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ग्वालियर

#World Heritage Day: यह है मोहम्मद गौस का मकबरा, जिसकी पहचान हैं ये “जालियां”

धरोहरों के मामले में शहर सबसे अनूठा है। यहां हजारों वर्षों पुराना स्थापत्य तो अनोखा है ही। इसके साथ ही उस काल में किए गए शिल्प कौशल की बात ही अलग है।

ग्वालियरApr 18, 2016 / 02:51 pm

Gaurav Sen

Mohammad gaus ka maqbra

Mohammad gaus ka maqbra


ग्वालियर। धरोहरों के मामले में शहर सबसे अनूठा है। यहां हजारों वर्षों पुराना स्थापत्य तो अनोखा है ही। इसके साथ ही उस काल में किए गए शिल्प कौशल की बात ही अलग है। यह कई अमूल्य धरोहरों में पत्थर की जालियों के रूप में आज भी दिखाई देता है। ये जालियां किले स्थित मानसिंह पैलेस से दिखाई देती है, लेकिन इनकी खूबसूरती १५वीं शताब्दी में बने मोहम्मद गोस के मकबरे में सर्वाधिक उभरकर दिखती है। जिन्हें ग्वालियर के साथ राजस्थान से आए कारीगरों ने तैयार किया है।




ज्यामिति का है आकार
शहर में जालियों के स्थापत्य पर शोध कर चुकीं डॉ. आरती शुक्ला कहती हैं कि यूं तो मानसिंह पैलेस की जालियां खासी आकर्षक हैं, लेकिन मोहम्मद गोस के मकबरे का जवाब नहीं है। जहां ज्यामिति आकार की करीब पचास जालियां दिखाई देती हैं।
 

इनमें त्रिभुज, चतुर्भुज, पंचकोण, षटकोण आदि आकार दिखाई देते हैं। ये दीवारों से लेकर खिड़कियों और सीढि़यों पर नजर आती हैं। जब इनसे निकलकर धूप मकबरे में प्रवेश करती है, तो वो नजारा देखते ही बनता है। इसके इतर जब हम मानसिंह पैलेस की बात करते हैं तो वहां फूल और पत्तीदार नक्काशी की जालियां दिखती हैं, जो खासी कलात्मक हैं। ये सारी जालियां लाल पत्थर और सेंड स्टोन से तैयार की गई हैं।



सिंधिया काल में भी हुआ भरपूर प्रयोग
डॉ. आरती बताती हैं कि सिंधियाओं के शासनकाल में जालियों का खूब काम हुआ है। जिसमें सेंड स्टोन और मार्बल की जालियां दिखती हैं। 
जहां सेंड स्टोन की जालियां ज्यादा पतली और आकर्षक हैं, वहीं मार्बल थोड़ा मोटा है। हालांकि ये भी खूबसूरत दिखता है। सिंधियाकाल में जनकोजीराव और जयाजीराव सिंधिया के शासन में जालियों पर ज्यादा काम हुआ हैं। इनके काल में बनीं छत्रियों में इसे साफ देखा जा सकता है। छत्रियों में कलात्मक और ज्यामिति दोनों का उपयोग हुआ है।
मूर्तिकला से ही है प्रेरित
राजामान सिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. बलवंत भदौरिया कहते हैं कि शहर में मूर्तिकला दो हजार वर्ष पुरानी है। पहली शताब्दी की मूर्तियां पवाया से निकली हैं। मूर्ति का काम करने वाले कारीगरों ने ही जालियों का काम किया है, जिनकी पीढि़यां गेंडेवाली सड़क में मूर्ति बनाने का कार्य अभी भी कर रही हैं। पत्थरों की नक्काशी में ये माहिर थे। इसलिए इतनी आकर्षक जालियां बना सके। 

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