भोपाल। प्रदेश की ब्लड बंैकों के लिए रक्तदान करने वाले लोग भले ही किसी की जिंदगी बचाने के लिए रक्त दान कर रहे हों। लेकिन प्रदेश सरकार और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही ऐसा होने नहीं दे रही है। ये लापरवाही उन लाखों लोगों के इलाज में बाधा बन रही है, जिन्हें प्लाजमा और ब्लड प्रोटीन की जरूरत है।
दरअसल प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों और कुछ जिला अस्पतालों में खून से निकलने वाला प्लाज्मा कचरे में फेंका जा रहा है। इससे बनने वाले प्रोटीन इंजेक्शन से लाखों लोगों को इलाज मिल सकता था। यही नहीं खुद सरकार भी इस प्लाजमा से हर साल 3 करोड़ 20 लाख रुपए की आय अर्जित कर सकती थी।
जिम्मेदारों की लापरवाही पर हैरान कर देंगे ये फैक्ट
* प्रदेश के सभी छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों के ब्लड बैंक में हर साल करीब 70 हजार यूनिट रक्त एकत्रित किया जाता है।
* यह रक्त स्वैच्छिक रक्तदान से एकत्र किया जाता है।
* इस रक्त से प्लाजमा को अलग कर लिया जाता है। छिंदवाड़ा, सतना समेत अन्य जिला अस्पतालों में करीब एक लाख यूनिट रक्त से प्लाज्मा निकाला जा रहा है।
* एक यूनिट रक्त में 200 एमएल प्लाज्मा होता है यानी, हर साल 20 हजार लीटर प्लाज्मा बनाया जाता है।
* एक लीटर प्लाज्मा की सरकारी दर 1600 रुपए है। इस तरह सरकार 3 करोड़ 20 लाख रुपए हर साल कमा सकती है।
* ब्लड प्रोटीन के एक थोक विक्रेता के मुताबिक प्रदेश में हर महीने 2500 से 5000 बॉटल ब्लड प्रोटीन लगता है।
* दो यूनिट ब्लड से एक बॉटल ब्लड प्रोटीन बनाया जा सकता है।
* एक बॉटल में 100 एमएल प्रोटीन होता है।
* प्रोटीन का इंजेक्शन बनाने वाली कंपनियां देश में कम हैं।
* करीब तीन साल पहले चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्लाज्मा बेचने के लिए मुंबई की एक कंपनी से बात कर तय किया था कि प्लाज्मा खरीदने के साथ ही कंपनी तय मात्रा में प्रोटीन के इंजेक्शन भी मेडिकल कॉलेजों को देगी।
* जबकि मप्र पब्लिक हेल्थ सप्लाई कॉरपोरेशन का गठन होने के बाद प्लाज्मा बेचने का अधिकार कॉरपोरेशन को मिल गया। नतीजा यह हुआ कि स्थिति में सुधार ही नहीं हो सका।
* प्लाज्मा से बनने वाले प्रोटीन के इंजेक्शन का ज्यादा उपयोग लिवर की बीमारी में होता है।
* एंटी रैबीज वैक्सीन के साथ भी इसे लगाया जाता है।
* जरूरत पडऩे पर प्लाजमा को सीधे भी मरीज को चढ़ाया जाता है।
* इंजेक्शन बनाने वाली कंपनियों को पर्याप्त प्लाज्मा न मिलने से 3500 रु. का इंजेक्शन 5 हजार रुपए से 7 हजार रुपए में मिल रहे हैं।
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