकि विभाग में किसी भी महिला कर्मचारी के साथ यदि कोई दुव्र्यवहार होता है, तो यह समिति उसकी शिकायत की जांच कर अपनी रिपोर्ट वरिष्ठ अधिकारियों को दे। लेकिन जिले के किसी भी शासकीय विभाग में यह समिति बनी ही नहीं है। यही वजह है कि महिला कर्मचारी जब भी प्रताडि़त होती है तो वो अपने परिजनों के साथ मिलकर अपने हक की लड़ाई लडऩे के लिए यहां-वहां भटकती रहती हैं।


महिलाओं पर हुए अत्याचारों के कुछ उदाहरण
1. गोवर्धन थाना अंतर्गत ग्राम केमरारा में एक आदिवासी महिला के साथ जो अमानवीय कृत्य किया गया था। यह मामला जिला ही नहीं प्रदेश की राजधानी तक चर्चित रहा। 
2. खनियांधाना की एक आदिवासी महिला के पति ने उसे जलाने का प्रयास किया था। वो किसी तरह बचकर जब शिवपुरी में शिकायत करने आई, तो उसे निराश्रित भवन में बच्चों सहित शरण दी गई। उस महिला ने मंगलम के एक पदाधिकारी पर गंभीर आरोप लगाते हुए खुदकुशी करने का जब प्रयास किया, तो उसे वहां से भी भगा दिया गया। यानि जिला मुख्यालय पर ऐसी महिलाओं को रखने की कोई व्यवस्था नहीं है।


3. शासकीय विभागों में कार्यरत महिला कर्मचारियों ने अपने ही विभाग के पुरुष कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाए। लेकिन उन मामलों को जांच के नाम पर लटका दिया गया। फिर चाहे रेलवे की महिला कर्मी का मामला हो या फोरेस्ट एवं अन्य विभाग के।
4. जिले में होने वाले प्रसव के दौरान 80 फीसदी महिलाओं में खून की कमी निकल रही है। यानि महिलाओं को घरों में काम अधिक करना पड़ रहा है, लेकिन उन्हें पोषक तत्व खाने को नहीं मिल रहे।


महिलाओं ने अच्छा स्थान पाया है, सरकार ने उनकी सुरक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं। जरूरत इस बात की महिलाएं जागरुक होकर उनका उपयोग करना सीखें। महिलाएं आत्मविश्वास के साथ काम करें और यदि कोई उन्हें प्रताडि़त करे तो उसका मुखर होकर विरोध करें। महिलाएं इस बात का भी ध्यान रखें कि अत्याचार सहन करना भी अपराध है।
प्रोफेसर संध्या भार्गव, पीजी कॉलेज शिवपुरी


महिला जब भी किसी क्षेत्र में आगे बढ़ती है तो उसे जज किया जाता है, जबकि पुरुष को सीधे ही एक्सेप्ट कर लिया जाता है। समाज में व्याप्त इस मानसिकता को बदलने की शुरुआत परिवार से ही करें। सरकार ने कानून भी बनाए हैं, लेकिन इसके लिए महिला को स्वयं जागरुक होना पड़ेगा।
खुशी खान, प्रिंसीपल रेडिएंट कॉलेज


शासन के सख्त आदेश थे कि सभी विभागों में ये समितियां बनाई जाएं। मुझे भी लगता है कि शायद शासकीय विभागों में ये समितियां नहीं बनी हैं। जिला स्तरीय उत्पीडऩ समिति की मैं ही अध्यक्ष हूं। मेरे पास अभी तक एक भी मामला किसी भी विभाग का नहीं आया। फोरेस्ट का एकमात्र मामला आया था, लेकिन वो भी कोर्ट में चला गया। महिलाएं आगे तो निकल कर आ रही हैं, लेकिन उन्हें हर क्षेत्र में खुद को प्रूफ करने के लिए डेढ़ गुना मेहनत करनी पड़ रही है।
नीतू माथुर, एडीएम एवं जिला उत्पीडऩ समिति अध्यक्ष 

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