शाम को नहीं सुनें ये गीत, इन्हें सुनकर सैंकड़ों लोग कर चुके हैं आत्महत्या
एक जमाने में संगीत ही ऐसी विद्या था कि राग छेड़ा और दीपक जल गए, बादल बरसने को मजबूर हो गए। पर कई गंभीर रोगों की दवा बन रहा म्युजिक एक समय में कई लोगों को आत्महत्या करने को मजबूर कर चुका है…
भोपाल। एक तरफ लोग अपनी टेंशन दूर करने के लिए, कुछ मनोचिकित्सक मेंटली इलनेस को दूर करने के लिए, तो कुछ एजुकेशन सेंटर बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए म्यूजिक थैरेपी का इस्तेमाल कर रहे हैं। भोपाल में ही ऐसे कई संगीत शिक्षक हैं, जिन्होंने म्युजिक थैरेपी से मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को नया जीवन दिया। पर आपको जानकर हैरानी होगी कि कुछ गीत ऐसे भी हैं, जिन्हें सुनना खतरे से खाली नहीं…
एक जमाने में संगीत ही ऐसी विद्या था कि राग छेड़ा और दीपक जल गए, बादल बरसने को मजबूर हो गए। पर कई गंभीर रोगों की दवा बन रहा म्युजिक एक समय में कई लोगों को आत्महत्या करने को मजबूर कर चुका है। चौंक गए न…जानें क्या है माजरा…
इन गीतों को सुनने से बढ़ता है डिप्रेशन
एक रिसर्च के मुताबिक आजकल युवाओं में ग्रुप में बैठकर उदास गाने सुनने से भी डिप्रेशन का खतरा बढ़ रहा है। डॉक्टर्स का कहना है कि आजकल युवा पढ़ाई या कॅरियर के लिए अपने घर-परिवार से दूर रहते हैं। कुछ युवा सक्सेस नहीं होते या फिर प्रेम में असफल होते हैं, तो वे आत्महत्या कर लेते हैं। राजधानी में भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं। इनमें से ज्यादातर मामलों में देखा गया कि ये युवा विफलता के बाद उदासी भरे सॉन्ग सुनने के आदी हो चुके थे। इन सॉन्ग्स से वे डिप्रेशन से उबर ही नहीं पाते थे। इलाज के दौरान डॉक्टर्स को पता चलता था कि उनका पेशेंट अक्सर उदास सॉन्ग सुनता है। इनमें से कुछ केस ऐसे भी थे कि इन युवाओं ने आत्महत्या करने के कुछ मिनट पहले तक उदासी भरे सॉन्ग सुने।
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रिसर्च में सामने आया ये भी
एक रिसर्च में सामने आया कि हिन्दी फिल्मों के सॉन्ग जिनमें खासतौर पर गायक सहगल के भी कुछ गीत शामिल हैं। यही नहीं यदि कोई डिप्रेशन में है तो हिन्दी फिल्मों के कुछ पुराने और नए सॉन्ग्स भी डिप्रेशन को बढ़ाते हैं। डॉक्टर्स कहते हैं जितना डिप्रेशन गहरा होगा आत्महत्या की प्रवृत्ति उतनी ही तेजी से बढ़ती है।
म्यूजिक टीचर जेपी मारावी इस बारे में कहते हैं कि अच्छा म्यूजिक हर किसी को सुनना चाहिए। जो मन को अच्छा लगे। जो आपको पॉजीटिव फील कराता हो। एक रिसर्च बताती है कि उदासी भरे पुराने सॉन्ग सुनकर व्यक्ति अच्छा महसूस करता है। लेकिन यदि किसी को डिप्रेशन की प्रॉब्लम है, तो उसे नए या पुराने चाहे जो भी हों, ऐसे सॉन्ग बिल्कुल न सुनें।
जबकि म्यूजिक टीचर काकोली सरकार का कहना है कि हां वैज्ञानिक तरीके से आप यह कह सकते हैं कि शाम के समय हर कोई थका-हारा रहता है। इसलिए सेड सॉन्ग और उबाऊ, थकाऊ हो जाएंगे। इनसे बेहतर है कि आप पुराने रोमांटिक सॉन्ग सुनें, पॉजीटिविटी के लिए डांस वाले अच्छे सॉन्ग सुनना और भी बेहतर होगा।
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तब बैन हो गया था ये गीत
दुनियाभर के संगीत के इतिहास में कुछ गीत ऐसे भी थे, जिन्हें सुनते-सुनते ही सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या कर ली। यही नहीं एक गीत ऐसा भी बना, जो सिर्फ इसीलिए बैन कर दिया गया कि उसे सुनकर ही लोग आत्महत्या कर लेते थे। इस गीत को लिखने वाले गीतकार ने भी एक दिन आत्महत्या कर जिंदगी खत्म कर ली थी। इस शख्स का नाम था सेरेस हंगरी। वे हंगरी के ही रहने वाले थे। जानें आखिर उन्होंने ऐसा क्या लिखा था गीत में…
* सॉन्ग राइटर सेरेस की जो खुद परेशानियों से जूझ रहे थे।
* 34 साल के सेरेस हंगरी के रहने वाले थे, जिन्होनें यह गाना 1933 में लिखा था।
* एक गरीब परिवार जन्में सेरेस बचपन से ही बहुत होशियार थे, लेकिन गरीबी के चलते वह अपना मुक़ाम हासिल नही कर पाए।
* गरीबी के कारण उनका बचपन बहुत कठिनाइयों से गुजरा।
* उम्र के एक पड़ाव पर रेजसो सेरेस एक लड़की को अपना दिल बैठे।
* एक तरफ सेरेस गरीबी से जूझ रहे थे, तो दूसरी ओर प्रेम भी उनके लिए उस वक्त रोग बन गया, जब उनकी प्रेमिका उन्हें सिर्फ इसलिए छोड़कर चली गई, कि वे चाहती थीं सेरेस कुछ काम करें। जबकि सेरेस सिर्फ संगीत में रमना चाहते थे।
* कहा जाता है कि सेरेस की प्रेमिका ने बाद में आत्महत्या कर ली थी। जिसके बाद सेरेस इतने दुखी हुए कि एक गीत लिखा उदास रविवार।
इस गीत को सुनने के लिए यहाँ करें CLICK
* माना जाता है कि उनकी प्रेमिका के शव के पास एक नोट मिला था, जिसमें लिखा था उदास रविवार।
* सेरेस के इस उदास रविवार सॉन्ग को सुनकर सैकड़ों लोगों ने आत्महत्या की थी।
* यह गाना सुनकर इतनी आत्महत्याओं के कारण इस गाने का नाम उदास रविवार (SUNDAY IS GLOOMY) से बदलकर हंगरी सुसाइड सॉन्ग हो गया।
* उस समय इस गीत को बैन कर दिया गया था।
* सेरेस ने खुद भी आत्महत्या कर ली थी।
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