भोपाल। सुप्रीम कोर्ट के जज व्यक्तिगत तौर पर कोई उपहार स्वीकार नहीं कर सकते हैं। उन्होंने खुद अपना रेजोल्यूशन-97 पास कर रखा है, जो साफ कहता है कि सुप्रीम कोर्ट के जज किसी से भी कोई उपहार स्वीकार नहीं कर सकते हैं। इतना ही नहीं, वह सामाजिक कार्यक्रमों से भी दूरी बनाकर रखेंगे। इस बात का भी साफ जिक्र इस रेजोल्यूशन में है। ऐसे में उन्हें व्यक्तिगत उपहार स्वीकारने से परहेज करना चाहिए।
यह कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और मध्यप्रदेश के लोकायुक्त रहे जस्टिस फैजानुद्दीन का। पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि जजों की रिट्रीट में जज या उनके परिवार के लोगों ने उपहार व्यक्तिगत तौर पर स्वीकारे या नहीं, उन्हें नहीं मालूम है। ऐसे में वह कोई सीधे टिप्पणी नहीं कर सकते हैं। लेकिन एक बात पूरी तरह से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी जज सीधे उपहार स्वीकार नहीं कर सकता है। जजों ने अपना रेजोल्यूशन खुद बना रखा है। उन्होंने जजों का बचाव करते हुए कहा कि कई दफा जजों को उपहार सीधे तौर पर न देकर उनके स्टाफ में मौजूद लोगों को दे दिए जाते हैं। बाद में जजों को मालूम होता है कि यह उपहार आया है।
ऐसे में जजों के सामने विचित्र स्थिति हो जाती है, वह चाहकर भी उपहार को वापस नहीं कर पाते हैं। लेकिन अगर कोई सीधे व्यक्तिगत उपहार स्वीकार रहा है तो यह पूरी तरह से गलत है।
यह राजाओं का दौर नहीं है, पैसे का सदुपयोग करो
जस्टिस फैजानुद्दीन ने कहा सरकार की ओर से दिए गए डिनर पर कहा कि यह परंपरा पुरानी है और पूरी बिरादरी के सम्मान में पहले ही डिनर होता आया है। लेकिन उपहार देने की बात अजीब है। उन्होंने चांदी के बर्तनों में खाना परोसने पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अब राजाओं का दौर नहीं है। पब्लिक का पैसा है, उसका सदुपयोग होना चाहिए। सरकार को इस बारे में एहतियात बरतनी चाहिए कि पैसे की फिजूलखर्ची न हो। चांदी के बर्तनों में खाना सिवाए फिजूलखर्ची कुछ भी नहीं है। हालांकि इसमें खाने वालों का कोई कसूर नहीं है। उन्हें तो न्योता मिला है, पत्तल में खिलाओ या चांदी की थाली में वह तो खाएंगे।
सरकार ने आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे की आरटीआई के जवाब में कहा है कि उपहार जजों सहित उनकी पत्नियों को दिए गए। सरकार ने मृगनयनी इम्पोरियम से एक लाख रुपए से ज्यादा के 46 उपहार खरीदकर देना बताया है।
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