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भोपाल

मां से बिछड़े बाघ शावकों को..नया जीवन देने की कला में मध्यप्रदेश आगे

बाघों की संख्या के मामले में मध्यप्रदेश भले टाइगर स्टेट नहीं बन सका, लेकिन संरक्षण की इस कला का लोहा दुनियाभर के उन देशों ने माना जहां बाघ है या कभी रहे हैं।

भोपालJan 01, 2017 / 01:23 pm

sanjana kumar

Panna Tiger Reserve-3

Panna Tiger Reserve-3

राघवेंद्र चतुर्वेदी@भोपाल/कटनी। बाघों का संरक्षण, खासकर मां से बिछड़े नन्हे बाघ शावकों को नया जीवन देने के साथ ही उन्हे जंगल का कानून इंसानों द्वारा सिखाए जाने की कला में एमपी देश के दूसरे राज्यों से आगे है। मध्यप्रदेश के दो टाइगर रिजर्व कान्हा और बांधवगढ़ में इंसानी देखरेख में बाघ शावकों को पालने के लिए विकसित इंक्लोजर (बाड़ा) बने हैं।


ऐसे इंक्लोजर तो दूसरे टाइगर रिजर्व में भी हैं। कान्हा और बांधवगढ़ की खासियत यह है कि बाघिन मां की मौत के बाद 12 से ज्यादा नन्हे शावक यहां के इंक्लोजर पहुंचे। और बाहर निकलने के बाद खुले जंगल में उन बाघों के बीच अपनी बादशाहत बनाने में सफल रहे जिन्हे जंगल का कानून उनकी बाघिन मां ने सिखाया था। बाघों की संख्या के मामले में मध्यप्रदेश भले टाइगर स्टेट नहीं बन सका, लेकिन संरक्षण की इस कला का लोहा दुनियाभर के उन देशों ने माना जहां बाघ है या कभी रहे हैं।


सख्त प्रोटोकॉल का पालन
शा वकों को इंक्लोजर में पालने का प्रोटोकॉल सख्त होता है। इंक्लोजर से निकलने के बाद बाघ इंसानों के करीब न आएं इसके लिए प्रशिक्षण के दौरान पूरा प्रयास होता है कि शावक इंक्लोजर में इंसानों को न देखें। शावकों को शिकार के गुर सिखाने जीवित वन्यप्राणी उनके बाड़े में छोड़े जाते हैं। शावकों को वो हर बात सिखाई जाती है, जो उनकी मां उन्हे सिखाती। 


इंक्लोजर से निकलने वाले बाघ
कान्हा टाइगर रिजर्व में इंसानों द्वारा प्रशिक्षित बाघिन बीटी-5 को 13 नवंबर 2011 को पन्ना टाइगर रिजर्व पहुंची और वाइल्ड बाघों के साथ रहकर 2 बार शावकों को जन्म दिया। यहां प्रशिक्षित 1 नर बाघ को वनविहार, 1 मादा को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और 1 नर व 1 मादा बाघ को कान्हा में ही खुले जंगल में छोड़ा गया। पेंच और कान्हा के मुक्की रेंज में बाघिन की अचानक मौत के बाद कुछ माह पहले यहां 2 शावक लाए गए थे। 


बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में 19 मई 2010 को झोरझोरा बाघिन की मौत के बाद 2 शावकों को इंक्लोजर लाया गया। 19 जून 2012 को बाघ बीटी-1 इंक्लोजर से छलांग लगाकर खुले जंगल में चला गया। इस बाघ ने मगधी रेंज के एक एरिया में वर्तमान में भी अपनी बादशाहत कायम रखी है। बाघिन बीटी-4 को 7 जून 2014 को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व भेजा गया। 


बहेरहा इंक्लोजर में सितंबर 2009 में पतौर वाली बाघिन की मौत के बाद 3 शावक और 8 अगस्त 2014 को कनकटी बाघिन की बेटी और 27 मई 2014 को खितौली से 2 बाघ इंक्लोजर लाए गए। खितौली से लाए एक बाघ को 26 जून को वनविहार भोपाल और कनकटी बाघिन की बेटी को 11 मार्च 16 को संजय टाइगर रिजर्व भेजा गया।


देश में मध्यप्रदेश पहला राज्य
अनाथ बाघ शावकों को 2 से 3 साल तक इंक्लोजर में पालने के बाद प्राकृतिक आवास में सफलता पूर्वक स्थापित करने वाला मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य है। अन्य राज्यों में अध्ययन के बाद भी इसे दोहराया नहीं जा सका। बाघ संरक्षण के लिहाज से यह कारगर तकनीक मप्र में और विकसित हुआ। यह प्रयोग अब सुस्थापित प्रबंधन तकनीक बन गई है। 
– नरेंद्र कुमार, रिटायर्ड पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ मध्यप्रदेश। 


दूसरे देशों के विशेषज्ञों ने किया अध्ययन
मां से बिछड़े बाघ शावकों को पालने के लिए कान्हा और बांधवगढ़ में विकसित इंक्लोजर हैं। मलेशिया, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम सहित बाघ उपलब्धता वाले दूसरे देशों के विशेषज्ञ इंक्लोजर में शावकों को पालने की कला का अध्ययन कर चुके हैं। 
जीतेंद्र अग्रवाल, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ भोपाल। 

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