हाईकोर्ट ने जगदगुरु रामानंदचार्य संस्कृत यूनिवर्सिटी जयपुर के नौ सहायक प्रोफेसरों से नियुक्ति के बाद दो साल तक मिले नियमित वेतन की वसूली करने पर रोक लगाते हुए यूनिवर्सिटी रजिस्ट्रार व प्रमुख सचिव संस्कृत शिक्षा से जवाब तलब किया है। न्यायाधीश मनीष भंडारी ने यह अंतरिम आदेश प्रार्थी डॉ.संदीप जोशी व आठ अन्य की याचिका पर दिए।
एडवोकेट तनवीर अहमद ने बताया कि प्रार्थियों की नियुक्ति 2005 के विज्ञापन के तहत जनवरी 2006 में हुई थीं। इस समय तक नई नियुक्ति वालों को प्रोबेशनकाल में स्थाई वेतन देने की अधिसूचना जारी नहीं हुई थी। इस कारण प्रार्थियों को प्रोबेशनकाल में नियमित वेतन श्रृखला के तहत वेतन मिल रहा था। सरकार ने यूनिवर्सिटी को 29 अप्रेल,2006 को पत्र लिखकर प्रोबेशनकाल में स्थाई वेतन देने का नियम लागू करने को कहा। यूनिवर्सिटी ने नया नियम सितंबर 2006 से आगामी नियुक्तियों के लिए लागू किया।
इसके बाद प्रार्थियों को नियमित तौर पर वार्षिक वेतन वृद्धि मिलती रहीं। लेकिन यूनिवर्सिटी ने तीसरे साल में स्थाई वेतन के स्थान पर नियमित वेतन देने को गलती बताते हुए प्रार्थियों की वार्षिक वेतन वृद्धि रोक ली। वित्त विभाग ने 2010 में प्रार्थियों को नियमित वेतन देने को सही बताया व कहा कि संशोधित नियम प्रार्थियों पर लागू नहीं होता है। लेकिन यूनिवर्सिटी ने वित्त विभाग के इस पत्र को तीन साल तक उजागर ही नहीं किया। छठे वेतन आयोग के अनुसार प्रार्थियों का वेतन स्थिरीकरण करने के साथ दो साल तक दिए गए नियमित वेतन की रिकवरी निकाल दी।
प्रार्थियों ने रिकवरी नोटिस को चुनौती देते हुए कहा है कि जिस अधिसूचना के आधार पर यूनिवर्सिटी वसूली कर रही है उसे हाईकोर्ट असंवैधानिक घोषित कर रदद् कर चुका है और ना ही उक्त अधिसूचना प्रार्थियों पर लागू होती है। यदि यह माना भी जाए कि उक्त अधिसूचना प्रार्थियों पर लागू होती है तो भी हाईकोर्ट इसे असंवैधानिक घोषित कर रदद् कर चुका है। एेसे में उनसे वसूली नहीं की जा सकती।
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