scriptयोग, रोग दूर करने की एक भारतीय विधा | international yoga day 2016, Yoga indian mode of eliminating disease | Patrika News
ग्वालियर

योग, रोग दूर करने की एक भारतीय विधा

योग प्रकृति से जुडी हुई वो सुंदरतम् विधा है जिससे व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। अत: योग एक जीवन जीने की वह कला है जिससे हम अपने अस्तित्व, अपनी चेतना से गहरे जुडते हैं। 

ग्वालियरJun 20, 2016 / 04:33 pm

rishi jaiswal

Indian Yoga

Indian Yoga


ग्वालियर। योग भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की एक प्राचीन विधा है। इसकी मूल अवधारणा शरीर को चुस्त-दुरुस्त बनाये रखना है। माना जाता है कि व्यक्ति का शरीर जब से बना है उस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमें प्रकृति के कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। योग प्रकृति से जुडी हुई वो सुंदरतम् विधा है जिससे व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है। अत: योग एक जीवन जीने की कला, योग एक जीवन जीने की विधा, योग एक वो परिकल्प जिससे हम अपने अस्तित्व, अपनी चेतना से जुडते हैं गहरे। जानकारों के अनुसार आज के परिपेक्ष्य में भी योग की उतनी ही आवश्यकता है जितनी सदियों पहले थी। मतलब व्यक्ति का शरीर, व्यक्ति का मन, व्यक्ति का चित्त, व्यक्ति की चेतना का स्वरूप तो एक ही जैसा बना रहता है बाहर की परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं और बदलती हुई परिस्थितियों के परिवेश में देखा जाए तो योग और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।


कई विशेषज्ञों के मुताबिक आज जो चारों तरफ प्रदूषण है, जो आज की प्रतियोगिताएं हैं, प्रतिस्पर्धाएं हैं, उन प्रतियोगिताओं और प्रतिस्पर्धाओं में जो व्यक्ति आगे बढऩा चाहता है तो उसके लिए भी योग एक बहुत सशक्त माध्यम है जो कि आंतरिक उर्जा प्रदान करता है। योग करने से रोगों का निवारण होता है। शरीर का संपूर्ण विकस और तनावमुक्त जीवन होता है। चित्त की वृत्तियों को अनुशासित करना ही योग है। मन में असीम शक्ति है, पर सबसे अधिक दुरुपयोग हम इसी शक्ति का करते हैं। इससे 95% मानसिक शक्ति व्यर्थ चली जाती है। मन जितना शक्तिशाली होता है, उतना ही चंचल और अस्थिर भी होता है और इस चंचलता को नियंत्रित करने की योग से बेहतर शायद ही कोई दूसरी विधा हो। योग मन को नियंत्रित कर उसे दिशांतरित करने की तकनीक देता है।


मानसिक समस्याओं का शरीर पर प्रभाव 
यदि मन के तनाव का विज्ञान समझें तो पाएंगे कि तनाव चाहे भावनात्मक हो या मानसिक, यह हमारी पीयूष ग्रंथि को प्रभावित करता है। यह ग्रंथि शरीर की मुख्य ग्रंथि है। इस कारण यह ग्रंथि असंतुलित हार्मोन निकालने लगती है, जिसके असंतुलित हार्मोन स्राव के कारण थाइरॉएड ग्रंथि भी असंतुलित हो जाती है। इससे पूरे शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है और उसे हाइपो या हाइपर थाइरॉएडिज्म का शिकार होना पड़ता है। इसी तरह अधिक तनाव से हृदय गति तथा पल्स गति बड़ जाती है, क्योंकि उस समय शरीर की कोशिकाओं को अधिक रक्त की आवश्यकता होती है। हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है, जिससे थकते-थकते एक दिन शरीर रोगी हो जाता है। इसका परिणाम हाइपरटेंशन और हृदय रोग होता है। अधिक मानसिक तनाव से हमारी सेक्स ग्रंथियां भी असंतुलित हार्मोन निकालने लगती हैं, जिससे नपुंसकता या अति सक्रियता जैसी समस्याएं जन्म लेने लगती हैं।


मानसिक स्वास्थ्य के लिए उपयोगी आसन 
मन को ठीक करने के लिए यौगिक क्रियाएं जैसे पद्मासन, वज्रासन, शीर्षासन, सर्वांगासन, हलासन, भुजंगासन, जानुशिरासन, त्रिकोणासन तथा उष्ट्रासन आदि उपयोगी हैं। इसके अलावा नाड़ी शोधन, उज्जायी प्राणायाम वं ध्यान का नियमित अभ्यास तन व मन दोनों के लिए उपयोगी है। योग का नियमित अभ्यास स्मरणशक्ति को बढ़ाता है। याददाश्त क्षमता दुरुस्त रखता है। साथ ही रक्त संचालन व पाचन क्षमता में वृद्धि, नसों व मांसपेशियों में पर्याप्त खिंचाव उत्पन्न करने के अलावा योग से मस्तिष्क को शुद्ध रक्त मिलता है। इसके लिए खासतौर पर सूर्य नमस्कार, शीर्षासन, पश्मिोत्तानासन, उष्ट्रासन व अर्धमत्स्येन्द्र आसन आदि करने चाहिए।


