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MP: यहां शिक्षा पर करोड़ों का खर्च, फिर भी साक्षर राज्यों में बहुत पीछे

पहले पानी की तरह बहाया पैसा, अब हाथ फैलाए घूम रही सरकार,  51 लाख को मार्च 2017 तक साक्षर करने का लक्ष्य 

भोपालSep 09, 2016 / 09:27 am

Anwar Khan

Education

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भोपाल। मध्यप्रदेश में करोड़ों के खर्च के बावजूद साक्षरता के हाल बेहाल है। राज्य को मार्च-2017 तक 51 लाख लोगों को साक्षर करने का लक्ष्य है, लेकिन हाल ये है कि अरबों की बर्बादी के बाद अब प्रदेश सरकार को पैसे लेने में ही पसीना आ रहा है। दो साल से बजट नहीं मिला। जिन प्रेरकों पर साक्षरता की जिम्मेदारी है, उन्हें पंद्रह महीने से वेतन नहीं मिला। सरकार ने केंद्र से 112 करोड़ मांगे, तो 60 करोड़ मिले। यह पैसा भी नाकाफी लग रहा है, लेकिन जैसे-तैसे सरकार साक्षर भारत के लिए मध्यप्रदेश को भी साक्षर बनाने के लिए डगमगाती हुई पगडंडी पर चल रही है। 




अभी एेसा
राज्य शिक्षा केंद्र के तहत प्रौढ़ शिक्षा के नाम से अलग अमला है। प्रौढ़ शिक्षा की बजाए साक्षर भारत के नाम से योजना काम कर रही है। मैदानी काम नहीं हो रहा है। सभी जिलों में प्रेरक नहीं रखे। सरकार को 500 करोड़ तक के बजट की जरूरत का आकलन है, पर जितना मांग रहे वह भी नहीं मिल रहा। इस साल 112 करोड़ मांगा, तो 60 करोड़ मिले। अब अगले साल के लिए 200 करोड़ मांगने की मंशा है।


literacy rate in india



यंू बदला परिदृश्य 
मध्यप्रदेश में वर्ष-1994 के पहले करोड़ों का बजट होता था। तब प्रौढ़ शिक्षा के तहत साक्षरता की अलख जगती थी। उस समय 200 करोड़ से ज्यादा की राशि प्रदेश को मिलती थी। गांवों में पढऩे के लिए किताब से लेकर लालटेन तक बंटती थी, पर धीरे-धीरे स्थिति बदली। प्रौढ़ शिक्षा संचालनालय सामाजिक न्याय विभाग से निकलकर शिक्षा विभाग में आ गया। साक्षरता अभियान बदलकर साक्षर भारत योजना हो गया। वर्ष-2012 से बजट का जो संकट बढ़ा तो हाल बुरे हो गए। पहले साल 50 करोड़ से ज्यादा का बजट मिला, तो उसके बाद 2014 और 2015 में कोई राशि ही नहीं मिली। जिन प्रेरकों को दो हजार रुपए महीने के लिए रखा था, उसे देने के लिए भी पैसा नहीं रहा। प्रेरकों को पंद्रह महीने पैसे नहीं मिले तो जाकर घर बैठ गए। पढ़ाना बंद हो गया और कागजों पर कक्षाएं चलती रही। परेशान होकर सरकार ने इस साल केंद्र में खूब भाग-दौड़ की तो 60 करोड़ रुपए मिले। इससे जैसे-तैसे प्रेरकों को मनाकर मैदानी काम शुरू हो सका है। 




नौ जिलों में नहीं
साक्षर भारत योजना प्रदेश के 42 जिलों में चल रही है। भोपाल, इंदौर, उज्जैन, रायसेन, शाजापुर, आगर-मालवा, होशंगाबाद, नरसिंहपुर और जबलपुर में यह योजना नहीं है। वजह यह कि इन जिलों में महिला साक्षरता 50 प्रतिशत से ज्यादा है। योजना में इससे कम महिला साक्षरता वाले जिले ही देशभर में शामिल किए गए हैं।


competition photo


एनजीओ की भूमिका
प्रदेश में भोपाल-इंदौर में साक्षरता के लिए दो सेंटर खोले गए हैं। इन सेंटर्स का संचालन एनजीओ को दिया गया है। इन्हें आर्थिक मदद देकर दोनों शहरों में साक्षरता के लिए काम होता है। 

लक्ष्य से पीछे प्रदेश
प्रदेश के लिए मार्च-2017 तक 51 लाख लोगों को साक्षर करने का लक्ष्य दिया गया था। इसमें 15 साल से अधिक उम्र वाले लोग शामिल हैं। अभी तक प्रदेश करीब 30 लाख लोगों तक पहुंच पाया है। इस साल दो चरणों में पहले नौ और फिर 11 लाख लोगों की परीक्षा ली गई है। अगली परीक्षा मार्च में होना है। प्रदेश सरकार का मानना है कि अगस्त 2017 तक लक्ष्य पूरा हो जाएगा। हालांकि इसमें बजट की दिक्कत सबसे बड़ी समस्या है।




नाकाफी इंतजाम
प्रदेश के इंतजाम मैदान से ज्यादा कागजों पर दौड़ रहे हैं। वेतन नहीं मिलने के कारण प्रेरक साक्षरता योजना को छोड़ दूसरे कामों में जुट गए है। जब कभी अफसर आते हैं तो प्रेरक हाजिर हो जाते हैं। सर्वशिक्षा की राशि से पूर्व में इस पर काम करने की कोशश की गई, लेकिन तकनीकी दिक्कतों से उस पर अमल नहीं किया गया। 




इनका कहना है…
साक्षर भारत के तहत मार्च-2017 तक 51 लाख लोगों को साक्षर करने का लक्ष्य है। इसमें बजट की दिक्कत हैं, हम काफी प्रयास कर रहे हैं। इस साल बजट मिला है उससे काम में गति आई है।
दीप्ति गौड़ मुखर्जी, आयुक्त, राज्य शिक्षा केंद्र, मप्र

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