ग्वालियर। ग्वालियर हमेशा से ही समृद्धशाली पुरातात्विक धरोहरों से भरा-पूरा रहा है। लेकिन यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को अफसोस तब होता है, जब उन्हें इस धरोहर की कोई जानकारी नहीं मिल पाती। विभागीय लापरवाही का नमूना यह है कि ग्वालियर की कई पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहरों पर उसकी पहचान के लिए कोई शिलालेख व नोटिस बोर्ड तक नहीं है। जानकारों के अनुसार इसके चलते शहर में आने वाले पर्यटकों की संख्या भी घटती जा रही है।
यह है परेशानी
जानकारी के अभाव में यह धरोहर कितनी पुरानी है, या किसने बनवाई है व उसका कितना महत्व है, पर्यटक नहीं जान पाते। इसके लिए उन्हें स्थानीय गाइडों की जेब गरम करके ही स्मारकों के इतिहास की जानकारी मिल पाती है।
ग्वालियर शहर के आसपास कई ऐसे ऐतिहासिक महत्व के स्थल हैं, जो चौथी-पांचवीं सदी व सिंधिया स्टेट के काल में निर्मित होने के बाद वर्तमान में देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए अनजान बने हुए हैं। इन स्थलों पर उनके निर्माण काल, वास्तुशैली, निर्माणकर्ता व उनके इतिहास के बारे में जानने के लिए एक भी शब्द अंकित नहीं है।
इन स्थलों पर तक अंकित नहीं है जानकारी
1. सास-बहू मंदिर
ग्वालियर के किले पर सहस्त्रबाहु मंदिर, जिसे वर्तमान में सास-बहू मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां पहले मंदिर के इतिहास की कुछ जानकारी एक शिला पट्टिका पर अंकित थी। लेकिन कुछ समय से यह शिला पट्टिका राज्य संरक्षित इस स्मारक से हटा दी गई है। जिससे देशी-विदेशी पर्यटकों को मंदिर की सही जानकारी नहीं मिल पा रही है।
2. मितावली
मितावली पर भी चौंसठ योगिनी का मंदिर अपनी पहचान से अनजान है। मितावली में घूमने आए कई देशी-विदेशी पर्यटकों का कहना है कि यूं तो मितावली के मंदिर देखने में बहुत ही खूबसूरत हैं, लेकिन यहां कोई शिलालेख व बोर्ड न होने के कारण यहां के वास्तुकला व इतिहास की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाती।
3. महाराज बाड़ा: महाराजबाड़े को नो-व्हीकल जोन बनाने के साथ-साथ हैरिटेज की कार्ययोजना भी तेजी से विकास कर रही है। इसे जल्द ही हैरिटेज जोन घोषित करने के बाद सात शैलियों में बनी इन ऐतिहासिक इमारतों की जानकारी सूचना पटल पर अंकित कराई जाएगी। जिससे देशी-विदेशी पर्यटक इन भवनों के स्थापत्य की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
4. इन स्थलों में शहर का हृदय स्थल कहा जाने वाला महाराज बाड़ा जिसे लोग जयाजी चौक के नाम से भी जानते हैं। इस क्षेत्र की स्थापना 1843-1886 में जयाजीराव सिंधिया ने की थी। जिसके निर्माण का उद्देश्य लोगों को यूरोपियन देशों की स्थापत्य कला से परिचित कराना था।
यहां स्थित ब्रिटिश शैली (इंग्लिश शैली) की विक्टोरिया मार्केट(आग लगने की घटना के बाद इसका पून: उसी रूप में निर्माण किया जा रहा है), राजपूत शैली का देवघर प्रवेश द्वार, इटेलियन शैली का पोस्ट ऑफिस, रोमन शैली में स्टेट बैंक भवन, फ्रेंच शैली में स्टेट बैंक का एटीएम भवन, साऊदी अरेबियन शैली में टाउन हॉल व पर्सियन शैली में शासकीय मुद्रणालय स्थापित है।
स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण इन सातों भवनों की कोई भी जानकारी महाराजबाड़े पर अंकित नहीं है और न ही यहां कोई बोर्ड लगा है, जिससे पर्यटकों को इन भवनों के बारे में जानकारी मिल सके। महाराजबाड़े के बीचोबीच स्थित जयाजीराव की प्रतिमा पर भी कोई शिलालेख नहीं है।