भोपाल। सदफ महमूद की खामोश आंखों में आशा की एक किरण है कि किसी दिन तो न्याय मिलेगा। यह न्याय ना सिर्फ उनके लिए होगा बल्कि उन सारी महिलाओं के लिए होगा जिनके सपने आज भी इन तीन कुटिल शब्द, तलाक तलाक तलाक से बिखर जाते हैं।
सदियों से चली आ रही इस इस पुरातन प्रथा की हाल ही में सदफ पीड़ित हुई है। सदफ आज भी अपने पति द्वारा दिए गए तलाकनामे को देखती हैं और उन्हें उसपर विश्वास नहीं होता है। आज वह अपने पिता के साथ कोह-ए-फिज़ा के अपने घर में रहती हैं और फिर बहुत ही लगन से अपने लिए एक नौकरी ढूंढ रही है जिससे कि वह अपने बच्चे की परवरिश कर सकें और कानूनी लड़ाई लड़ने के खर्चों को पूरा कर सकें।
अफसोस की बात है कि सदफ का यह अकेला ऐसा मामला नहीं है। सामाजिक समुदाय के बीच काम कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि हर महीने औसतन ऐसे दर्जन केस सामने आते हैं। इस ट्रिपल तलाक कानून का शिकार हुई महिलाओं में से ज्यादातर महिलाओं के पास तो वैध निकाहनामा या फिर तलाकनामा नहीं होता जिसके कारण उनके पास यह सबूत नहीं रह जाता कि उनकी कभी शादी हुई थी या फिर उनका कभी तलाक हुआ था। हालांकि इन कागज़ातों का होना इस परिदृश्य को बहुत ज्यादा नहीं बदल सकता है।
सदफ का कहना है कि उसका पति उसे दहेज के लिए बहुत ही प्रताड़ित किया करता, सिर्फ इतना ही नहीं, वह उसकी बातों को भी अनसुना कर दिया करता था सिर्फ इसलिए क्योंकि पहले से चली आ रही प्रथा के मुताबिक पति के पास ये हक होता है कि वह कभी भी तलाक तलाक तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। सदफ की समानता और न्याय के लिए की गई याचिका शरीयत कानून की जटिलताओं के बीच खोती जा रही है। सदफ ने ये आरोप लगाया है कि कोई भी मुस्लिम मौलवीय उसकी मदद नहीं करना चाहता और ना ही धर्म और कानून के बीच अंतर को सत्यापित करना चाहता है।
निचले सामाजिक स्तर ही नहीं, शिक्षित परिवार भी शामिल
ट्रिपल तलाक की यह प्रथा का अभ्यास सिर्फ निचले सामाजिक स्तर तक सीमित नहीं है। शिक्षित परिवारों में भी इस ट्रिपल तलाक की प्रथा को करने से कोई अपवाद नहीं हैं। शाइस्ता की शादी सईम से की गई थी। सईम, मुफ्ती अबुल कलाम के बेटे हैं। शादी के कुछ साल बाद, सईम ने तीन बार तलाक बोलकर शादी के इस बंधन को तो़ड़ दिया। शाइस्ता, जो कि आज अपने माता-पिता के घर में अपने दो बच्चों के साथ रहती हैं उन्हें विश्वास नहीं होता है कि उनका इतना शिक्षित ससुराल होने के बावजूद उन्हें इसका सामना करना पड़ा।
लोगों का क्या है कहना
ट्रिपल तलाक एक वैद्य प्रथा है। शरीयत में कहा गया है कि अगर तलाक तीन बार कह दिया जाए तो वह खुद में तलाक की पुष्टि कर देता है। शरीयत में कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता है। यह सिर्फ एक अभ्यास नहीं है, यह एक कानून है। अगर कोई ऐसा कहता है कि इसे बदला जा सकता है या फिर इसे छोड़ा जा सकता है तो वह गलत है।
मुफ्ती राशिद-उद-दीन, जाकिया इस्लामिया अरेबिया मदरसा
इनका कहना है…
इस तरह की बुरी अभ्यास को बैन कर देना चाहिए। यह एक पुराना कानून है जिसका लगातार दुरुपयोग किया जा रहा है। महिलाओं को व्यावहारिक रूप से बिना कोई वैध कारण के तलाक दिया जा रहा है। कई इस्लामी देशों ने इस अभ्यास को छोड़ दिया है। हमें भी एक समुदाय के रूप में आगे बढ़ना चाहिए और समय के साथ खुद को बदलना चाहिए।
– साफिया अख्तर, राज्य संयोजक, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन
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