scriptगंगा दशहरा 14 को, जानिये क्या है महत्व और कैसे करें पूजा | ganga dussehra 2016, how to do puja on ganga dussehra | Patrika News
ग्वालियर

गंगा दशहरा 14 को, जानिये क्या है महत्व और कैसे करें पूजा

स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन किसी भी पवित्र नदी पर स्नान करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पाता है।

ग्वालियरJun 11, 2016 / 03:11 pm

rishi jaiswal

Ganga Dussehra

Ganga Dussehra


ग्वालियर। ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 14 जून 2016 के दिन मनाया जाएगा। स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए. इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। यदि कोई मनुष्य पवित्र नदी तक नहीं जा पाता तब वह अपने घर पास की किसी नदी पर स्नान करें।
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा गया है, इसलिए इस इस दिन दान और स्नान का ही अत्यधिक महत्व है। वराह पुराण के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, बुधवार के दिन, हस्त नक्षत्र में गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी। इस पवित्र नदी में स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते है।


इस बार यह दिन विशेष
नारद पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास को मंगलवार के दिन शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को हस्त नक्षत्र में जाह्नवी (मां गंगा) का मृत्युलोक में अवतरण हुआ। इस दिन वह आद्यगंगा स्नान करने पर दस गुने पाप हर लेती हैं। ‘ज्येष्ठे मासि क्षितिसुतदिने शुक्लपक्षे दशम्यां हस्ते शैलादवतरदसौ जाह्नवी मृत्युलोकम्। पापान्यस्यां हरति हि तिथै सा दशैषाद्यगंगा पुण्यं दद्यादपि शतगुणं वाजिमेधक्रतोश्च’।
इस बार भी गंगा दशहरा पर मंगलवार हस्त नक्षत्र व संक्रांति होने के कारण यह दिन विशेष बन गया है। अत: जानकारों के अनुसार इस दिन गंगा स्नान जरूर करें।


पूजा विधि 
इस दिन पवित्र नदी गंगा जी में स्नान किया जाता है। यदि कोई मनुष्य वहाँ तक जाने में असमर्थ है तब अपने घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए स्नान कर सकता है (गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। गंगा जी का पूजन करते हुए निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए – “ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:”।


इस मंत्र के बाद ‘ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा’ मंत्र का पाँच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए। जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए। 
यदि कोई व्यक्ति पूजन के बाद दान करना चाहता है तब वह भी दस प्रकार की वस्तुओं का करता है तो अच्छा होता है लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए. जब गंगा नदी में स्नान करें तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।


गंगा दशहरे का महत्व 
भगीरथी की तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है। 
गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालु जन जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए। ऎसा करने से शुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है।


गंगा दशहरे का फल 
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है। इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं. इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है।


गंगा दशहरा व्रत कथा


एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला। फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी। महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की।


इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।’ महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।


अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी। इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।

Hindi News / Gwalior / गंगा दशहरा 14 को, जानिये क्या है महत्व और कैसे करें पूजा

ट्रेंडिंग वीडियो