भोपाल। मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) में हुई परीक्षाओं और उनमें फर्जी भर्तियों का नाम ही व्यापमं घोटाला है। यह घोटाला हर दिन सुर्खियों में बना रहता है। प्रदेश ही नहीं, बल्कि इस दागदार घोटाले से देश की सियासत में भी उबाल आता रहता है। इस घोटाले की गूँज जहां cm हाउस से राजभवन तक रही, वहीं कई मंत्री और कई बड़े अफसरों पर भी उंगलियां उठती रही।
व्यापमं घोटाला शिक्षा जगत में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला माना गया। इसमें 55 केस दर्ज हुए, 2,530 आरोपी बनाए गए और करीब 1,980 लोगों को गिरफ्तार किया गया। घोटाले का पर्दाफाश होने से लेकर अब तक 42 ऐसे लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है जो इस केस से ताल्लुक रखते थे। इसलिए यह आगे जाकर खूनी घोटाला के नाम से भी चर्चित हो गया।
कैसे शुरू हुआ घोटाला
2013 में डा. जगदीश सगर के पकड़े जाने के बाद इस मामले की परतें खुलती गईं। मेडिकल प्रवेश परीक्षा में धांधली की खबरें आईं। इसमें अभ्यर्थियों ने मेडिकल दाखिले में पास होने के लिए रिश्वत दी थी। परीक्षा में पास कराने का खेल चला और असली परीक्षार्थियों के स्थान पर दूसरों ने परीक्षा दे दी।
एक नजर में:व्यापम महाघोटाला
– केस: 55
– आरोपी: 2,530
– गिरफ्तारियां: 1,980
– फरार: 500 से अधिक
– मौतें: 48
यह थी सोची-समझी रणनीति
पहला तरीका
घोटालेबाजों ने रणनीति बनाकर घोटाले को अंजाम दिया। सबसे पहले आवेदन और प्रवेश पत्र में हेरफेर करते थे। प्रवेश पत्र में जन्म तिथि और रोल नंबर उस व्यक्ति का होता था, जिसे मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना होता था, लेकिन तस्वीर उस बहरूपिए की लगा देते थे, जो उस छात्र के स्थान पर परीक्षा देने पहुंचता था।
दूसरा तरीका:
घोटालेबाजों का दूसरा तरीका आंसरशीट को खाली छोड़ देना था, बाद में अभ्यर्थियों से परीक्षा में पास होने के बदले रिश्वत ली जाती थी, उसके बाद आंसरशीट को भर दिया जाता था।
निशाने पर रहे cm हाउस और राजभवन
मध्यप्रदेश कांग्रेस का कहना था कि इतना बड़ा घोटाला सरकार की शह के बगैर नहीं हो सकता। कांग्रेस का अब तक यही मानना है कि राज्यपाल रामनरेश यादव और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी इसमें घिरे हो सकते हैं। घोटाला उजागर होने के बाद से कांग्रेस पूरे प्रकरण की जांच cbi से कराने की मांग करती रही। आखिरकार, प्रदेश सरकार ने उसकी मांग को पिछली 7 जुलाई को मान लिया और जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपने के लिए कदम बढ़ा दिए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 9 जुलाई को जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया गया था।
महाघोटाले के प्रमुख आरोपी
1. लक्ष्मीकांत शर्मा, पूर्व शिक्षा मंत्री
2. धनराज यादव, राज्यपाल के पूर्व ओएसडी
3. आरके शिवहरे, डीआईजी
4. रामनरेश यादव, राज्यपाल
5. ओपी शुक्ला, लक्ष्मीकांत शर्मा के ओएसडी
व्यापमं करवाता है ये परीक्षाएं
मेडिकल, इंजीनियरिंग, पुलिस, नापतौल इंस्पेक्टर, शिक्षक, आरक्षक आदि।
10 साल पहले शुरू हो गई थी खबरें आना
2006 से ही व्यापक की भर्तियों और प्रवेश परीक्षाओं में गड़बड़ियों की खबरे आने लगी थीं, लेकिन खुलासा 2013 में डॉक्टर जगदीश सागर के पकड़े जाने के बाद हुआ। इसके बाद परतें खुलती गईं। जब यह महाघोटाला प्रकाश में आया तब तक मध्य प्रदेश के योग्य छात्रों की एक पूरी पीढ़ी इस घोटाले की भेंट चढ़ चुकी थी।
संदिग्ध हैं 2200 डॉक्टर्स
2008 से लेकर 2013 के बीच प्री मेडिकल टेस्ट में चुने गए 2200 डॉक्टर और अन्य अभ्यर्थी संदिग्ध हैं। इन्हें मिलाकर 3000 से अधिक आरोपी हैं। इस महाघोटाला की भेंट चढ़े कई छात्र-छात्राएं, माता-पिता, नेता, बिजनसमैन और दलाल टाइप के अधिकारी।
सीएम शिवराज सिंह ने स्वीकारा
cm शिवराज सिंह विधानसभा में स्वीकार कर चुके हैं कि 1000 भर्तियां अवैध रूप से हुईं हैं। कई मंत्री, IPS, राज्य पुलिस अधिकारी, RSS के नेताओं के करीबी, और तो और कांग्रेस नेताओं के नाम भी इस महाघोटाले में आ गए हैं।
महाघोटाले को उजागर करने वाले व्हीसल ब्लोअर आनंद राय का दावा है कि मुख्यमंत्री के करीबी राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त डॉ. अजय मेहता, सीएम के OSD प्रेम प्रसाद एवं उनकी बेटी भी आरोपी हैं। राज्यमंत्री गुलाब सिंह किरार और उनका बेटा शक्ति प्रताप सिंह भी आरोपी हैं। शक्ति का मेडिकल में चौथा रैंक था। व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक सुधीर सिंह भदौरिया अब तक गिरफ्त से दूर हैं। यह केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी माने जाते हैं। भदौरिया इंदौर के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज के निदेशक हैं।
चर्चा में रहे ये लोग
– MP के पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा 18 माह जेल में रहने के बाद 20 दिसंबर को जमानत पर रिहा हुए हैं।
– कांग्रेस नेता अरुण यादव ने आरोप लगाया था कि इस घोटाले में कथित रूप से जजों के बेटे और BJP से जुड़े नेताओं के बच्चों के नाम शामिल हैं। CM शिवराज सिंह की बहन की बेटी का भी 2012 में एडमिशन होने का आरोप लगाया गया।
– मध्य प्रदेश के राज्यपाल के बेटे की लाश भी मार्च माह में लखनऊ में संदिग्ध हालत में मिली थी।
15 साल में बन गए हजारों डाक्टर
माना जाता है कि यह घोटाला पिछले 15 सालों से चल रहा है। ऐसे में फर्जी तरीके से न जाने कितने डाक्टर, इंजीनियर, निरीक्षक बन गए। चिंता की बात यह भी रही कि जो छात्र डॉक्टर बनने लायक थे वे कुछ और कर रहे हैं। इस घोटाले ने एक पीढ़ी भ्रष्ट हो गई।