(दीवार फिल्म देखकर कवि दुष्यंत कुमार ने अमिताभ को लिखा था पत्र, आज भी भोपाल के पांडुलिपि संग्रहालय में है सुरक्षित, हरिवंशराय बच्चन के भी पत्र संग्रहित हैं यहां, जया बच्चन आती हैं अक्सर पत्रों को देखने…।)
भोपाल। 70 का दशक में जब अमिताभ बच्चन की फिल्म दीवार रिलीज हुई, तो कवि दुष्यंत कुमार भी देखने गए। फिल्म देखकर जब वे लौटे तो बच्चन के मुरीद हो चुके थे। उन्होंने इस उभरते हुए कलाकार को पहचान लिया था। वे समझ गए थे कि आगे चलकर यही शख्स ‘सदी का महानायक’कहलाएगा। कवि दुष्यंत कुमार त्यागी भी उनके फेन हो गए थे। प्रिय अमित लिखकर पत्र भेजने वाले इस महान कवि का निधन 30 दिसंबर को हो गया था।
फिल्म ‘दीवार’देखने के बाद अमिताभ बच्चन को उन्होंने जो पत्र लिखा था वह भोपाल के दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय की शान माना जाता है। इसे देखने के लिए कई बार जया बच्चन भी आती रहती हैं। हर कवि, शायर इस पत्र को देखकर उसमें व्यक्त भाव को जानने को उत्सुक रहता है। यह पत्र दुष्यंत की पत्नी राजेश्वरी त्यागी ने भोपाल के इस संग्रहालय को दिया था।
तारीफ-ए-काबिल था अमित का अभिनय
दुष्यंत ने अमिताभ को संबोधित इस पत्र में उनके अभिनय की तारीफों के पुल बांध दिए थे। उन्होंने लिखा था कि अमित का अभिनय इतना अच्छा था कि ऐसा लगा ही नहीं कि वो अभिनय कर रहे हैं, उन्होंने अपना रोल इतने आत्म विश्वास के साथ निभाया कि वो सिर्फ और सिर्फ तारीफ-ए-काबिल है। उन्होंने पत्र में सदी के महानायक कहलाने का भाव व्यक्त किया था।
बच्चन से थे पारिवारिक संबंध
दुष्यंत कुमार ने उनकी तुलना उस जमाने के स्टार शशि कपूर और शत्रुघ्न से भी की थी। उन्होंने लिखा था कि शशि कपूर जैसा स्टार भी अमिताभ के आगे छोटा लग रहा था। उन्होंने अमिताभ से इलाहाबाद के दिनों का भी जिक्र किया कि वे हिन्दी के महान कवि हरिवंशराय बच्चन के घर भी जाया करते थे। दिल्ली के निवास पर भी कई बार गए, उस समय पता नहीं था कि हरिवंशराय का बेटा इस मुकाम पर पहुंच जाएगा और उन्हें एक यह पत्र लिखना पड़ेगा।
हरिवंश राय के भी 50 खत
यह पत्र दुष्यंत कुमार ने स्वयं के हाथों से लिखे हैं, जिसे टाइप कराकर अमिताभ बच्चन को भेजा गया था। भोपाल के पांडुलिपि संग्रहालय में हरिवंशराय बच्चन के हाथों से लिखे करीब 50 पत्र भी रखे हुए हैं। बताया जाता है कि इन्हीं पत्रों को देखने के लिए कई बार जया बच्चन भी संग्रहालय जा चुकी हैं। माना जाता है कि हरिवंश राय बच्चन और दुष्यंत अच्छे मित्र भी थे।
भोपाल आकाशवाणी में की नौकरी
दुष्यंत कुमार त्यागी का जन्म उत्तरप्रदेश के बिजनौर के पास राजपुर नवादा गांव में एक सितम्बर 1933 को हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने के बाद वे भोपाल आ गए। उनका यहां आकाशवाणी में जॉब लग गया। वे यहां असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे। दुष्यंत की दोस्ती कमलेश्वर, मार्कण्डेय से थी। मनमौजी और सहज स्वभाव के थे दुष्यंत। बाद में कमलेश्वर दुष्यंत के समधी बन गए।
बड़े शायरों में बनाया अलग मुकाम
जिस समय दुष्यंत ने साहित्य की दुनिया में कदम रखा था, उस समय भोपाल में दो शायर ताज भोपाली और क़ैफ़ भोपाली का राज था। यह गजल की दुनिया में सिरमौर थे। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय और गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का दौर था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन और धूमिल ही शेष थे। यही वह दौर था जब मात्र 42 साल के जीवन में दुष्यंत कुमार ने जो प्रसिद्धि अर्जित की, उसे आज भी याद किया जाता है। इस कवि ने कविता, गीत, गज़ल, काव्य नाटक, कथा आदि विधाओं में लेखन किया, लेकिन गजलों की लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को अलग-थलग कर दिया। प्रिय अमित लिखकर पत्र भेजने वाले दुष्यंत का 30 दिसंबर 1975 में भोपाल में निधन हो गया था।
आज भी पढ़ी जातीं हैं यह कृतियां
दुष्यंत ने एक कंठ विषपायी, सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का बसंत, छोटे-छोटे सवाल आदि किताबों का सृजन किया था।
दुष्यंत की इस कविता को कोई नहीं भूला
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
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