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ग्वालियर

ऐसे शुरू हुआ था छठ पर्व, ये हैं पौराणिक एवं प्रचलित लोक कथाएं 

पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। 

ग्वालियरNov 04, 2016 / 03:08 pm

rishi jaiswal

chhath puja

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ग्वालियर। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं। पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। 

भक्ति और अध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्ययुक्त मूर्तियों की।



वहीं छठ पर्व के संबंध में पौराणिक मान्यता के अनुसार छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है, जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्राय: महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। यह पवित्र हृदय से सूर्य की आराधना करने का पर्व है जिसमें सूर्यदेव के प्रति गहरी आस्था व समर्पण का भाव होता है।



1. राम के राज्याभिषेक के बाद रामराज्य की स्थापना का संकल्प लेकर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्योदय के समय अपने अनुष्ठान को पूर्ण कर प्रभु से रामराज्य की स्थापना का आशीर्वाद प्राप्त किया था। तब से छठ का पर्व लोकप्रिय हो गया।

2. एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़ेे होकर सूर्य को अघ्र्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्घा बना था। आज भी छठ में अघ्र्य दान की यही पद्घति प्रचलित है।


3. कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।


4. एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे।

उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।



यह हैं नियम
1. व्रत रखने वाली महिला को ‘परवैतिन’ भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है।
2. भोजन के साथ ही सुखद शैया का भी त्याग किया जाता है। 
3. छठ पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती द्वारा फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है।
4. इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं, पर व्रती बिना सिलाई किए कपड़े पहनते हैं।



5. महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं।
6. इस व्रत को शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहिता महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए।
7. घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।

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