हर्ष पचौरी @ भोपाल। देरी से चल रही मेट्रो रेल को पटरी पर लाने की कवायद प्रदेश सरकार को काफी महंगी पड़ेगी। एमपी मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने प्रोजेक्ट कॉस्ट का जो गणित सरकार को दिखाया है वो वर्ष 2014 की पुरानी महंगाई और ब्याज दर पर आधारित है।
इसके तहत भोपाल के पहले फेज की लागत 6962.92 और इंदौर में 7100.50 करोड़ रुपए दर्शाई गई है। प्रोजेक्ट की लागत 2014 की महंगाई दर और जाइका से मिलने वाले 0.3 प्रतिशत ब्याज दर के आधार पर तय हुई थी। लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है।
जाइका ने लोन देने से इंकार कर दिया है और महंगाई औसत रूप से प्रतिवर्ष 10 फीसदी तक बढ़ती जा रही है। कर्ज के लिए एकमात्र सहारा एशियन डेवलपमेंट बैंक ने अब तक प्रदेश की जितनी भी परियोजनाओं में कर्ज दिया है उस पर 12 प्रतिशत से तक ब्याज वसूला है। साफ है वर्ष 2017 तक महंगाई दर 40 प्रतिशत और कर्ज पर महंगी ब्याज दर मिलाकर प्रोजेक्ट लगभग 52 प्रतिशत तक महंगा हो जाएगा। पहले फेज की नई लागत 14063.42 करोड़ रुपए की बजाए 21095.13 करोड़ रुपए होना तय है।
मेट्रो कार्पोरेशन का रिकवरी प्लान
एमपी मेट्रो रेल कार्पोरेशन की डीपीआर के मुताबिक प्रोजेक्ट पर 2016 से काम शुरू होना था और पहला फेज 2018 में बनकर तैयार होना था। 2019 से ऑपरेशन यानी संचालन शुरू होना था और 2044 तक प्रोजेक्ट की 80 प्रतिशत लागत वसूल होने का गणित दिखाया था।
जानकारों की राय में पहले फेज में अनुमानित यात्री संख्या बहुत अधिक आंकी गई है। लो फ्लोर की तरह यदि मेट्रो रेल को पर्याप्त यात्री नहीं मिले, तो मेट्रो कार्पोरेशन कर्ज में डूब सकता है। कर्ज पर केंद्र सरकार गारंटर बनेगी इसलिए ही वित्तीय जोखिम पर बहुत बारीकी से दिल्ली के मंत्रालय अध्ययन कर रहे हैं।
बेहद खर्चीले प्रोजेक्ट और कार्यकुशलता के लिहाज से मैंने मेट्रो रेल प्रोजेक्ट भारतीय रेलवे को सौंपने की अनुशंसा की थी। इसे लोकल एजेंसी के जरिए पूरा करना बड़ी चुनौती है।
बाबूलाल गौर, पूर्व गृहमंत्री
एडीबी से मिलने वाले कर्ज की ब्याज दर अभी तय नहीं हुई है। स्टेप लोन प्रोसेस के जरिए किस्तों में कर्ज की अदायगी की सुविधा मिलेगी। इसमें कहीं कोई दिक्कत नहीं आएगी।
जितेंद्र दुबे, ईएनसी, मेट्रो प्रोजेक्ट
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