ग्वालियर। लोक गीत सामाजिक संस्कारों के प्रतीक हैं। इन्हें संजोकर रखना चाहिए। ये शताब्दियों से पीढ़ी दर पीढ़ी आए हैं। इनमें शिक्षा है, जो आने वाली पीढ़ी को अपने समाज की अच्छाइयों से जोड़ेगी। ये बात प्रख्यात गायिका मालिनी अवस्थी ने खबरनवीसों से बातचीत के दौरान कही। उन्होंने साफ किया कि बदलते दौर में भारतीय संगीत की पवित्रता कायम रखना हमारे लिए बेहद जरूरी है।
उन्होंने कहा कि तानसेन समारोह की पूर्व संध्या पर ग्वालियर आकर कार्यक्रम देना उनके लिए गौरव का विषय है। ग्वालियर में गमक नाम का संगीत कार्यक्रम देने आईं लोकप्रिय गायिका अवस्थी ने दो टूक कहा कि वर्तमान में नोट बंदी लोग बेशक कठिनाईपूर्ण दौर गुजर रहे हैं, लेकिन भविष्य में इसके फायदे होंगे। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि कानफोड़ू संगीत की बजाय लोकगीत लोगों के ज्यादा करीब हैं।
संगीत के सूर्य हैं तानसेन : मालिनी
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए मालिनी अवस्थी ने कहा कि तानसेन संगीत के सूर्य हैं। एेसा कोई कलाकार नहीं है जिसने तानसेन का नाम न सुना हो। उन्होंने कहा कि संगीत का सृजन ध्रुपद धमार से नहीं, बल्कि जब बच्चा रोया होगा तब मां तब मां ने लोरी सुनाई होगी वहीं से संगीत का सृजन हुआ होगा।
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मालिनी की ठुमरी ने मोहा सबका मन
उन्होंने सबसे पहले राग मिश्र खमाज में ठुमरी से अपने गायन की शुरुआत की, जिसके बोली थे ठाडे रहो बांके श्याम… की प्रस्तुति दी। इसके बाद उन्होंने भोजपुरी दादरा जमुनिया की डार में तोर लाई राजा… की मधुर प्रस्तुति दी। वे अपने गायन के साथ ही बंदिशों की व्याख्या भी कर रहीं थी। कि किस प्रकार ये चलन में आईं। उनके साथ तबले पर बनारस घराने के प्रख्यात संगीतज्ञ छन्नूलाल मिश्र के सुपुत्र पंडित रामकुमार मिश्र, हारमोनियम पर पंडित धर्मनाथ मिश्र और सारंगी पर कमाल अहमद की शानदार संगत ने कार्यक्रम को यादगार बना दिया।
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