ग्वालियर। श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मना जाता है, इसी आधार पर यह दिन गणेश जी के जन्मदिन(गणेश चतुर्थी) को रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी 5 सितंबर को है। श्री गणेश जी के जन्मदिन पर हर वर्ष गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है।
गणेश जी बुद्धि , सौभाग्य , समृद्धि , ऋद्धि सिद्धि देने वाले व विघ्नहर्ता यानि संकट दूर करने वाले माने जाते हैं । विनायक, गजानन, लम्बोदर, गणपति आदि भी श्री गणेश जी के ही हैं।
सफलता या लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सम्पूर्ण ज्ञान हासिल करने के अलावा अपनी त्वरित बुद्धि से विवेकपूर्ण निर्णय करना, लगातार मेहनत और प्रयास करते रहना भी जरुरी होता है। जानकारों के अनुसार गणेश जी की पूजा का यही सन्देश है। इसी वजह से गणेश जी को सबसे पहले पूजा जाता है। देश के तकरीबन हर हिस्से भक्त गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाते है।
जगह-जगह सजती है गणेश प्रतिमाएं
गणेश चतुर्थी पर घर और मंदिरों में गणेश जी की सुन्दर प्रतिमाएं साज श्रृंगार के साथ स्थापित कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसके बाद दस दिन यानि अनन्त चतुर्दशी तक भक्ति भाव और विधि विधान से गणेश जी की पूजा की जाती है व ग्यारवें दिन किसी जलाशय , नदी या समुद्र में मूर्ति को विसर्जित किया जाता है। इस दौरान गाजे-बाजे के साथ नाचते गाते लोग गणेश विसर्जन में हिस्सा लेते है। साथ ही हर ओर “गणपति बाप्पा मोर्या “जैसे शब्द गूंजते आसानी से सुनाई देते हैं।
इस दिन नहीं देखें चंद्रमा
इस दिन चांद को देखना अशुभ माना जाता है। मान्यता है कि चंद्र को गणेश जी का श्राप लगा हुआ है। और इस दिन चांद को देखने से झूठा कलंक लग सकता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को भी इस दिन चांद देखने पर मणि चोरी के झूठे कलंक का सामना करना पड़ा था।
यह है पूजन सामग्री
गणेशजी के पूजन दौरान चौकी या पाटा, जल कलश, लाल कपड़ा, पंचामृत, रोली , मोली , लाल चन्दन, जनेऊ, गंगाजल, सिन्दूर, चांदी का वर्क, लाल फूल या माला, इत्र, मोदक या लडडू, धानी, सुपारी, लौंग , इलायची, नारियल, फल, दूर्वा/दूब, पंचमेवा, घी का दीपक, धूप , अगरबत्ती, कपूर होना चाहिए।
गणेश पूजन की विधि
सुबह नहा धोकर शुद्ध लाल रंग के कपड़े पहने। गणेश जी को लाल रंग प्रिय है। इसके बाद पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए।
पूजन के शुरूआत में गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं । उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं। फिर गणेश जी को चौकी पर लाल कपड़ेे पर विराजित करें। इसके बाद ऋद्धि सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें।
अब गणेश जी को सिन्दूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं (ब्रह्यवैवर्तपुराण के अनुसार गणेश जी को तुलसी पत्र निषिद्व है। सिंदूर का चोला चढ़ा कर चांदी का वर्क लगाएं और गणेश जी का आह्वान करें।)। फिर लाल चन्दन का टीका लगाने के पश्चात अक्षत (चावल) लगाएं। इसके पश्चात मौली और जनेऊ अर्पित कर लाल रंग के पुष्प या माला आदि अर्पित करें। इसके साथ ही इत्र अर्पित और दूर्वा भी अर्पित करें। अब नारियल चढ़ाएं, पंचमेवा चढ़ाएं और फिर फल अर्पित करें। इसके बाद मोदक और लडडू आदि का भोग लगाएं। (माना जाता है कि लड्डूओं के साथ ऊँ मोदक प्रियाय नम: मंत्र के जप करने से मनोवांछित कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है।) फिर लौंग इलायची अर्पित करें और दीपक , अगरबत्ती , धूप आदि जलाएं।
इसके साथ ही गणेश जी के ‘ऊँ वक्रतुण महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ । निर्विघ्नं कुरू मे देव , सर्व कार्येषु सर्वदा ।।’ मंत्र का उच्चारण करें। और फिर कपूर जलाकर उससे आरती करें।
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती पिता महादेवा । । जय गणेश जय गणेश…
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी । माथे सिन्दूर सोहे मूष की सवारी । । जय गणेश जय गणेश…
अंधन को आंख देत कोडिन को काया । बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया । । जय गणेश जय गणेश…
हार चढे फूल चढे और चढे मेवा । लडूवन का भोग लगे संत करे सेवा । । जय गणेश जय गणेश…
दीनन की लाज राखी शम्भु सुतवारी । कामना को पूरा करो जग बलिहारी । । जय गणेश जय गणेश…