ग्वालियर। एक बार अल्पना सरोदे मुझसे विवेकानंद नीडम में किसी विषय को लेकर चर्चा कर रही थीं, उसी समय दो जानवर आपस में झगड़ गए जिनमें एक घायल हो गया।
उन्होंने उक्त जानवर को देखा और मुझसे बोलीं कि पहले मैं उसका इलाज कर लूं, फिर हम बात करते हैं। घायल जानवर को प्राकृतिक इलाज के जरिए एक-दो दिन में ठीक किया। इसके बाद तो उन्होंने वहां प्राकृतिक चिकित्सा शुरू करा दी, वहां जानवरों के साथ-साथ घूमने आने वाले लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे एक नहीं सैकड़ों लोगों को बीमारियों से आराम मिला है।
उन्होंने योग सिखाकर लोगों को बीमारी से दूर रहने के लिए हर संभव शिक्षा दी, वहीं आदिवासी बच्चों की जिंदगी बदल दी। उनके द्वारा दी गई शिक्षा से कई योग शिक्षक बन गए हैं, उनमें से एक सिंगापुर में योग शिक्षक है। यह जानकारी मेला प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष व कई वर्षों से यहां नियमित रूप से जा रहे अनुराग बंसल ने दी।
हरियाली में बदली, मुरम की पहाड़ी
विवेकानंद नीडम में रहकर पीडि़तों की मदद करने वाले और योग शिक्षा देने वाले अनिल सरोदे बताते हैं, 24 फरवरी 1957 को इलाहाबाद में जन्मी अल्पना सरोदे में शुरुआत से ही गरीबों, आदिवासी और पीडि़तों की मदद करने की भावना थी।
सन् 1971 में इलाहाबाद विवि से ग्रेजुएशन करने के बाद विवेकानंद केंद्र की जीवन वृत्त योजना के अंतर्गत समर्पित कार्यकर्ता बनीं। मुंबई और महाराष्ट्र में काम करने के बाद 1976 में ग्वालियर आ गई थीं। उन्होंने विवेकानंद नीडम जो पहले मुरम की पहाड़ी के रूप थी, उसे हरियाली के रूप में बदलने के लिए दिन-रात एक किया, आज वह पहाड़ी हरी भरी दिखाई देती है। सन् 1994 में विवेकानंद नीडम बनकर तैयार हो गया।
पढ़ रहे हैं आदिवासी बच्चे
अनिल सरोदे ने बताया, सन् 1976 से व्यक्तित्व और युवा प्रेरणा शिविर, शिशु संस्कार शिविर, अभिव्यक्ति शिविर लगाए। अल्पना सरोदे ने नारायण सेवा के माध्यम से आदिवासी क्षेत्र में सेवा की शुरूआत की। उनके सेवा भाव का यह परिणाम है कि आज विवेकानंद नीडम में आदिवासी वर्ग के 15 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। उनका खर्चा विवेकानंद नीडम स्वयं उठाता है।
Hindi News / Gwalior / ग्वालियर के पुरखे: अल्पना सरोदे- दीदी ने बदली आदिवासी बच्चों की तकदीर