1. हलासन : जमीन पर पीठ के बल लेट जाइये। दो गहरे सांस लें व छोड़े। इसके बाद दोनों पैरों को जमीन से ऊपर उठाते हुए धीरे-धीरे सिर के पीछे जमीन पर ले जाएं। कमर को जमीन से ऊपर उठाने के लिए हाथ का सहारा ले सकते हैं। हाथों को पीठ के पीछे जमीन पर सामान्य अवस्था में रखें। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुक कर पूर्व स्थिति में आ जाएं। सामान्य गति से श्वास लें व छोड़ें।
सीमाएं: उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा स्लिप डिस्क एवं स्पॉन्डिलाइटिस के रोगी अभ्यास न करें। 
2. उज्जायी प्राणायाम : पद्मासन, सुखासन या कुर्सी पर रीड़, गले व सिर को सीधा करके बैठिए। दोनों हाथों को घुटनों पर सहजता से रखें। जिह्वा को अग्रभाग से मोड़कर ऊपरी तालू से सटाएं। गले की श्वास नली को थोड़ा संकुचित कर नासिका द्वारा एक गहरी, लंबी व धीमी श्वास अंदर लें। श्वास लेते समय गले से सीऽ सीऽ सी की आवाज निकलती है, जबकि नाक से सांस छोड़ते समय ह ऽ ह ऽ हऽ ह की आवाज निकलती है। यह उज्जायी प्राणायाम की एक आवृत्ति है। शुरू में 15 से 20 आवृत्तियों का अभ्यास करें। धीरे-धीरे आवृतियों को बड़ा कर 120 तक करें। 
3. ध्यान: पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर रीड़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाइये। हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें। अब दस गहरी श्वास लें और छोड़ें। 10-15 मिनट तक इसका नियमित अभ्यास करें। अभ्यास के दौरान मन को बार-बार विचारों से हटा कर सांसों पर केंद्रित करें। कुछ समय बाद मन एकाग्र होने लगता है व तनाव-अवसाद से मुक्ति मिलने लगती है।
4. योगनिद्रा: यह मानसिक तनाव और भावनात्मक असंतुलन को दूर करने में मददगार है। योग निद्रा व शिथलीकरण के प्रतिदिन 10 मिनट के अभ्यास से रोजमर्रा के तनाव चेतन तथा अवचेतन मन से हट जाते हैं।
5. सर्वांगासन :  पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दोनों पैरों को जमीन से ऊपर उठा कर हल्के झटके से नितम्ब को भी जमीन से ऊपर उठाएं। कमर पर हाथों का सहारा देते हुए गर्दन के नीचे का सारा भाग जमीन से ऊपर उठा कर एक सीधी रेखा में करें। अंतिम स्थिति में पूरा शरीर गर्दन से 90 डिग्री पर ऊपर उठता है। सर्वांगासन की इस स्थिति में आरामदायक समय तक रुकें। इसके बाद वापस पूर्व स्थिति में आएं। स्मरण शक्ति को कमजोर होने से रोकने, उसे बड़ाने व मस्तिष्क तक शुद्ध रक्त व ऑक्सीजन का संचार करने में इसकी भूमिका अहम है।


क्या कहता है शोध 
ड्यूक स्कूल ऑफ मेडिसिन में साइकायट्री विभाग के एक शोध के अनुसार योग मुद्राएं रक्त संचार में सुधार करती हैं। इससे शरीर में एंड्रोफिन्स हार्मोन का स्राव बड़ जाता है, जो फोकस और सजगता को बड़ाता है। इस प्रकार रहे शोध के नतीजे …
डिप्रेशन: डिप्रेशन के शिकार 69 वयस्क लोगों में तीन माह के योग अभ्यास के बाद 20 % व छह माह के बाद 40% सुधार देखने को मिला है। एल्कोहल का सेवन छोड़ चुके लोगों पर परिणाम अधिक सकारात्मक रहे।
ओवरईटिंग: 12 सप्ताह के योगाभ्यास के बाद मोटापे की शिकार 90 महिलाओं में अधिक खाने की आदत में 50% तक का सुधार देखा गया। शोध के अनुसार योगाभ्यास कर रही महिलाएं अन्य की तुलना में डाइट शेड्यूल का अधिक सतर्कता से पालन करती हैं।
याददाश्त: 8 सप्ताह तक योगाभ्यास कर रहे 30 वयस्कों में अल्पकालिक याददाश्त, फोकस क्षमता व मल्टीटास्किंग में काफी सुधार देखने को मिला। 
इनसोमनिया (अनिद्रा): सप्ताह में 3 बार छह माह तक योग करने पर अनिद्रा के शिकार 139 वरिष्ठ नागरिकों में 28 से 30 त्न तक का सुधार देखने को मिला। उनमें अन्य की तुलना में अवसाद भी कम देखने को मिला। 
सिजोफ्रेनिया: सिजोफ्रेनिया के शिकार 18 लोगों पर दो माह के अभ्यास के बाद उग्रता में कमी, उपचार के प्रति सकारात्मक रवैया आदि पक्षों में 30 प्रतिशत का सुधार देखने को मिला।


