ग्वालियर। गणेश विसर्जन, गणेश उत्सव का एक अभिन्न अंग है, इसके बिना गणेश उत्सव पूर्ण नही होता। इसके अंर्तगत गणेश जी की प्रतिमा को गणेश चतुर्थी के दिन स्थापित किया जाता है और 10 दिन बाद अनन्त चतुर्दशी को उसी गणेश प्रतिमा के विसर्जन के साथ इस गणेश उत्सव का समापन होता है।
जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी के बारे में जानता है, वह ये भी जानता है कि गणेश चतुर्थी को स्थापित की जाने वाली गणपति प्रतिमा को अनन्त चतुर्दशी के दिन किसी बहती नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित भी किया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि आखिर गणपति विसर्जन किया क्यों जाता है। गणपति विसर्जन के संदर्भ में अलग-अलग लोगों व राज्यों में मान्यताऐं भी अलग-अलग हैं।
कुछ जानकारों के अनुसार गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस किसी भी इच्छा की पूर्ति करवाना चाहते हैं, वे अपनी इच्छाएं, भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं। फिर अन्त में भगवान गणपति की इसी मूर्ति को अनन्त चतुर्दशी के दिन बहते जल, नदी, तालाब या समुद्र में विसर्जित कर दिया जाता है, ताकि भगवान गणपति इस भूलोक की सगुण साकार मूर्ति से मुक्त होकर निर्गुण निराकार रूप में देवलोक जा सकें और देवलोक के विभिन्न देवताओं को भूलोक के लोगों द्वारा की गई प्रार्थनाएं बता सकें, ताकि देवगण, भूलोकवासियों की उन इच्छाओं को पूरा कर सकें, इन्हें भूलोकवासियों ने भगवान गणेश की मूर्ति के कानों में कहा था।
कुंड में ले जाकर लगवाई थी डुबकी
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार श्री वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था। यह कथा जब वेद व्यास जी सुना रहे थे तब उन्होंने अपनी आखें बन्द कर रखी थी, इसलिए उन्हें पता ही नहीं चला कि कथा सुनने का गणेशजी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
जब 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत अधिक हो गया है, दूसरे शब्दों में कहें, तो उन्हें ज्वर हो गया है। सो तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ, इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है। दरअसल गणेशोत्सव श्री बाल गंगाधर तिलक ने आज से 100 वर्ष पूर्व अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों को एकजुट करने के लिए आयोजित किया था, जो कि धीरे-धीरे पूरे राष्ट्र में मनाया जाने लगा है।
कैसे करते हैं गणपति विसर्जन
माना जाता है कि भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति है और यही कारण है कि अनंत चतुर्दशी के दिन ही भगवान गणपति की पूजा-अर्चना करके गणपति-प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मिट्टी की बनी गणेश जी की मूर्तियों को जल में विसर्जित करना अनिवार्य है। इसके लिए लोग गणेश जी की प्रतिमा को लेकर ढोल-नगारों के साथ एक कतार में निकलतें है, नाचते-गाते बहती नदी, तालाब या समुन्द्र के पास जाकर बड़े ही हर्षो उल्लास के साथ उनकी आरती करते हैं, और उसके बाद जब गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है। इस दौरान सभी भक्त मिलकर मंत्रोउच्चारण के जरिये प्रार्थना करते है। जो इस प्रकार से होती है
मूषिकवाहन मोदकहस्त, चामरकर्ण विलम्बितसूत्र ।
वामनरूप महेस्वरपुत्र, विघ्नविनायक पाद नमस्ते ॥
अर्थात – हे भगवान विनायक। आप सभी बाधाओं का हरण करने वाले हैं। आप भगवान शिव जी के पुत्र है, और आप अपने वाहन के रूप में मुष्कराज को लिए हैं। आप अपने हाथ में लड्डू लिए, और विशाल कान, और लम्बी सूण्ड लिए हंै। मैं पूरी श्रद्धा के साथ आप को नमस्कार करता हूँ।
ऐसे करें विसर्जन
1. सबसे पहले 10 दिन या डेढ़ दिन, 3 दिन, 5 दिन और 7 दिन तक की जाने वाली आरती-पूजन-अर्चन करें। विशेष प्रसाद का भोग लगाएं।
2. अब श्री गणेश का स्वस्तिवाचन करें।
