भोपाल। प्रशासनिक दृष्टि से प्रदेश में यह वर्ष उथल-पुथल भरा रहा। अफसर कारगुजारियों के कारण सुर्खियों में रहे, वहीं सरकार के काम-काज पर भी सवाल उठे। राज्यपाल और मुख्य सचिव का कार्यकाल भी इसी साल समाप्त हुआ। राज्य को बीपी सिंह के तौर पर नया मुख्य सचिव तो मिल गया, लेकिन नियमित राज्यपाल नहीं मिल सके। लोकायुक्त की नियुक्ति भी नहीं हो सकी।
बीपी सिंह बने मुख्य सचिव
मध्यप्रदेश को इस वर्ष नए मुख्य सचिव मिले। सिंह ने एक नवम्बर को मुख्य सचिव के तौर पर कार्यभार संभाला। अंटोनी डिसा के रिटायर होने के कारण यह पद रिक्त हुआ था। रिटायरमेंट के कुछ ही दिनों में डिसा का पुनर्वास भी राज्य सरकार ने कर दिया। इन्हें मध्यप्रदेश रियल स्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी का चेयरमैन बनाया गया।
आनंद मंत्रालय का गठन
मध्यप्रदेश देश में शायद एेसा पहला राज्य है, जहां आनंद मंत्रालय गठित किया गया। इसकी कमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पास रखी है। मंत्रालय का गठन मंत्रालय की जनता को खुशहाल और तनाव मुक्त बनाना है। साथी सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग विभाग का गठन भी हुआ। यह मंत्रालय छोटे एवं मझोले उद्योगों के लिए है।
घिरी सरकार
कुपोषण के मुद्दे पर राज्य सरकार चौतरफा घिरी। कुपोषण से लगातार बच्चों की मौतें हुईं। सरकार इसे मानने से इंकार करती रही, लेकिन खराब होती छवि के कारण सरकार को कुपोषण पर श्वेत-पत्र जारी करने का एेलान करना पड़ा।
पोषण आहार आपूर्ति की अंतरिम व्यवस्था और नए साल से नई व्यवस्था का निर्णय लिया गया। हालांकि अंतरिम व्यवस्था का मामला कोर्ट में पहुंचने से अटक गया।
नियुक्ति
लम्बे समय से रिक्त उप लोकायुक्त की नियुक्ति इसी वर्ष हुई। हाईकोर्ट जज रहे यूसी माहेश्वरी को राज्य का नया लोकायुक्त नियुक्त किया गया। राज्य में उप लोकायुक्त की नियुक्ति तो हो गई, लेकिन सरकार लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर सकी।
ग्लोबल इंवेस्टर्स
अक्टूबर माह में ग्लोबल इंवेस्टर्स समिट हुई। इंदौर में हुई इस समिट में देश-विदेश के उद्योगपति और निवेशक शामिल हुए। दो दिवसीय इस समिट में मध्?यप्रदेश सरकार को 5 लाख 62 हजार 847 करोड़ रुपए के 2630 इन्टेंशन टू इन्वेस्ट यानि निवेश के इरादे मिले।
आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में
राजभवन पूरे साल सुर्खियों में रहा। प्रमुख कारण राज्यपाल रामनरेश यादव का नाम व्यापमं घोटाले में आया। मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने लगातार हमला बोला, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा चुप्पी साधे रही।
बजट सत्र में कांग्रेस ने राज्यपाल को सदन में बोलने नहीं दिया। यादव का कार्यकाल पूरा हुआ। गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली को प्रभार मिला।
सोशल मीडिया से निपटे कलेक्टर
अजय गंगवार और सिबी चक्रवर्ती को सोशल मीडिया के कारण कलेक्टरी गंवाना पड़ी। गंगवार ने मोदी को लेकर फेसबुक पर पोस्ट किया था, जबकि चक्रवर्ती ने जयललिता को तामिलनाडु चुनाव में जीत बधाई दी थी। थप्पड़ के आरोप में प्रकाश जांगरे को दतिया की कलेक्टरी, आनंद शर्मा, मधुकर आग्नेय की कलेक्टरी छिनी।
एक्सपर्ट व्यू
इस साल प्रशासनिक कमजोरियां भी नजर आईं। अफसरों के बीच विवाद हुए। सरकार चाहती तो समय रहते इसे सुलझा सकती थी, लेकिन इस ओर ध्यान नहीं दिया, जिससे विवाद बढ़े। नेताओं और अफसरों के बीच भी भरोसे की कमी नजर आई। नेता यह कहते रहे कि अधिकारी नहीं सुनते, जबकि अफसर नेताओं पर आरोप लगाते रहे। हो यह कि नेता नीति बना दें और उसका क्रियान्वयन अफसरों को करने दें। रोज के कामकाज में राजनीतिक दखल नहीं होना चाहिए।
– एससी बेहार, पूर्व मुख्य सचिव
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