नोटबंदी, डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू में कमी आने, यूएस फेड द्वारा ब्याज दर बढ़ाने की संभावना, यूएस इकोनॉमी से जुड़े आंकड़ों के बेहतर होने से और डोनाल्ड ट्रंप के अमरीकी राष्ट्रपति बनने के कारण स्टॉक मार्केट में हलचल थमने का नाम नहीं ले रही है। पिछले सप्ताह रुपया अमरीकी डॉलर के मुकाबले ६८.८५५ के रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था। माना जा रहा है कि ट्रंप द्वारा इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत जॉब पैदा करने वाले सेक्टर में खर्च से डॉलर और मजबूत और रुपया और कमजोर हो सकता है। नोटबंदी के असर के बारे में अभी भी चीजें साफ नहीं हो पा रही हैं। ऐसे में निवेशकों की चिंता बढ़ गई है। हालांकि नोटबंदी और डॉलर के बढ़ते दबाव के बीच कुछ सेक्टर ऐसे हैं, जहां निवेशकों के लिए अच्छे रिटर्न की संभावना बन रही है। ऐसे सेक्टर में ऑटो, टेक्सटाइल्स, आईटी , फार्मा, बैंकिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंश्योरेंस, यूटिलिटी सेक्टर, ऑयल एंड गैस जैसे सेक्टर शामिल हैं। ऑटो, टेक्सटाइल्स, आईटी, फार्मा जैसे सेक्टर एक्सपोर्ट ऑरिएंटेड है, इसलिए इन्हें रुपए के अवमूल्यन का लाभ मिलेगा। वहीं नोटबंदी के कारण इन्फ्रास्ट्रक्चर, बैंकिंग, यूटिलिटी जैसे सेक्टर की हालत अच्छी होने वाली है। हालांकि ट्रेडस्विफ्टब्रॉकिंगलिमिटेड के डायरेक्टर संंदीप जैन के अनुसार लॉन्ग टर्म में अधिकांश सेक्टर में अच्छे रिटर्न की संभावना है।
फार्मा, आईटी, टेक्सटाइल, ऑटो को लाभ
रुपए के अवमूल्यन से सबसे अधिक फायदा फार्मा, आईटी, टेक्सटाइल और ऑटो सेक्टर को मिलने की संभावना है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि आईटी सेक्टर अपना अधिकांश प्रॉफिट डॉलर में कमाता है। और डॉलर की वैल्यू में इजाफा का साफ मतलब रुपए में अधिक आय से है। यही बात फार्मा सेक्टर पर भी लागू होती है, क्योंकि इस सेक्टर की अधिकांश सेल्स एक्सपोर्ट से आती हैं। टेक्सटाइल्स और ऑटो को भी अवमूल्यन का फायदा मिलने की संभावना है। यही वजह है कि फार्मा और आईटी सेक्टर फंड्स ने पॉजिटिव रिटर्न देना शुरू कर दिया है।
फार्मा व आईटी के रिटर्न
पिछले एक सप्ताह में फार्मा सेक्टर फंड्स के रिटर्न में तेज इजाफा दर्ज किया गया। पिछले एक महीने के माइनस २.८५ फीसदी की तुलना में पिछले सप्ताह में इन फंड्स में लगभग २.४९ फीसदी का रिटर्न दिया गया। इसी तरह, टेक्नोलॉजी सेक्टर फंड्स का रिटर्न पिछले एक सप्ताह में लगभग ३.५७ फीसदी रहा, जबकि पिछले एक महीने में यह माइनस ०.१० फीसदी था।
बैंकिंग सेक्टर फंड्स हैं अच्छे विकल्प
