ग्वालियर। कमीशन के चक्कर में निजी स्कूल प्रबंधन निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें चलाते हैं। यह किताब मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम और एनसीईआरटी से कई गुना महंगी होती है। यहां तक कि मेडिकल और इंजीनियरिंग की किताबों से पहली कक्षा की किताबें महंगी हैं। इसके बावजूद प्रशासन इनके खिलाफ कोई भी ठोस कार्रवाई करने से कतरा रहा है।
“स्कूल प्रबंधन निजी प्रकाशकों के साथ सांठगांठ कर महंगी किताबें चलाते हैं, जबकि एनसीईआरटी की किताबें महज 50 रुपए से कम कीमत में आसानी से उपलब्ध हैं। प्रशासन को इस पर सख्त रुख अपनाना चाहिए, जिससे अभिभावकों की जेब पर अनावश्यक भार न पड़े।”
सुधीर सप्रा, अध्यक्ष ऑल इंडिया पैरंटस एसोसिएशन
पहली कक्षा
विषय – कीमत
अंग्रेजी – 350
हिन्दी वर्णमाला – 255
स्पेलिंग मास्टर – 280
राइटिंग लर्नर – 300
एमबीबीएस
विषय – कीमत
हेंडबुक ऑफ एस्टॉलोजी – 100
हैंडबुक ऑफ जनरल एनाटॉमी – 90
इसेंसियल ऑफ ह्यूमन एनाटॉमी – 230
मेडिकल जेनेटिक्स – 40
20 से 30 प्रतिशत तक कमीशन
निजी स्कूल प्रबंधन प्रकाशकों के साथ सांठगांठ कर विद्यालय में जानबूझकर महंगी किताबें पाठ्यक्रम में शामिल करते हैं। इसके एवज में स्कूल प्रबंधन बाकायदा 20 से 30 प्रतिशत तक कमीशन वसूलते हैं, जो किताब 100 से 150 रुपए में आसानी से मिल सकती है, वह कमीशन के चक्कर में 250 से 300 रुपए तक अभिभावकों को मिलती है।
आलम यह है कि इंजीनियरिंग और मेडिकल की किताब तक 80 से 180 रुपए तक आसानी से मिल जाती है, लेकिन पहली कक्षा की किताबें 450 रुपए तक में मिल रही हैं। अभिभावक को पहली कक्षा के कोर्स के लिए ढाई से तीन हजार रुपए तक खर्च करना पड़ता है। एनसीईआरटी की किताबों की बात करें तो पहली से आठवीं तक की सभी विषयों की किताब 50 रुपए या इससे कम कीमत की हैं, लेकिन स्कूल प्रबंधन जानबूझकर इन किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल ही नहीं करते।
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