स्कूल में निकलवाते हैं झाड़ू…
हम अपने बच्चों को स्कूल में नहीं भेजेंगे साहब! वहां पर बच्चों से झाड़ू निकलवाते है…बर्तन साफ करवाते
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बीकानेर।हम अपने बच्चों को स्कूल में नहीं भेजेंगे साहब! वहां पर बच्चों से झाड़ू निकलवाते है…बर्तन साफ करवाते है…ऐसे-ऐसे काम करवाते है कि आपको क्या बताएं…। स्कूल भी घर से दूर है, बच्चों को लाने-ले जाने के लिए वाहन भी नहीं है। ऐसी स्थिति में बच्चों को कैसे स्कूल में डाले? कुछ इसी अंदाज में बयां की मेडिकल कॉलेज ग्राउंड के पीछे रहने वाले कूड़ा-कचरा बीनने वाले लोगों ने अपनी पीड़ा। उनकी पीड़ा सुनकर एकबारगी अधिकारी भी हक्के-बक्के रह गए। बाद में अधिकारियों ने स्थिति को भांपते हुए लोगों से समझाइश की।बुधवार सुबह अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी भूपसिंह तिवाड़ी और ब्लॉक शिक्षा अधिकारी बीकानेर कपिल भार्गव अपनी टीम के साथ मेडिकल कॉलेज ग्राउंड के पीछे कचरा-बीनने वालों के यहां पहुंचे। यहां अधिकारियों ने जैसे ही बच्चों के स्कूल भेजने की बात की, बच्चों की माताओं का गुस्से का गुबार फूट पड़ा।
उन्होंने अधिकारियों को घेर लिया और बच्चों को स्कूल नहीं भेजने के कारणों की झड़ी लगा दी। करीब घंटेभर की समझाइश के बाद वे मानी और बच्चों को स्कूल भेजने पर राजी हुई। इस पर अधिकारियों ने सभी ड्रॉप आउट बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ते हुए अभिभावकों से उन्हें स्कूल भेजने गुहार लगाई साथ ही नौ नए बच्चोंं के आवेदन भरे गए।
18 को स्कूल से जोड़ा
बुधवार अलसुबह शिक्षा विभाग के अधिकारियों का अमला उनकी झुग्गियों में पहुंचा। अधिकारियों ने वहां स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को चिन्हित किया। मौके पर ही बच्चों के फॉर्म भरे। पहले दिन नौ बच्चों को प्रवेश दिया गया। वहीं पूर्व में ड्रॉप आउट सभी 18 बच्चों को फिर स्कूल से जोड़ दिया गया।
खानापूर्ति करते हैं
सुखी देवी ने बताया कि हम गरीब है, इस वजह से हमारे बच्चों की कोई पूछ नहीं होती। दो-तीन साल पहले स्कूल गए थे। स्कूल वालों ने खानापूर्ति पूरी करने के लिए नाम नहीं काटे जबकि बच्चे स्कूल जाते ही नहीं हैं।
बच्चों से काम कराना गलत
स्कूलों में बच्चों से काम कराना गलत है। ऐसी शिकायत नहीं मिली है। अगर ऐसा हो रहा है तो गलत है। इस संबंध में आदेश जारी कर स्कूलों में बच्चों से काम नहीं कराने के लिए पाबंद किया जाएगा। राम अवतार व्यास, डीईओ प्रारंभिक शिक्षा बीकानेर
वाह रे अफसर! शाबासी की बजाय तरेर रहे आंखें
शिक्षा की रोशनी से वंचित बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने में नाकाम रहे शिक्षा विभाग के कथित जिम्मेदार अफसरों को किरण सोनी की कोशिश इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने शाबासी देने के बजाय आंखें तरेरने का काम बखूबी अंजाम दिया।
कचरा बीनने वालों की बस्ती में पहुंचे शिक्षा विभाग के नुमाइंदे किरण सोनी के सामाजिक सरोकार पर सरकारी नजरिये से उंगलियां उठाने लगे। यहां तक की उन्होंने किरण पर यह सवाल तक दाग दिए कि वह किस अधिकार से इन बच्चों को पढ़ाने की हिमाकत कर रही है। वैसे भी पढ़ाने का काम शिक्षा विभाग के लोगों का है, उनका नहीं। अधिकारियों के इस रवैये से महिला बेहद आहत हुई है। किरण ने यह आशंका जताई है कि गरीब बच्चों को पढ़ाने के बदले कहीं उसके साथ प्रशासनिक कार्यवाही न हो जाए?
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