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ग्वालियर

ये क्या, रिफिल कराने की बजाय खरीद डालीं 60 करोड़ की कॉटरेज

जीवाजी विश्व विद्यालय के विभागों  में पुराने कॉटरेज कि स्थिति शून्य, जबकि वित्त विभाग में नए कॉटरेजों के बिलों की संख्या 10 साल में करोड़ों में पहुंची।

ग्वालियरMar 17, 2016 / 10:04 am

rishi jaiswal

jiwaji university

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ग्वालियर। जीवाजी यूनिवर्सिटी (जेयू) में डिजिटल प्रिंटर के कॉटरेज खरीदी में बड़ा गड़बड़ झाला सामने आया है। जिम्मेदार लोगों ने कॉटरेज को रिफिल कराने की जगह 10 साल में फिक्स फर्मों से 60 करोड़ के हजारों की संख्या में नए कॉटरेज खरीद डाले। पत्रिका ने जब सभी विभागों में पुराने कॉटरेज के बारे में पता किया तो स्थिति शून्य निकली, जबकि वित्त विभाग में बिलों की संख्या 10 साल में करोड़ों तक पहुंच चुकी है। 


मामले में गहनता से जाने पर पता चला कि यह खरीदी कागजों पर बिल बनाने के लिए की जा रही है। नाम न छापने की शर्त पर कर्मचारियों ने बताया, अफसर अपनी जरूरतों पर इस राशि का उपयोग करते हैं। गाडिय़ों की सर्विस, पेट्रोल, बच्चों की फीस, डीटीएच रिचार्ज आदि में यह राशि खर्च होती है। पत्रिका ने जब इस मामले में जिम्मेदारों से जवाब किया तो वह बचते नजर आए। 

ऐसे करते हैं गड़बड़
सूत्रों के अनुसार विभागों में जब भी किसी को पैसे की आवश्यकता होती है तो वह पांच हजार का बिल रजिस्ट्रार कार्यालय में कॉटरेज खरीदने के लिए जमा करा देता है। यहां बिल आसानी से पास होकर संबंधित फर्म के नाम चेक जारी हो जाता है। संबंधित फर्म सेटिंग से 500 रुपए काटकर बाकी 4500 रुपए संबंधित लोगों को कैश दे देती है। इन बिलों में आधे तो रजिस्टर्ड फर्म की जगह शहर के दुकानदारों से बनवाए जाते हैं। 


3 स्टेप से समझें घोटाले का पूरा खेल…
पहला स्टेप: एक कॉटरेज पांच से आठ साल चलती है, जबकि जेयू का हर डिपार्टमेंट हर महीने दो से तीन कॉटरेज खरीदता है। इन्हें रिफिल कराने की जगह नई कॉटरेज खरीदी जाती है। 
दूसरा स्टेप: नया कॉटरेज अपने कार्यकाल में एक हजार से 1500 और रिफिल के बाद वह दो से ढाई हजार प्रिंट निकालता है। कॉटरेज और कागज की सप्लाई का अनुपात मैच नहीं खाता है। 
तीसरा स्टेप: जेयू के स्टोर विभाग से पता चला एक साल में एक डिपार्टमेंट तीन से पांच पैकेट कागज तक खर्च करता है, जबकि कॉटरेज की संख्या से यह प्रति विभाग 30 से 40 पैकेट होना चाहिए। 


स्टोर और विभाग में रिकॉर्ड नहीं
पत्रिका ने बीते 10 साल में खरीदे गए कॉटरेज के स्टोर की बात की तो जिम्मेदार लोगों का कहना था कि इस्तेमाल करके कॉटरेज को फेंक दिया गया, जबकि कॉटरेज एक परमानेंट आर्टीकल है, जिसे फेंक नहीं सकते। उसको स्टोर कर बाद में बोली लगाकर बेचा जाता है। 

सभी जगह होता है रिफिल
पत्रिका की पड़ताल में सामने आया कि लेजर प्रिंटर की कॉटरेज सभी शासकीय संस्थानों के साथ निजी संस्थानों में रिफिल होती है, लेकिन जेयू में नया खरीदा जाता है, जिसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। अधिकारियों द्वारा इस तरह के मामलों की मॉनीटरिंग न किए जाने से जेयू को बीते 10 साल में करोड़ों का घाटा सहना पड़ा। 


“अगर कॉटरेज रिफिल होता है तो नया क्यों खरीदा जा रहा है। मामला गंभीर है। मैं कल ही सभी विभाागों से रिकॉर्ड मंगाता हूं। गड़बड़ी की जांच कर दोषी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।” 
डॉ. आनंद मिश्रा, कुलसचिव, जेयू 

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