नई दिल्ली. मौजूदा वर्ष में दलहन का रकबा बढ़ने, दालों का भंडारण बढ़ाने तथा विदेशों में दलहन की खेती कराने के सरकारी प्रयासों से आने वाले समय में गरीब की रसोई में एक बार फिर दाल का तड़का लगने की उम्मीद है। सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ ‘दाल- रोटी’ के लिए दिनभर कड़ी मेहनत करने वाले आम आदमी की थाली में एक बार फिर दाल की कटोरी आने की संभावना दिखाई दे रही है।
145 लाख हेक्टेयर में हुई दाल की बुआई
मौजूदा वर्ष में अभी तक 144.96 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुवाई की गई है, जबकि इससे पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह आंकड़ा 112.43 लाख हेक्टेयर रहा था। सरकार ने कि सानों को प्रोत्साहित करने के लिए मूंग की खरीद करने का निर्णय लिया है। उल्लेखनीय है कि कई वर्षों से मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित होता था, परंतु खरीद नहीं होती थी। इस वर्ष महाराष्ट्र एवं कर्नाटक के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद करने के प्रस्ताव आने पर कृषि मंत्रालय ने एक अक्टूबर से लागू होने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य को एक सितंबर से लागू कर दिया है और बाजार में मूंग आने के कारण खरीद के आदेश जारी कर दिए हैं।
विदेशी खेतों में भारत के लिए फसल
घरेलू स्तर पर दाल-दलहन की आपूर्ति करने के लिए सरकार विदेशों में भी खेती कराने का प्रयास कर रही है। इसके लिए ब्राजील, मोजाम्बिक, म्यांमार और कई अफ्रीकी देशों के साथ करार किया गया है। भारत घरेलू आपूर्ति के लिए आस्ट्रेलिया , म्यांमार, कनाडा तथा दक्षिणी अफ्रिकी देशों से दाल का आयात करता है। सरकार क्षेत्र, विस्तार और उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से रबी दलहन को बढ़ावा देने पर ध्यान दे रही है। इसके लिए 2013-14 में 16 राज्यों के 468 जिलों में खेती को बढ़ावा देने कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसे सभी 29 राज्यों के 638 जिलों में लागू किया गया।
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