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भोपाल

ये है हमारी मलाला, कभी भैंस चराती थीं, जिद से डॉक्टर बनकर दिखाया

रिवाजों की बेडिय़ां भी ललिता को आगे बढऩे से नहीं रोक पाईं। बालिका वधु बनाने की कोशिशों को तोड़ दिया। 

भोपालJul 12, 2016 / 09:31 am

Anwar Khan

lalita jamre

lalita jamre

अनिल चौधरी @ भोपाल। मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के पाटी ब्लॉक का आदिवासी बहुल गांव लिंबी। यहां वाधिका वधू बनाने का रिवाज है। इसी गांव की एक लड़की ललिता जमरे तमाम सपनों को संजो रही थी। उसे पढऩा था, आगे बढऩा था। क्या पढऩा है-कैसे पढऩा है, यह नहीं मालूम था, बॉयोलॉजी को किसी लड़की का नाम समझती थी… क्योंकि कभी स्कूल के आंगन में पैर भी नहीं रखा था। सपनों में ललिता खुद को डॉक्टर देखती थी।


दकियानूसी रिवाज ने ललिता के पैर भी बांधे, सपनों के पंख नोंचने की कोशिश हुई, लेकिन वह हार माननने वाली नहीं थी। इस मोर्चे पर मां ने साथ दिखा। घर-बिरादरी के लोग भी खुश रहे, इसलिए स्कूल भेजने की शर्त रखी कि घर-चूल्हे का काम भी करना पड़ेगा। ललिता राजी हो गई, आगे बढ़ती गई। आज मेडिकल आफिसर है। ललिता ने बंदिशों को तोड़ा तो गांव में बदलाव की बयार बहने लगी है। ललिता ने गांव वालों को समझाया, बेटियों को पढ़ाने के लिए राजी किया।


सात भाई-बहनों में चौथे नंबर की ललिता बताती हैं कि बमुश्किल आठवी कक्षा पार करते ही सात फेरों के बंधन में बांधने की तैयारी थी। उम्र थी सिर्फ 13 बरस। घर में जैसे ही कहा कि अभी शादी नहीं करनी है तो बवाल हो गया। क्या-क्या नहीं सुना, लेकिन मां ने साथ दिया और पढऩे के लिए भोपाल पहुंच गई। इसके पहले भी रास्ता मुश्किल था। 


भोपाल की बैरसिया तहसील के धमर्रा में पदस्थ ललिता पाटी ब्लाक में डॉक्टर बनने वाली पहली आदिवासी बेटी हैं। ललिता की जिद पर मां ने शर्त रखी थी कि स्कूल भेज देंगे, लेकिन गाय-ढोर को चराना पड़ेगा, घर का काम निबटाना पड़ेगा। घर में नौ लोग थे और आमदनी के नाम पर मजदूर मां-बाप। स्कूल जाने लगी तो फीस का संकट था। ललिता छुट्टी के दिनों में मां-बाप के साथ मजदूरी करती थी। बहरहाल आगे की पढ़ाई के लिए वर्ष 2001 में भोपाल पहुंची तो एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।


दलित आदिवासी जागृति संगठन की माधुरी बेन और राकेश दीवान ने ललिता की कहानी सुनी तो एक ट्रस्ट के जरिए फीस के लिए रुपए मिल गए। ललिता ने एक अनाथ आश्रम के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। मकान के किराए के लिए एक आफिस में पार्टटाइम जॉब संभाली। कुछ लोग किताबों का इंतजाम कर देते थे। ललिता ने खुद को डॉक्टर बना ही लिया। अब वे जब गांव जाती हैं तो लड़कियों को पढऩे के लिए प्रेरित करती हैं। उनके परिजनों से बात करती हैं। शुरुआत में दिक्कत आई। रिवाजों में जकड़े लोग बदलना नहीं चाहते थे, लेकिन अब बयार बहने लगी है। सभी कहने लगे हैं कि ललिता डॉक्टर बन सकती है तो दूसरे बच्चे क्यों नहीं?

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