भोपाल। साल तकरीबन गुजर गया। तमाम वादों-कोशिशों के बावजूद इस साल अपराध की रफ्तार नहीं थमी, साथ ही सड़क पर बेधड़क दौड़ते-लहराते वाहनों पर भी पुलिस की लगाम ढीली रही। वर्ष 2016 के पिछले ग्यारह महीनों में चाकू-गोली से राजधानी भोपाल में 66 लोगों को अपराधियों ने मौत के घाट उतार दिया। सड़क हादसों की बात करें तो ज्यादा डरावने आंकड़े हैं। रफ्तार और आगे निकलने की होड़ में शहर की सड़कों पर 248 जिंदगियों को रौंद दिया गया। सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की पड़ताल करने पर सामने आया कि ज्यादातर मामले तीखे मोड़, सन्नाटेदार रास्तों से जुड़े हैं। वहीं सबसे अधिक हादसे नशा कर वाहन चलाने के दौैरान हुए।
ट्रैफिक पुलिस की पड़ताल में यह बात सामने आई कि कई हादसे वाहन चालकों के मामूली लापरवाही के कारण हुए, जिनमें कई परिवारों के चिराग उजड़ गए। ये हालात तब हैं जब ट्रैफिक पुलिस शहर में जागरुकता के तमाम दावे कर रही है। ट्रैफिक इंजीनियरिंग के कारण हुई मौतों के बाद भी सीपीए, नगर निगम या पीडब्ल्यूडी ने कभी सुधार पर ध्यान नहीं दिया।
मरने वालों में 60 फीसदी युवा
सड़क हादसों में मरने वालों में सबसे अधिक युवा हैं। इनमें अधिकतर पढऩे-लिखने वाले छात्र हैं, जो अधिकतर दूसरे शहरों से राजधानी आए थे। कुल मौतों में युवाओं की संख्या 60 फीसदी से अधिक है। वहीं हत्या के मामलों में भी 70 फीसदी से अधिक युवा है। अपराध से अधिक सड़क हादसों में हो रही मौत को थामने सरकारी प्रयास लगातार विफल साबित हो रहे हैं। सालदर साल सड़क हादसे में मौतों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है।
19 ब्लैक स्पॉट ने छीने चिराग
राजधानी में करीब 19 ब्लैक स्पॉट हैं। प्रशासन ने मौत के इन चुनिंदा जगह पर थोड़ी-बहुत सुधार का प्रयास किया। लेकिन हादसों में कमी नहीं आई। इसके पीछे सड़क निर्माण एजेंसियों की लापरवाही से लेकर स्थानीय पुलिस प्रशासन कम जिम्मेदार नहीं है। ब्लैक स्पॉट में वह सुधार नहीं हुए जिनसे हादसों पर लगाम लग सके।
Hindi News / Bhopal / 2016: हथियारों से 68 जिंदगियां खत्म, सड़क हादसों ने ली 248 की जान