ग्वालियर। साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है। बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है। निर्जला एकादशी व्रत (16 जून) को करते समय श्रद्धालु लोग भोजन ही नहीं बल्कि पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं।
मान्यता के अनुसार जो श्रद्धालु साल की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरी सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता हैं।
निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी और भीमसेनी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पाण्डवों में दूसरा भाई भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौकीन थे और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं था, इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाता था। भीम के अलावा बाकि पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान था। भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
जानिए, क्यों वर्जित है एकादशी व्रत में अन्न
सनातन धर्म में कई प्रकार के व्रत और त्योहारों के माध्यम से मनुष्यों के नैतिक उत्थान का मार्ग बताया गया है। इन सबमें एकादशी व्रत का महात्म्य सबसे ज्यादा है। हर वर्ष में 24 एकादशी (हर महीने दो एकादशी) आती हैं। अधिकमास या मलमास में इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। धर्माचार्यों के अनुसार एकादशी के व्रत में अन्न खाने की मनाही है। आइए जानते हैं कि आखिर एकादशी व्रत के दिन अन्न को क्यों वर्जित बताया गया है?
पद्मपुराण की कथा
18 पुराणों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद्मपुराण के चौदहवें अध्याय में एकादशी की व्याख्या व्यासदेव ने जैमिनी ऋषि के समक्ष की है। व्यासजी के अनुसार समस्त भौतिक जगत की उत्पत्ति करते हुए परम पुरुष भगवान विष्णु ने पापियों को दण्डित करने के लिए पाप का मूर्तिमान रूप लिए एक व्यक्तित्व की रचना की। इसे पापपुरुष के रूप में पहचाना गया। पापपुरुष के दोनों हाथ और दोनों पांव की रचना अनेकों पाप कर्मों से की गई। वहीं इस पापपुरुष को नियंत्रित करने के लिए यमराज की उत्पत्ति अनेकों नरकीय ग्रह प्रणालियों की रचना के साथ हुई।
वे जीवात्माएं जो अत्यंत पापी होती हैं उन्हें यमराज के पास भेज दिया जाता है जिससे यमराज, जीव को उसके पापों के भोगों के अनुसार नरक में पीड़ित होने के लिए भेज देते हैं। इस प्रकार जीवात्माएं अपने कर्मों के अनुसार सुख और दुख भोगने लगीं।
इधर इतनी सारी जीवात्माओं को नरक में कष्ट भोगते देख जगद्पालक विष्णु को भी बुरा लगने लगा। तब उनकी सहायतावश भगवान ने अपने स्वयं के स्वरूप से पाक्षिक एकादशी के रूप को अवतरित किया। इस कारण एकादशी एक चंद्र पक्ष के पंद्रहवें दिन उपवास करने के व्रत का व्यक्तिकरण है। इस प्रकार एकादशी और भगवान श्री विष्णु अलग-अलग नहीं हैं।
वहीं जब विभिन्न पापकर्मी जीवात्माएं एकादशी व्रत का नियम पालन करने लगीं और इसकी वजह से उन्हें तुरंत ही बैकुंठ धाम की प्राप्ति होने लगी तब पापपुरुष को अपने अस्तित्व पर ही संकट दिखलाई देने लगा। वह भगवान विष्णु के समीप पहुंचा और प्रार्थना करते हुए बोला,’हे प्रभु, मैं आपके द्वारा निर्मित आपकी ही कृति हूं और मेरे माध्यम से ही आप घोर पापकर्मों वाले जीव को अपनी इच्छा से पीडि़त करते हैं, परन्तु अब एकादशी के प्रभाव से मेरा ह्रास हो रहा है। आप कृपा करके मेरी रक्षा करें। मुझे ऐसा कोई स्थान ज्ञात नहीं है जहां मैं एकादशी के भय से मुक्त रह सकूं। हे प्रभो, कृपा कर मुझे ऐसे स्थान का पता बताएं जहां मैं निर्भीक होकर वास कर सकूं।’
पापपुरुष की स्थिति पर विचार करते हुए भगवान विष्णु ने कहा,’हे पापपुरुष, उठो, अब और शोकाकुल मत हो, केवल सुनो और मैं तुम्हें बताता हूं कि तुम एकादशी के पवित्र दिन पर कहां निवास करते हो। एकादशी का दिन जो त्रिलोक में लाभ देने वाला है, उस दिन तुम अन्न जैसे खाद्य पदार्थ की शरण में जा सकते हो। अब तुम्हारे पास शोकाकुल होने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि मेरे ही स्वरूप में श्री एकादशी देवी अब तुम्हें अवरोधित नहीं करेंगी।
पापपुरुष को आश्वासन देने के बाद भगवान श्री विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। भगवान विष्णु के निर्देशानुसार संसार भर में जितने भी पापकर्म पाए जा सकते हैं, वे सब इन (अनाजों में) खाद्य पदार्थों में निवास करते हैं, इसलिए वे मनुष्य जो कि जीवात्मा के आधारभूत लाभ के प्रति सजग होते हैं वे कभी एकादशी के दिन अन्न नहीं ग्रहण करते हैं।