3. एक स्वच्छ पाटा लें। उसे गंगाजल या गौमूत्र से पवित्र करें। घर की स्त्री उस पर स्वास्तिक बनाएं। उस पर अक्षत रखें। इस पर एक पीला, गुलाबी या लाल सुसज्जित वस्त्र बिछाएं।
4. इस पर गुलाब की पंखुरियां बिखेरें। साथ में पाटे के चारों कोनों पर चार सुपारी रखें।
5. अब श्री गणेश को उनके जयघोष के साथ स्थापना वाले स्थान से उठाएं और इस पाटे पर विराजित करें। पाटे पर विराजित करने के उपरांत उनके साथ फल, फूल, वस्त्र, दक्षिणा, 5 मोदक रखें।
6. एक छोटी लकड़ी लें। उस पर चावल, गेहूं और पंच मेवा की पोटली बनाकर बांधें। यथाशक्ति दक्षिणा (सिक्के) रखें। मान्यता है कि मार्ग में उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े। इसलिए जैसे पुराने समय में घर से निकलते समय जो भी यात्रा के लिए तैयारी की जाती थी, वैसी श्री गणेश के विदा के समय की जानी चाहिए।
7. नदी, तालाब या पोखर के किनारे विसर्जन से पूर्व कपूर की आरती पुन: संपन्न करें। श्री गणेश से खुशी-खुशी विदाई की कामना करें और उनसे धन, सुख, शांति, समृद्धि के साथ मनचाहे आशीर्वाद मांगे। 10 दिन जाने-अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना भी करें।
8. श्री गणेश प्रतिमा को फेंकें नहीं उन्हें पूरे आदर और सम्मान के साथ वस्त्र और समस्त सामग्री के साथ धीरे-धीरे बहाएं।
9. श्री गणेश प्रतिमा इको फ्रेंडली हैं, तो पुण्य अधिक मिलेगा क्योंकि वे पूरी तरह से पानी में गलकर विलीन हो जाएंगे। आधे अधूरे और टूट-फूट के साथ रूकेंंगे नहीं।
10. श्री गणेश प्रतिमा इको फ्रेंडली हैं, तो उन्हें घर में विसर्जित कर अपने गमले में यह पानी डाल कर हमेशा अपने पास रख सकते हैं।
गणेश विसर्जन की यह हैं खास बातें
1. ‘गणेश चतुर्थी’ पर जहां बप्पा(गणेश जी) को लोगों ने अपने घर में सजाया, वहीं अब उन्हें विदा करने का वक्त भी आ गया है। जिसे कि ‘गणेश विसर्जन’ कहा जाता है।
2. गणपति कहीं एक दिन तो कहीं 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन या पूरे 10 दिन तक विराजते हैं लेकिन कहते हैं ना, जो आता है, वो जाता भी है इसलिए अब उनके जाने का वक्त भी आ गया है।
3. ‘विसर्जन’ शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है कि ‘पानी में विलीन होना’, ये सम्मान सूचक प्रक्रिया है इसलिए घर में पूजा के लिए प्रयोग की गई मूर्तियों को विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है।
विसर्जन का मतलब
1. गणेश ‘विसर्जन ये सिखाता है कि मिट्टी से जन्में शरीर को मिट्टी में ही मिलना है। गणेश जी की प्रतिमा मिट्टी से बनती है और पूजा के बाद वो मिट्टी में मिल जाती है।
2. गणेश जी को मूर्त रूप में आने के लिए मिट्टी का सहारा लेना पड़ता है, मिट्टी प्रकृति की देन है, लेकिन जब गणेश जी पानी में विलीन होते हैं तो मिट्टी फिर प्रकृति में ही मिल जाती है। मतलब ये कि जो लिया है उसे लौटाना ही पड़ेगा, खाली हाथ आये थे और खाली हाथ ही जाना पड़ेगा।
3. ये धर्म और विश्वास की बात है कि हम गणेश जी को आकार देते हैं लेकिन ऊपर वाला तो निराकार है और सब जगह व्याप्त है लेकिन आकार को समाप्त होना पड़ता है इसलिए ‘विसर्जन’ होता है।
4. विसर्जन ये सिखाता है कि इंसान को अगला जन्म पाने के लिए इस जन्म का त्याग करना पड़ेगा। गणेश जी की मूर्ति बनती है, उसकी पूजा होती है, लेकिन फिर उन्हें अगले साल आने के लिए इस साल विसर्जित होना पड़ता है। जीवन भी यही है, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कीजिये और समय समाप्त होने पर अगले जन्म के लिए इस जन्म को छोड़ दीजिये।
5. ‘विसर्जन’ ये भी सिखाता है कि सांसरिक वस्तुओं से इंसान को मोह नहीं होना चाहिए क्योंकि इसे एक दिन छोडऩा पड़ेगा। गणेश जी घर में आते हैं, उनकी पूजा होती है और उसके बाद मोह-माया बिखेरकर वो हमसे विदा हो जाते हैं ठीक उसी तरह जीवन भी है, इसे एक दिन छोड़कर जाना होगा इसलिए इसके मोह-पाश में इंसान को नहीं फंसना चाहिए।