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आगरा

सराफा हड़ताल : कारीगरों के लिए होली के रंग फीके

एक्साइज ड्यूटी के विरोध में चल रही सराफा व्यापारियों की हड़ताल के चलते सराफा कारीगर भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। ऐसे में होली मनाना अब उनके लिए दूर की बात नजर आ रहा है।

आगराMar 18, 2016 / 05:55 pm

Bhanu Pratap

Gold Maker

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आगरा। एक्साइज ड्यूटी के विरोध में तीन मार्च से चल रही सराफा व्यापारियों की हड़ताल से कारीगर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुके हैं। सराफा कारीगरों के लिए हड़ताल के चलते होली के रंग भी फीके पड़ते नजर आर हे हैं। काम न मिलने की वजह से घर की आर्थिक स्थिती काफी खराब हो चुकी है। महराष्ट्र और कोलकाता के कारीगर तो इस तंगी के चलते अपना बोरिया बिस्तर समेट कर अपने घरों के लिए निकल गए हैं।
रोज कुंआ खोदते और पीते पानी

सराफा कारीगर महेश ने बताया कि वह बोदला स्थित साईं ज्वैलर्स पर काम करते हैं। तीन मार्च से दुकान का शटर नहीं उठा है,ऐसे में घर पर बेकार ही बैठा हूं। ठेके पर काम करता हूं, सप्ताह के बाद भुगतान मिल जाता है, लेकिन 15 दिन की हड़ताल से घर का राशन भी खत्म हो गया है। वहीं शाहगंज स्थित गुरनानक ज्वैलर्स के कारीगर दीनदयाल का कहना है कि हमें तो रोज कुंआ खोदना है और पानी पीना है। प्रतिदिन के मेहनताने पर काम करते हैं। एक दिन मेहनताना न मिले, तो हालत खराब हो जाती है,यहां तो 15 दिन से बेकार बैठा हूं।
कोलकाता और महाराष्ट्र के कारीगर गए गांव

आगरा में साराफा का बड़ा कारोबार है। यहां पर कोलकाता और महाराष्ट्र के तकरीबन चार हजार कारीगर काम करते हैं। ये कारीगर किराए के मकानों में यहां रहते हैं। इन कारीगरों के सामने सराफा हड़ताल से बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। लालाजी से कुछ पैसे उधार लिए हैं, लेकिन उसमें भी कितने दिन खर्च चलाएंगे। किनारी बजार में काम करने वाले कोलकाता के कारीगर अरविंद बाबू का कहना है कि आधे से अधिक साथी आगरा छोड़कर चले गए हैं। खाने के लिए कुछ भी नहीं है, ऐसे में मकान का किराया कहां से भर पाएंगे।
कैसे मनाएंगे होली

सराफा व्यापारियों की हड़ताल के चलते कारीगरों के लिए आने वाली होली के रंग भी फीके पड़ते नजर आ रहे हैं। त्यौहारी सीजन में हर किसी को पैसे की जरूरत है। घर में तमाम खर्चे हैं,लेकिन इन कारीगरों के हाथ में कुछ भी नहीं है। आगरा की बात करें तो यहां कोलकाता, महाराष्ट्र के साथ आगरा के कारीगर मिलाकर कुल संख्या आठ हजार हैं। जो लोकल कारीगर हैं, वो इधर उधर से जुगाड़ कर भी ले रहे हैं, लेकिन सबसे अधिक समस्या बाहर के कारीगरों को हो रही है।

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