ब्लंडर है एनसीईआरटी की इस किताब में, आपके बच्चे पढ़ते हैं इसे तो बिगड़ जाएगी उनकी भाषा
एनसीईआरटी की किताबें आपके बच्चों को घटिया, हल्की और फूहड़ भाषा का ज्ञान करवा रही हैं। कक्षा एक की हिन्दी भाषा की प्रथम पुस्तक ‘रिमझिम1’ में ऐसी दर्जनों गलतियां हैं, जिन्हें देख-पढ़कर कोई भी अभिभावक दंग रह जाएगा। वह इन किताबों से अपने बच्चों को पढ़ाने के पक्ष में नहीं रह जाएगा।
भोपाल@अनिल चौधरी. स्कूलों में जिस एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाए जाने की लड़ाई वर्षों से लड़ी जा रही है, उसकी किताबें बच्चों को घटिया और फूहड़ भाषा का ज्ञान करवा रही हैं। कक्षा एक की हिन्दी भाषा की प्रथम पुस्तक ‘रिमझिम1’ में ऐसी दर्जनों गलतियां हैं, जिन्हें देख-पढ़कर कोई भी अभिभावक दंग रह जाएगा। वह इन किताबों से अपने बच्चों को पढ़ाने के पक्ष में नहीं रह जाएगा। इसमें हिन्दी वर्णमाला के स्वर, व्यंजन और संयुक्त स्वर के क्रम से लेकर उन्हें पढ़ाए जाने के तरीके जिस ढंग से बदले गए हैं, वह बच्चों को गलत ज्ञान करवा रहे हैं। कुछ वर्ण दिए ही नहीं हैं। इन्हें सिखाए जाने के तरीकों की बात तो दूर की कौड़ी है। वहीं, पहली कक्षा के बच्चों को मात्राओं का ज्ञान करवाने वाली कोई सामग्री एनसीईआरटी की किताब में नहीं है। इतना ही नहीं पूर्व में आने वाली किताबों में दी गई कविताएं और पाठ बच्चों को नैतिक, सामाजिक, व्यवाहारिक और संस्कारपूर्ण शिक्षा प्रदान करते थे, लेकिन हम जिस मौजूदा किताब की बात कर रहे हैं वो हल्के, अव्यवहारिक और अशोभनीय शब्दों का ज्ञान करवा रही है। यकीन मानिए जिन कथित शिक्षाविदों ने इस किताब को तैयार किया या जिस रचियेता ने ये कविताएं लिखी वे खुद अपने घर में इन शब्दों से परहेज करते होंगे। फिर लाखों स्कूली बच्चों को ये शब्द क्यों पढ़ाए जा रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये कथित शिक्षाविद् और रचियेता कुछ अलग करने के चक्कर में फूहड़ कर बैठे। एनसीईआरटी ने यह किताब 2012 में प्रकाशित की है।
बदल दिया अक्षरों का क्रम
एनसीईआरटी की पहली की इस किताब में हिन्दी वर्णमाला के अक्षरों का क्रम बदल दिया है। जैसे इसमें पहले ‘ई’ को दिया गया है। इसके बाद ‘इ’ का नंबर आता है। इसी तरह ‘ऊ’ पहले और ‘उ’ को बाद में दिया गया है। वहीं ‘औ’ को पहले और ‘ओ’ को बाद में दिया गया है। इस तरह के अव्यवस्थिति अक्षर ज्ञान के बाद हम बच्चों से मात्रा, शब्द, शब्दयुग्म और वाक्य की उम्मीद करते हैं तो उनके साथ अत्याचार होगा। दरअसल, बात जब मात्राओं के ज्ञान और बारहखड़ी की आती है तो उक्त क्रम में अक्षर ज्ञान हासिल करने वाले बच्चे बारहखड़ी में आने वाली मात्राओं को भी इसी क्रम में लिखेंगे। जो आगे की कक्षाओं में गलत मानी जाएगी। इसका नुकसान उन्हें होगा। उनके कोमल मन पर बुरा असर पढ़ेगा। जबकि, वे इस गलत क्रम के दोषी खुद नहीं हैं।
कविताओं में फूहड़ शब्द, नैतिक शिक्षा गायब
कक्षा पहली की इस किताब में एक कविता है ‘आम की टोकरी’। अब इसके कुछ अंश और शब्द पढि़ए, इनमें नैतिक शिक्षा आप ही खोजिए…
1. ‘छह साल की छोकरी, भर कर लाई टोकरी,
दिखा-दिखा कर टोकरी, हमें बुलाती छोकरी…’
2. कविता ‘ याऊं सो रही है’
‘ मूंछ मरोड़ो, पूंछ सिकोड़ो, नीचे उतरो, चीजें कुतरा,
आज हमारा, राज हमारा, करो तबाही, जो मनचाही’
3. कविता ‘पगड़ी’
‘हट्टी-कट्टी, मोटी-तगड़ी, मलकिन झगड़ी,
इतनी झगड़ी, इतनी झगड़ी, इतनी झगड़ी, इतनी झगड़ी,
तर गया मेल और तर गई पगड़ी…’
4. कविता ‘एक बुढिय़ा’
‘कहीं एक बुढिय़ा थी जिसका, नाम नहीं था कुछ भी
वह दिनभर खाली रहती थी, काम नहीं था कुछ भी
काम न होने से उसको आराम नहीं था कुछ भी
दोपहरी, दिन, रात, सबेरे, शाम नहीं था कुछ भी…’
5. कविता ‘भगदड़’
‘बुढिय़ा तब फिर निकली बाहर, बकरा घुसा तुरंत ही भीतर,
बुढिय़ा चली गिर गया मटका, तब तक वह बकरा भी सटका’
कहां है कविता के नियम
जिस रचना में स्वर, लय, मात्रा आदि व्यवस्थित हो उसे कविता की श्रेणी में रखा जाता है, लेकिन एनसीईआरटी की इस किताब में ऐसा कुछ नहीं है। ऊपर से छोकरी, बुढिय़ा, झगड़े, तबाही, सटका जैसे शब्द पढ़ाकर उनका गलत दिशाबोध कराया जा रहा है। इस किताब में शामिल शिक्षाविदों को आत्ममंथन करना चाहिए कि उनमें से किस-किस के परिवार में बच्चों को ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने की छूट है। उन्हें यह भी मंथन करने की जरूरत है कि ये रचनाएं बच्चें का कौन सी नैतिक शिक्षा दे रही हैं। यदि नहीं तो इन्हें पढ़ाए जाने का औचित्य क्या है? मंथन तो उस बोर्ड को भी करना चाहिए, जिसने ऐसे शिक्षाविदों का चयन किया जो देश के भविष्य को गलत ज्ञान करवा रहे हैं।
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