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ग्वालियर

गुप्त नवरात्र 5 जुलाई से, यह है महत्व

माँ भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा नवरात्रों के भिन्न-भिन्न दिन की जाती है।

ग्वालियरJul 02, 2016 / 01:47 pm

rishi jaiswal

Gupt Navratri 2016

Gupt Navratri 2016


ग्वालियर। हिन्दू धर्म में नवरात्र मां दुर्गा की साधना के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। नवरात्र के दौरान साधक विभिन्न तंत्र विद्याएं सीखने के लिए मां भगवती की विशेष पूजा करते हैं। तंत्र साधना आदि के लिए गुप्त नवरात्र बेहद विशेष माने जाते हैं। आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली नवरात्र को गुप्त नवरात्र कहा जाता है। जानकारों के अनुसार इस नवरात्रि की बहुत ही कम लोगों को जानकारी होती है। उत्तरी भारत जैसे हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड के आसपास के प्रदेशों में गुप्त नवरात्रों में माँ भगवती की पूजा की जाती है। माँ भगवती के सभी 9 रूपों की पूजा नवरात्रों के भिन्न-भिन्न दिन की जाती है।


गुप्त नवरात्र
प्रारंभ : 5 जुलाई (मंगलवार) 2016
समापन : 14 जुलाई (गुरुवार) 2016

किस दिन कौन सी देवी की पूजा करें
5 जुलाई (मंगलवार) 2016 : घट स्थापन एवं माँ शैलपुत्री पूजा
6 जुलाई (बुधवार) 2016 : माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
7 जुलाई (बृहस्पतिवार) 2016 : माँ चंद्रघंटा पूजा
8 जुलाई (शुक्रवार) 2016 : माँ कुष्मांडा पूजा 
9 जुलाई (शनिवार) 2016 : माँ स्कंदमाता पूजा 
10 जुलाई (रविवार) 2016 : माँ कात्यायनी पूजा
11 जुलाई (सोमवार) 2016 : माँ कालरात्रि पूजा 
12 जुलाई(मंगलवार) 2016 : माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी 
13 जुलाई (बुधवार) 2016 : माँ सिद्धिदात्री 
14 जुलाई (बृहस्पतिवार) 2016 : नवरात्री पारण
नवरात्रों में माँ भगवती की आराधना दुर्गा सप्तशती से की जाती है, परन्तु यदि समयाभाव है तो भगवान् शिव रचित सप्तश्लोकी दुर्गा का पाठ भी अत्यंत ही प्रभावशाली एवं दुर्गा सप्तशती का सम्पूर्ण फल प्रदान करने वाला माना जाता है।



ऐसे करें कलश स्थापना
एक चौकी पर मिट्टी का कलश पानी भरकर मंत्रोच्चार सहित रखें। मिट्टी के दो बड़े कटोरों में मिट्टी भरकर उसमें गेहूं-जौ के दाने बो कर ज्वारे उगाए जाते हैं और उसको प्रतिदिन जल से सींचा जाता है। दशमी के दिन देवी प्रतिमा व ज्वारों का विसर्जन कर दिया जाता है।
महाकाली, महाकाली और महासरस्वती की मूर्तियां बनाकर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों को अघ्र्य दें। इन नौ दिनों में जो कुछ दान दिया जाता है मान्यता के अनुसार उसका करोड़ों गुना मिलता है।
माना जाता है कि नवरात्र व्रत से अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है, वहीं नवरात्र के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। अष्टमी के दिन ही कन्या पूजन का भी महत्व है, इसमें ५,७,९ या ११ कन्याओं को पूजकर भोजन कराया जाता है।

गुप्त नवरात्र पूजा विधि 
मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।



गुप्त नवरात्रि का महत्त्व
देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।

गुप्त नवरात्रि की प्रमुख देवियां
गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं।


प्रत्यक्ष फल देते हैं गुप्त नवरात्र
गुप्त नवरात्र में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह, लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्रों में अपनी कुलदेवी निकुम्बाला की साधना करके वह अजेय बनाने वाली शक्तियों का स्वामी बन सकता है। गुप्त नवरात्र दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।

ऋषि श्रृंगी ने बताई थी गुप्त नवरात्र की महत्ता
गुप्त नवरात्रों से एक प्राचीन कथा जुड़ी हुई है एक समय ऋषि श्रृंगी भक्त जनों को दर्शन दे रहे थे अचानक भीड़ से एक स्त्री निकल कर आई,और करबद्ध होकर ऋषि श्रृंगी से बोली कि मेरे पति दुव्र्यसनों से सदा घिरे रहते हैं,जिस कारण मैं कोई पूजा-पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े पवित्र कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती मेरा पति मांसाहारी हैं,जुआरी है,लेकिन मैं मां दुर्गा कि सेवा करना चाहती हूं,उनकी भक्ति साधना से जीवन को पति सहित सफल बनाना चाहती हूं ऋषि श्रृंगी महिला के भक्तिभाव से बहुत प्रभावित हुए। ऋषि ने उस स्त्री को आदरपूर्वक उपाय बताते हुए कहा कि वासंतिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है, लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं, जिन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है प्रकट नवरात्रों में नौ देवियों की उपासना हाती है और गुप्त नवरात्रों में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। इन नवरात्रों की प्रमुख देवी स्वरुप का नाम सर्वैश्वर्यकारिणी देवी है, यदि इन गुप्त नवरात्रों में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल कर देती हैं। लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रों में माता की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता ही नहीं रहती उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्धा करते हुए गुप्त नवरात्र की पूजा की मां प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा, घर में सुख शांति आ गई। पति सन्मार्ग पर आ गया,और जीवन माता की कृपा से खिल उठा।

 
‘दुर्गावरिवस्या’ नामक ग्रंथ में स्पष्ट लिखा है कि साल में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में माघ में पडऩे वाले गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को अनेक सुख व साम्राज्य भी प्राप्त होते हैं ‘शिवसंहिता’ के अनुसार ये नवरात्र भगवान शंकर और आदिशक्ति मां पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ हैं। गुप्त नवरात्रों के साधनाकाल में मां शक्ति का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥ देवी भागवत के अनुसार जिस तरह वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में ??दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। 


गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं गुप्त नवरात्र के दौरान कई साधक महाविद्या (तंत्र साधना) के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी की पूजा करते हैं मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई, इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप ‘नवरात्र’ में ही शुद्ध है।



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