भोपाल। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल की एकादशी तक यानी चार महीने भगवान विष्णु शयनकाल की अवस्था में होते हैं। इस दौरान कोई शुभ कार्य जैसे, शादी, गृह प्रवेश या कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। 31 अक्टूबर को ये शयनकाल समाप्त हो जाएगा। यह देवशयनी एकादशी मंगलवार को है।
शुक्ल एकादशी यानि देवशयनी एकादशी…
शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस उपवास को सबसे श्रेष्ठ उपवास कहा जाता है। कहते हैं इसे करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस एकादशी पर भगवान शयन करते हैं। अगले चार महीने भक्तों को बहुत ही सावधानी से रहना होता है। अपनी जीवनचर्या और खानपान का खास ख्याल रखना होता है।
दरअसल, भगवान विष्णु इस दौरान पाताल लोक में शयन करते हैं इसलिए सभी शुभ कामों पर विराम लग जाता है। लेकिन जैसे ही ये समय खत्म होता है हर शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। इसलिए हिन्दुओं में इस दौरान विवाह नहीं होते हैं।
देवोत्थानी एकादशी के दिन से फिर प्रभु विष्णु सृष्टि का कार्यभार संभालेंगे। इन चार महीने तपस्वी कोई व्रत नहीं करते,भ्रमण नहीं करते। बल्कि एक ही जगह रहकर कुछ अनुशासन का पालन करते हैं। इस एकादशी पर शंखासुर दैत्य का संहार करने के बाद भगवान ने चार मास तक क्षीरसागर में शयन किया था और तभी से यह परंपरा बन गई है। कहा जाता है कि भगवान ने लंबे समय तक क्षीरसागर से युद्ध किया और फिर थकान मिटाने के लिए विश्राम करने चले गए थे।
हरिशयनी एकादशी…
इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु पाताल लोक में राजा बलि के यहां चार माह पहरा देने जाते हैं। देवशयनी एकादशी से सूर्य दक्षिणायण हो जाते हैं ऐसे में मुंडन, उपनयन संस्कार, भवन निर्माण, गृह प्रवेश और वैवाहिक संस्कार नहीं होते हैं। देव शयन के दौरान केवल देवी-देवताओं की आराधना, तपस्या, हवन-पूजन आदि कार्य होते हैं। इस दौरान धार्मिक आयोजन, कथा, हवन, अनुष्ठान आदि करने का विशेष महत्व होता है।
भगवान विष्णु के शयनकाल में चले जाने के बाद चार माह की अवधि में सृष्टि संचालन का जिम्मा शिव परिवार पर रहता है। इस दौरान पवित्र श्रावण मास आता है जिसमें एक माह तक भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है। इसके बाद आती है गणेश चतुर्थी। गणपति की स्थापना कर उनका पूजन किया जाता है तथा उसके पश्चात देवी दुर्गा की आराधना के नौ दिन शारदीय नवरात्रि आती है।
इसके बाद शुरू होता है चातुर्मास व्रत। इस दौरान भगवान विष्णु के व्रत किए जाते हैं। चातुर्मास के दौरान हरी पत्तेदार शाक-सब्जियां खाना प्रतिबंधित रहता है। मूली, बैंगन, गोभी, पालक आदि नहीं खाए जाते हैं। देवउठनी एकादशी पर अन्नकूट करके इन सब्जियों का सेवन प्रारंभ किया जाता है।
चार महीने में इन बातों का रखें खास ख्याल
1. खान-पान और दिनचर्या का खास ख्याल रखा जाता है। इस दौरान हरी सब्जियां खाने से परहेज होता है।
2. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के दिन जो भक्त भगवान विष्णु का कमल पुष्पों से पूजन करते हैं वे एक तरह से तीनों लोकों के देवताओं के पूजन का फल पाते हैं।
चातुर्मास के दौरान दीपदान एकादशी व्रत तथा पलाश के पत्तों पर भोजन करने वाले श्री हरि को अत्यधिक प्रिय होते हैं।
चातुर्मास में कुछ चीजों का परहेज करना चाहिए। जैसे सावन में साग, भादो में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दालों का त्याग करना चाहिए।
ग्यारस पर मंदिरों व घरों में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाती है।
4 जुलाई 2017 (मंगलवार)को देवशयनी एकादशी है। इसे पद्मा एकादशी भी कहते हैं। देवशयनी कहलाने का कारण भगवान विष्णु राजा बलि के यहां पाताल लोक में इस दिन से निवास करते हैं तथा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुन: बैकुण्ठ में आ जाते हैं। इस एकादशी से मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
एकादशी व्रत करने का यह है विधान…
– पहले दिन दशमी की संध्या से यह व्रत किया जाता है।
– कांसे का बर्तन, चना, उड़द, मसूर, शहद, शाक, पराया अन्न, तामसिक भोजन, गृहस्थ का प्रयोग निषिद्ध है।
– धरती पर चटाई बिछाकर सोना, ब्रह्मचर्य का पालन तथा सत्य आचरण करना चाहिए।
– दशमी की रात्रि को भगवान का भजन यथाशक्ति किया जाना चाहिए या अपने ईष्टदेव का जप भी कर सकते हैं। वैसे अभाव नहीं होता।
– एकादशी के दिन प्रात: उठकर दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का पूजन कर विष्णु सहस्रनाम तथा भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करना चाहिए।
– एकादशी की संध्या तक व्रत किया जाता है। विशेष विष्णु प्रायश्चित यज्ञ के लिए प्रशस्त समय माना जाता है। यज्ञ तथा एकादशी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होकर मनोकामना पूर्ण होती है।
– एकादशी के दूसरे या तीसरे दिन प्रदोष होता है। यह व्रत करने से एकादशी का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
– यदि शालिग्राम उपलब्ध हो तो उनका पूजन करें तथा लक्ष्मीजी का पूजन भी करें।
– दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक करें।
– दूध-दही, शहद, गौघृत तथा शर्करा मिलाकर अभिषेक करना चाहिए। दूध, दही व फल ग्राह्य हैं।
इस मंत्र द्वारा तुलसी की माला से पूजन कर सकते हैं :-
1. ॐ नमो नारायण।।
2. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।।
3. ॐ विष्णवे नम: इत्यादि। इति:।
मान्यता है कि इस तरह किया गया एकादशी का व्रत शीघ्र फलदायी है। यह व्रत करने से सभी पापों का नाश होकर समस्त मनोकामना पूर्ण होती है।