इन 4 माह को व्रतों का माह इसलिए कहा गया है, क्योंकि इस दौरान हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इनमें भी प्रथम माह तो सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस संपूर्ण माह व्यक्ति को जहां तक हो सके व्रत का पालन करना चाहिए।
जानकारों के अनुसार ऐसा नहीं कि सिर्फ सोमवार को ही उपवास किया और बाकी वार खूब खाया। उपवास में भी ऐसे नहीं कि साबूदाने की खिचड़ी खा ली और खूब मजे से दिन बिता लिया। शास्त्रों में जो लिखा है उसी का पालन करना चाहिए। इस संपूर्ण माह फलाहार ही किया जाता है या फिर सिर्फ जल पीकर ही समय गुजारना होता है।
ये हैं 4 माह- श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक। चातुर्मास के प्रारंभ को ‘देवशयनी एकादशी’ कहा जाता है और अंत को ‘देवोत्थान एकादशी’।
इस दौरान यह चीजें न खाएं – इस दौरान दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है।
ये नियम पालें: इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। वैसे साधुओं के नियम कड़े होते हैं। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।
ये कार्य हैं वर्जित
इन 4 माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।
चातुर्मास में इन बातों का रखें ध्यान
1. शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोबर) का सेवन करें।
2. पापों के नाश व पुण्य प्राप्ति के लिए एक भुक्त (एक समय भोजन), अयाचित (बिना मांगा) भोजन या उपवास करने का व्रत ग्रहण करें।
3. तेल से बनी चीजों का सेवन न करें।
4. चातुर्मास में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहां तक हो सके, न करें।
5. इस दौरान पलंग पर सोना, पत्नी का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद, गुड़, हरी सब्जी, मूली एवं बैंगन भी नहीं खाना चाहिए।