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मुनाफे के लिए ऐसे लूट रहे स्कूल, 300 की ड्रेस के वसूलते हैं 1000 रुपए

स्कूल ड्रेस बाजार में 300 रुपए कीमत की है, उस पर स्कूल का ठप्पा लगते ही दाम सीधे 1000 रुपए तक पहुंच जाते हैं। आप जानते हैं इसकी वजह?

भोपालJun 28, 2016 / 10:47 am

Anwar Khan

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भोपाल। स्कूल खुल चुके हैं और पेरेंट्स परेशान है कि अब स्कूल के रोज-रोज के खर्चे उनकी जेब काटेंगे। जो स्कूल ड्रेस बाजार में 300 रुपए कीमत की है, उस पर स्कूल का ठप्पा लगते ही दाम सीधे 1000 रुपए तक पहुंच जाते हैं।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्कूलों और ड्रेस बेचने वाले कारोबारियों के बीच गठजोड़ है, जिसे आज तक प्रशासन भी नहीं तोड़ पाया। स्कूल वाले जो ड्रेस कहते हैं, वो डे्रस खरीदना पेरेंट्स की मजबूरी बन जाता है। भोपाल में एक हजार स्कूल्स हैं, जो अपनी मनमर्जी से ड्रेस खरीदवाते हैं। आइए जानते हैं इस शिक्षा माफिया के गठजोड़ के बारे में…


ये बनाते स्कूली ड्रेस
– भोपाल में यूनिफॉर्म बनाने वाले छोटे बड़े करीब डेढ़ सौ सेंटर्स ने स्कूलों से गठजोड़ कर रखा है।
– पुराने शहर के निजी स्कूलों के लिए यूनिफॉर्म बनाने वाले एक कारोबारी साहिल खान ने बताया कि उनके पास 30 स्कूलों से ऑर्डर है। 
– यूनिफॉर्म पर स्कूल का मोनो जरूरी है और स्कूल से ही इसे उपलब्ध कराया जाता है। 
– वे खुद को बेहद छोटा कारोबारी बताते हैं, लेकिन एक जुलाई से पंद्रह जुलाई के बीच 50 लाख के कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं। 
– नए शहर के बड़े स्कूलों से अनुबंधित यूनिफॉर्म सेंटर्स की कमाई का आंकड़ा करोड़ों में है। 
– शहर में 325 बड़े स्कूल है। छोटे और मोहल्लों-गलियों में सिमटे निजी स्कूलों की संख्या करीब 700 है। 
– इनमें पांच लाख से अधिक नौनिहाल पढ़ते हैं और यूनिफार्म की मनमानी दरों से इन्हीं के अभिभावकों को जूझना पड़ता है।


सवा दो मीटर में पांचवीं के छात्र की यूनिफॉर्म
स्कूल यूनिफार्म की सिलाई करने वाले हरीश कुमार का कहना है कि पांचवी के छात्र की पेंट 95 सेंटीमीटर कपड़े में बन जाती है। इसके लिए जो कपड़ा उपयोग किया जाता है, उसकी क्वालिटी के अनुसार इतना बड़ा कपड़ा 100 रुपए में आ जाता है। सवा मीटर कपड़ा शर्ट में लगता है जो 80 रुपए में आ जाता है। 120 रुपए सिलाई मिलाकर यह यूनिफार्म 300 रुपए में बन जाती है।


स्कूल, दुकानदार के बीच बंटता है मुनाफा 
भोपाल में दिल्ली स्कूल यूनिफॉर्म नाम से यूनिफॉर्म विक्रेता का कहना है कि संस्थान का नाम भले ही दिल्ली स्कूल यूनिफॉर्म है, लेकिन वे सभी स्कूलों की यूनिफॉर्म तैयार करते हैं और सीधे अभिभावकों को देते हैं, जबकि सूत्रों के अनुसार स्कूलों की मंजूरी के बिना कोई भी उनकी यूनिफॉर्म नहीं बनाता। क्योंकि ऐसे में उसकी यूनिफॉर्म बिकेगी नहीं। लागत के बाद जो राशि बचती है, वह दुकानदार और स्कूल के बीच बंट जाती है।

सीधी बात: दीपक जोशी, स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री
सवाल: स्कूल यूनिफॉर्म का कारोबार जोरों पर है?
जवाब: हां, हमें भी लगातार इसकी शिकायतें मिली हैं।
सवाल: अब लगातार वाणिज्यिक कर विभाग यूनिफॉर्म बनाने वाली दुकानों पर छापे मार रहा है, शासन भी कुछ करेगा?
जवाब: शासन लगातार कोशिश कर रहा है कि अभिभावक अपनी पसंद और कीमत की स्कूल सामग्री खरीद सके। हम विभाग को फिर निर्देश देंगे कि इसकी मॉनिटरिंग कड़ी करें।
सवाल: शासन और विभाग लगातार स्कूल और ठेकेदारों का गठजोड़ तोडऩे का दावा करता है, लेकिन एेसा नहीं हो पा रहा?
जवाब: एेसा नहीं है, काफी सफलता मिली है, अब अभिभावक जागरूक हुए हैं। धीरे-धीरे ही हम दुरुस्त कर पाएंगे।

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