ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय में गड़बडिय़ां इस कदर हावी हैं, कि रिपोर्ट कार्ड या रिवेल्यूशन की तो छोड़ें, विश्वविद्यालय प्रशासन को अपने पैसे तक का ध्यान नहीं रहता। यहां चल रहीं गड़बडिय़ों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बार विश्वविद्यालय प्रशासन ने कॉलेजों से परीक्षा संचालन शुल्क की वसूली को भूलकर इसका भूगतान अपनी ही जेब से कर दिया।
यह है मामला
जीवाजी यूनिवर्सिटी (जेयू) के परीक्षा भवन में पिछले दिनों आयोजित यूजी और पीजी की परीक्षा में पर्यवेक्षकों को किया गया 25 लाख रुपए का भुगतान अब विवादों में आ गया है। यह मामला तब उजागर हुआ जब ऑडिट के पास आई तीन लाख के भुगतान की फाइल पर आपत्ति लगाते हुए भुगतान करने से रोक दिया गया।
सूत्रों के अनुसार जेयू को यह राशि संबंधित कॉलेजों से वसूलनी थी। लेकिन जेयू ने ऐसा न करते हुए जल्दबाजी में अपने खाते से भुगतान कर दिया है। कॉलेज संचालकों द्वारा छात्रों से परीक्षा संचालन शुल्क के रूप में पहले ही 100 रुपए लिए जा चुके हैं। कॉलेज इस राशि में से 30 रुपए प्रति छात्र के हिसाब से जेयू को भेजता है और 70 रुपए अपने पास रखता है। इस बार जिले के सभी कॉलेजों की परीक्षाएं जेयू के परीक्षा भवन में ही आयोजित हुई हैं, इस कारण कॉलेज संचालक इस राशि को पचा गए।
मामले का खुलासा अंतिम समय में ऑडिट के पास आई तीन लाख के भुगतान की फाइल से हुआ। इस फाइल में बिल न लगे होने के कारण फायनेंस कंट्रोलर ने आपत्ति लगाते हुए फिलहाल भुगतान रोक दिया है। भुगतान को लेकर सोमवार को अधिकारियों में काफी बहस हुई। संबंधित लोग 25 लाख की तरह अंतिम भुगतान के रूप में 3 लाख का पेमेंट कराने की फिराक में थे, लेकिन वे अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके।
“बिल न आने के कारण हमने इस मामले में तीन लाख रुपए का भुगतान रोक दिया है। पिछले 25 लाख के भुगतान के मामले को भी जांच में ले लिया है। कॉलेजों से राशि वसूलने के लिए प्रबंधन को लिखा जाएगा।”
अजय शर्मा, एफसी, जेयू
पर्यवेक्षकों की संख्या नहीं बताई
मामला पकड़ में आया तो ऑडिट ने पिछले 25 लाख के पेमेंट की भी जांच की, जिसमें कई अनियमितताएं सामने आईं। 25 लाख का सम्पूर्ण भुगतान, छात्रों की सूची और सिटिंग प्लान के आधार पर लिया गया है, जबकि संबंधित लोगों को परीक्षा भवन में कितनी परीक्षाएं आयोजित की गईं, कितने पर्यवेक्षकों की ड्यूटी लगी और कितने छात्र परीक्षा में बैठे आदि की जानकारी व भुगतान के बाऊचर जमा करने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। भुगतान जल्दबाजी में होने के कारण पूरा मामला विवादों में आ गया है।
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