नोटबंदी के कारण बैंकिंग सेक्टर फंड्स निवेशकों के लिए अच्छे विकल्प बन गए हैं। १०० फीसदी इन्क्रीमेंटल सीआरआर से इनकी चमक बेशक थोड़ी कम हो गई है। लेकिन यह आदेश सिर्फ १६ सितंबर से ११ नवंबर, २०१६ के बीच के लिए ही है। आरबीआई इस इन्क्रीमेंटल हाइक को हटा लेगा और मार्केट स्टैबिलाइजेशन बॉंन्ड्स यानी एमएसएस ला सकता है। ऐसे में निवेशकों को बैंकिंग फंड्स के निवेश को बनाए रखना चाहिए। क्योंकि अधिकांश एक्सपर्ट का मानना है कि नोटबंदी से बैंकिंग सेक्टर मजबूत होगा। एक्सपर्ट का यह भी मानना है कि अब लोग बैंकों से जरूरत के अनुसार ही अधिक पैसे निकालेंगे और अधिकांश पैसे बैंक में ही रखेंगे। इससे बैंकों के पास न सिर्फ पर्याप्त लिक्विडिटी होगी, बल्कि उसके फंड्स की कॉस्ट भी काफी कम हो जाएगी। इन सबके अलावा पीओएस से ट्रांजैक्शन बढऩे से बैंकों को मर्चेंट फीस मिलेगी और उसकी इनकम बढ़ेगी। आरबीआई के इस कदम से बैंकों द्वारा लिक्विडिटी में जबर्दस्त इजाफा के कारण ब्याज दरें अधिक कम करने की संभावना भी कम हो गई है।
पीएसयू, इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंश्योरेंस, ऑयल-गैस
पीएसयू, इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंश्योरेंस, ऑयल एंड गैस के साथ यूटिलिटी जैसे सेक्टर के भी अच्छे रहने की संभावना है। संदीप जैन के अनुसार, अब लोग भविष्य की सुरक्षा के लिए इंश्योरेंस की तरफ रुख करेंगे और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढऩे से पॉवर, गैस-ऑयल कंपनियों के अच्छे दिन आने तय हैं। जैन के अनुसार, निवेशकों के लिए पीएसयू कंपनियां सबसे अच्छे विकल्प हैं। अब सरकार के पास टैक्स कम्प्लाएंस बढऩे के कारण पैसे आएंगे, इससे पीएसयू कंपनियों की चांदी है। इसके अलावा, इनके विनिवेश की संभावना भी कम हो गई है।
नए निवेशकों को क्या करना चाहिए
जैन के अनुसार नए निवेशकों के लिए इन्फ्रा, बैंकिंग, इंश्योरेंस जैसे सेक्टर अच्छे हैं। अधिकांश एक्सपर्ट का मानना है कि शॉर्ट टर्म में भले ही फार्मा, आईटी और ऑटो समेत एक्सपोर्ट ऑरिएंटेड सेक्टर भी हलचल रहेेगी, लेकिन लॉन्ग टर्म में ये सेक्टर फायदे देंगे। इसीलिए शॉर्ट टर्म के लिए इन सेक्टर में निवेश करने वालों को सचेत रहते हुए इनसे निकलने की रणनीति पर काम करना चाहिए। लेकिन जिन लोगों ने लॉन्ग टर्म के लिए इन सेक्टर फंड्स में निवेश किया है, उन्हें बने रहना चाहिए और शॉर्ट टर्म के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
रुपया में क्यों है गिरावट
रुपए में गिरावट की सबसे बड़ी वजह यूएस इकोनॉमी के हालिया आंकड़ों का बेहतर रहना और यूएस फेड द्वारा रेट रिवाइज करना है। डोनाल्ड ट्रंप मिडिल क्लास की इनकम और रोजगार बढ़ाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक फोकस करेंगे। खर्च और लिक्विडिटी बढऩे से यूएस में मुद्रास्फीति बढ़ेगी। इससे आने वाले दिनों में यूएस फेड ब्याज दरों में वर्तमान अनुमानों से अधिक इजाफा करेगा। इससे यूएस डॉलर को मजबूती मिलेगी, जिसका खामियाजा भारतीय रुपए को भुगतना होगा। डॉलर में तभी कमजोरी आएगी, जब ट्रंप अपने वादों से मुकर जाएंगे या फिर वह ऐसी पॉलिसी अपनाएंगे, जिसका नुकसान यूए इकोनॉमी को होगा। हालांकि महंगाई का नियंत्रण में होना रुपए के पक्ष में जाता है।
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