500 साल पुराना है फर्रुखाबाद के गंगा घाटों का इतिहास, जानें पूरा सच
फर्रूखाबाद में कम्पिल से प्राचीन धारा बूढी गंगा से लेकर खुदागंज तक लगभग 36 विश्रांत घाट बने हुए थे। इन विश्रांतो का मुख्य उ़़देदश ब्रिटिश शासन काल के व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
फर्रुखाबाद। जिले की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। यहां का इतिहास भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है। फर्रूखाबाद में कम्पिल से प्राचीन धारा बूढी गंगा से लेकर खुदागंज तक लगभग 36 विश्रांत घाट बने हुए थे। इन विश्रांतो का मुख्य उ़़देदश ब्रिटिश शासन काल के व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। जिसमे कलकत्ता से लेकर गढमुक्तेश्वर तक व्यापारिक बडी नावें चला करती थी। जिनमे नमक,नील,सोरा, अफीम, कपड़ा, बर्तन के उद्योग का व्यापार होता उसी के साथ-साथ धार्मिक महत्व सांस्कृतिक गतिविधियों में मुगल बादशाहों सेठ, धन्ना सेठों ने विश्रांत घाटों का निर्माण कराया था।
विशेष पर्व जैसे गंगा मेला, माघ मेला, सामाजिक उत्सव शादी-विवाहों में इन घाटों पर अपार भीड लगा करती थी।कम्पिल का घाट मुगल बादशाह ने बनाया था। इसी प्रकार शमसाबाद की विश्रांत फर्रूखाबाद में झुन्नीलाल, सेठ शाह जी की विश्रांत, टोका घाट, पांचाल घाट, किला घाट, रानी घाट, सुन्दरपुर घाट, सिंगीरामपुर में मराठा परिवार की विश्रांते बहुत ही सुन्दर थी। लेकिन आज खण्डर पड़ी है।
गंगा दरवाजा से लेकर टोका घाट, नीवलपुर तक लगभग 200 प्राचीन मंदिर थे।जिनमे कीमती पत्थर व अष्टधातु की मूर्तियां थी जो आज दिखाई नहीं देती है।इन सभी मंदिरों का अस्तित्व नहीं रहा खण्डर बन गए और गांव के लोगों ने सुन्दर घाटों को भूसा, उपले भरकर गंदा कर दिया है।घाटों की विश्रांतो मे राजस्थानी, ईरानी, अवध शैली में लाल पत्थर से बनी हुई है। इनके गुंमदों में राजस्थान, अवध की चित्रकारी आज अपनी कहानी कह रही है। जिनमे धार्मिक चित्र रामायण, महाभारत, मुगलकाल के नवाबों के चित्र जिनमे लोक कलाओं, लोक जीवन, अतीत काल की गाथा बखान कर रही है। इनके खण्डर अवषेशों में अतीत की कलाओं को संरक्षण की आवश्यकता है। गंगा घाट पर एक मंदिर वर्तमान में पत्थर वाली मठिया या नादिया वाला मंदिर जिसमे लाल राजस्थानी पत्थर की उकेरी गई मृण मूर्तियां आज भी आध्यामिकता झलकती है। जिसमे शेष नाग की सईया पर विष्णु भगवान पृष्ठभूमि पर नवग्रह, रामायण कालीन सीताहरण, दुर्गा- शिव विवाह, ऐसे धार्मिक चित्र आकर्षण का केन्द्र है। मंदिर के चबुतरे के नीचे भाग पर लोक कला, लोक जीवन, लोक उत्सव, अंकित सामाजिक चित्रण है। मंदिर के उत्तरी दिशा में विशाल नादियां शिवभक्तों के प्रहरी के रूप मे दरवाजे पर खडा है।
पांचाल घाट नाम कैसे पड़ा
फर्रुखाबाद में गंगा जी का एक घाट था.. घटियाघाट। जो नाम लेने में अच्छा नहीं लगता था। इसलिए जिला अधिकारी नरेंद्र सिंह चौहान ने शासन के आदेश पर इस का नाम बदल कर पांचाल घाट रख दिया। रामकृष्ण जो इतिहास के जानकर है उनकी माने तो लगभग 55 वर्षो से इन सभी घाटों को गंगा ने छोड दिया है। जिस कारण विश्रांतो की एक मंजिल जमी दोंज हो गई है। और इतने प्राचीन विरासत को किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया जिसकी वजह से आज यह सब खण्डर हो रही है। पांचाल घाट पर इलाहाबाद की तरह ही माघ के महीने मे पूरे माह मेला लगा रहता है। इस मेले मे आस-पास के जिलो के लोग कल्पवास करते है। देश के हर कोने से दुकानदार अपनी दुकाने भी लगाते है। यदि इन सभी विश्रांतो को संरक्षण मिला होता तो इनका यह हाल नही होता जो हो रहा है।