योग के प्रकार और उनसे होने वाले स्वास्थ्य लाभ
यूं तो भारत और योग का संबंध दो हजार साल से भी ज्यादा पुराना है, लेकिन हाल के कुछ दशकों में इसकी लोकप्रियता तथा स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है। इन दिनों सूर्य नमस्कार और कपालभारती जैसे आसनों की लोकप्रियता इतनी ज्यादा हो चुकी है कि इस बारे में किसी को ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है।
वजन घटाने, फिट रहने, मस्तिष्क को स्थिर रखने व आंतरिक शांति के लिए लोग योग को तरजीह देते रहे हैं। दुनिया में ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो मानसिक शुद्धता के लिए भी योग का सहारा लेते हैं। आधुनिक योग के जनक महर्षि पतंजलि ने कहा था कि योग से मस्तिष्क के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि योग सिर्फ एक व्यायाम या आसन नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक दशा है।


कुछ प्रमुख योग (अष्टांग योग) 


यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रतिहार, प्रत्याहार, धरना, ध्यान, समाधि
अष्टांग योग से लाभ
1. इससे शरीर में रक्त संचार बढ़ता है और मस्तिष्क शांत रहता है
2. इससे क्षमता तथा लचीलापन बढ़ता है
3. जोड़ों को मजबूत बनाता है तथा उनकी चिकनाई को बढ़ाता है एवं मांसपेशियों को यथा आकार बनाए रखता है
4. वजन घटाने में मदद करता है
5. मानसिक स्पष्टता बढ़ाता है
6. आंतरिक अंगों से तनाव को बाहर निकालता है।


हठ योग :
यह भारतीय योग की सबसे प्राचीन विधा है। कुछ हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने इस योग को सबसे पहले किया था। इस योग का संबंध नाड़ी से है।
हठ योग से होने वाले लाभ : शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाता है व टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है, रीढ़ को सही रखता है, ग्रंथियों की कार्यप्रणाली को सही रखता है, तनाव दूर रखता है।

आयंगर योग : 
इस योग का नाम इसके जनक बीकेएस आयंगर के नाम पर रखा गया है। यह हठ योग का ही एक प्रकार है। इसमें श्वास से जुड़े व्यायाम होते हैं।
आयंगर योग से होने वाले लाभ: रक्तचाप को घटाता है, तनाव कम करता है, गर्दन तथा पीठ का दर्द खत्म करता है, इम्यूनोडिफिएंसी में मददगार है, स्टेमिना, संतुलन तथा ध्यान केंद्रण बढ़ाता है।


कुंडलिनी योग :


इस योग से कुंडलिनी योग ऊर्जा को जागृत किया जाता है। कुंडलिनी ऊर्जा रीढ़ में होती है। उपनिषद में इस योग के बारे में विस्तार से समझाया गया है। इस प्रकार के नियमित योग से शरीर को लाभ होता है। इसमें प्राणायाम करते हुए मंत्रों के साथ आसन लगाए जाते हैं।
कुंडलिनी योग के लाभ : फेफड़ों की क्षमता बढ़ाता है, ब्लडस्ट्रीम को शुद्ध करता है, नर्वस सिस्टम को मजबूत करता है, शरीर, मस्तिष्क और आत्मा में संतुलन बढ़ाता है।

पावर योग : 
पावर योग, अष्टांग योग का ही एक प्रकार है। पश्चिमी देशों से 1990 में योग का विकसित प्रकार भारत आया, जिसे पावर योग कहा गया। इसे करने में अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह योग हर योगगुरु अपने मुताबिक कराता है। इसलिए इसका कोई तय पैटर्न नहीं है। इससे शारीरिक क्षमता तो बढ़ती ही है साथ मानसिक शक्ति भी बढ़ती है।
पावर योग से होने वाले लाभ : क्षमता बढ़ती है, शरीर से अतिरिक्त कैलोरी और वसा घटती है, मेटाबोलिज्म बढ़ता है।

yoga-day-2016-stress-relief-by-yoga-1328598/”>अगली स्लाइड पढऩे के लिए यहां करें क्लिक


Hindi News / Gwalior / योग, रोग दूर करने की एक भारतीय विधा

ट्रेंडिंग वीडियो