भोपाल। सिंहस्थ की रौनक बढ़ाने वाले नागा साधु को देखकर आपको लगता होगा कि उनका जीवन बहुत ही आसान होता है। लेकिन अगर हम उनकी जीवन की गहराईयों को देखें तो पता चलता है कि उनका जीवन किसी कमांडो के जीवन के संघर्षों से कम नहीं होता। एक आम इंसान से एक नागा साधु बनना शायद हर किसी के बस की बात नहीं है।
जब कोई आम इंसान साधु बनने के लिए किसी अखाड़े में जाता है, तब उसे तुरंत उस अखाड़े में शामिल नहीं किया जाता है। उस व्यक्ति को अपने अखाड़े में शामिल करने से पहले अखाड़ा अपने स्तर पर ये तहकीकात करता है। वह पता लगाता है कि वह व्यक्ति साधु क्यों बनना चाहता है। इसके साथ ही उस व्यक्ति के परिवार की पूरी जानकारी ली जाती है। इसके बाद ही अखाड़ा ये निर्णय लेता है कि वह व्यक्ति साधु बनने के लिए सही है या नहीं। अगर अखाड़े को लगता है कि उस व्यक्ति को साधु बनाया जा सकता है तो उसे अखाड़े में शामिल कर लिया जाता है।
अखाड़े में शामिल करने के बाद उसकी ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है जिसमें 6 महीने से लेकर 12 साल तक का समय लग जाता है। इस परीक्षा को देने के लिए बिना दृढ़ निश्चय से ऐसा कर पाना मुमकिन ही ना हो।
कमांडो से कम नहीं होती ट्रेनिंग
नागा साधु बनने के लिए जो ट्रेनिंग दी जाती है वो किसी कमांडो से कम नहीं होती है। जिस तरह से मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग के बाद ब्लैक बेल्ट दिया जाता है, वैसे ही नागा साधुओं की ट्रेनिंग के लिए भी कई चरण होते हैं। एक चरण पास करने के बाद, उसे दूसरे चरण की परीक्षा के लिए भेज दिया जाता है। जब वह परीक्षा के सभी चरणों को पास कर लेते हैं तभी उन्हें दीक्षा देकर साधु के रूप में स्थापित किया जाता है।
दीक्षा लेने से पहले उन्हें खुद का पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करना पड़ता है। दीक्षा दिए जाने के बाद उनका पूरा रिकॉर्ड स्टाम्प पेपर पर दर्ज किया जाता है जिसमें गुरू के हस्ताक्षर करते हैं। इस स्टाम्प पेपर को उनकी पहचान के रूप में जाना जाता है।
Hindi News / Bhopal / कमांडो से कम नहीं होता नागा साधु का जीवन, दीक्षा देने से पहले होता है वैरीफिकेशन