सावन का पहला सोमवार, कीजिए महादेव के अद्भुत शिवलिंग के दर्शन
उत्तर का सोमनाथ है भोजपुर का शिव मंदिर, बेजोड़ शिल्प, उच्चकोटि
की वास्तु और स्थापत्य कला का नायाब नमूना


भोपाल। उत्तर भारत के सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध भोजपुर का शिव मंदिर न सिर्फ आस्था का केन्द्र है, बल्कि बेजोड़ शिल्प, उच्चकोटि की वास्तुकला और स्थापत्य कला का भी यह नायाब नमूना है। 10 वीं शताब्दी के परमार राजा भोज द्वारा बनवाया गए इस मंदिर का गुम्बज अभी भी अधूरा है, लेकिन यहां स्थापित विशाल शिवलिंग एक ही पत्थर से बने विश्व के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है। मंदिर परिसर में ही पत्थरों पर उत्कीर्ण नक्शे इस बात के गवाह हैं कि सदियों पहले भी निर्माण कला किस तरह नक्शे बनाकर की जाती थी।
भोपाल के नजदीक होने के कारण ऎसा माना जाता है कि राजा भोज ने इस मंदिर का निर्माण 1010 से 1053 के बीच कराया था। उन्हीं के नाम पर इस स्थान को भोजपुर कहा गया तथा यहां स्थापित किया गया मंदिर भोजेश्वर मंदिर कहलाया। यह भी किवदंती है कि यह मंदिर द्वापरकालीन है और पांडवों ने इसका निर्माण अपनी मां कुंती के लिए कराया था, ताकि वे पूजा कर सकें। मंदिर परिसर में चट्टानों पर बने नक्शों को महाभारत में चक्रव्यूह की रचना से संबंधित भी माना जाता है।
एक ही पत्थर से बना है शिवलिंग
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से मात्र 32 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर, रायसेन जिले का हिस्सा है। बेतवा नदी के किनारे बसे छोटे से गांव के पास एक पहाड़ी पर दूर से ही यह मंदिर दिखाई दे जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन इस पुरास्मारक का रख रखाव किया जाता है। मंदिर की खासियत है कि यहां करीब 21 फीट ऊंचा और साढ़े 7 फीट व्यास वाला विशाल शिवलिंग एक ही पत्थर से बनाया गया है। इसके साथ ही करीब 40 वर्ग फीट की जलहरी बनी हुई है, जिस पर शिवलिंग स्थित है।
चार स्तंभों पर खड़ा है मंदिर
आयताकार मंदिर चार स्तंभों पर खड़ा हुआ है, लेकिन मंदिर का शिखर अपूर्ण है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर सुंदर पाषाण प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो यहां आने वाले दर्शनार्थियों का स्वागत करती प्रतीत होती हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मंदिर परिसर में खूबसूरत उद्यान विकसित कर पर्यटकों को यहां बैठने की व्यवस्था की है। लेकिन परिसर का अधिकांश भाग चट्टानों का ही है। इन चट्टानों पर कई जगह उत्कीर्ण मंदिर योजना से संबंधित नक्शे उत्कीर्ण हैं, जिनसे पता चलता है कि यहां मंदिर का मंडप, महामंडप और अन्य खूबसूरत निर्माण की योजना थी। पुरातत्व विभाग ने इन सभी नक्शों को धरोहर के रूप मे संरक्षित किया है।
स्क्रीन पर भी देते हैं जानकारी
यहां आने वाले पुराप्रेमियों और पर्यटकों को बेहतर तथा पुख्ता जानकारी देने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इंटरपिटेशन सेंटर स्थापित किया है। इसमें पर्यटकों को भोजपुर के इतिहास, कला, संस्कृति, मंदिर निर्माण की तकनीक और भोजपुर से जुड़ी तमाम रोचक जानकारियां स्क्रीन पर दिखाई जाती हैं। इसमें यह भी बताया जाता है कि कैसे एक-एक पत्थर को तराशकर भव्य मंदिरो का निर्माण होता था।
कैसे पहुंचें भोजपुर
इस पुराधरोहर और विख्यात मंदिर को देखने के लिए भारत के किसी भी कोने से हवाई या रेलमार्ग से मप्र की राजधानी भोपाल पहुंचना होगा। भोपाल से भोजपुर की दूरी 32 किलोमीटर है। घूमने के लिए निजी वाहन सबसे उपयुक्त रहते हैं। बसस्टेंड से भोपाल-मंडीदीप मार्ग पर चलते हुए भोजपुर उतरा जा सकता है। यहां से आटो भी मंदिर तक पहुंचा सकते हैं। ठहरने के लिए मंदिर के पास या भोजपुर में कोई उचित स्थान नहीं, भोपाल ही ठहरने के लिए सबसे उपयुक्त है।
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