ग्वालियर। मध्यप्रदेश 60 साल का युवा प्रदेश हो गया है। 1 नवम्बर को प्रदेश अपनी वर्षगांठ मनाने जा रहा है। ऐसे में हम आपको इसके इतिहास से जुड़ी कई रोचक जानकारियां देने जा रहे हैं। 1 नवम्बर 1956 को अविभाजित मध्यप्रदेश की नींव रखी गई। उससे पहले प्रदेश में 4 राज्य थ जो ए, बी और केटेगरी में विभाजित थे। जिस ग्वालियर को हम जानते हैं वो आजादी के बाद और प्रदेश के गठन से पहले मध्यभारत प्रांत का हिस्सा था। इस प्रांत में ग्वालियर-चंबल का पूरा क्षेत्र मालवा का क्षेत्र शामिल था।
ग्वालियर थी विंटर कैपिटल तो इंदौर थी ग्रीष्म राजधानी
मध्यभारत प्रांत का गठन 28 मई 1948 को किया गया था, जिसमें ग्वालियर और मालवा का क्षेत्र शामिल था। मध्यभारत प्रांत के पहले राजप्रमुख ग्वालियर रियासत के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया थें। प्रांत की दो राजधानियां थी। ग्वालियर विंटर कैपिटल थी तो वहीं इंदौर की ग्रीष्म राजधानी का रूतबा हासिल था।
मोतीमहल में चलती थी विधानसभा
सिंधिया राजवंश की अनोखी स्थापत्य कला के नमूने मोतीमहल का महत्व उस वक्त भी बहुत खास था। उस वक्त मोतीतहल मध्यभारत प्रांत की विधानसभा हुआ करती थी। पैलेस में एक दरबार हॉल है। इस हॉल में सिंधिया शासक अपना शासन चलाते थे। जब मध्य भारत स्टेट बना तो इसी हॉल में विधानसभा लगती थी।
1825 में बने मोतीमहल के दरबार हॉल में लगा है सोना
दौलतराव सिंधिया ने 1825 में इस मोतीमहल को बनवाया था और इसे बिल्कुल पूना के पेशवा पैलेस की तजज़् पर बनाया गया है। इस हॉल में कई किलो सोना लगाकर छत और दीवारों को सजाया गया है। इस महल के कई कमरों में राग-रागिनी के ऊपर बनी पेटिंग बनाई हुई हैं। जब भोपाल राजधानी बना तो मोतीमहल में राज्य सरकार के कई दफ्तर आ गए। आज भी इस बिल्डिंग के 300 कमरों का उपयोग होता है।
Hindi News / Gwalior / प्रदेश के गठन से पहले ऐसा था ग्वालियर, इस शाही महल में चलती थी विधानसभा