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भोपाल

‘मार्ग पर चले बगैर कोई पथिक गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता’

आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि नीति और न्याय के सिद्वांतों को जीवन में सदैव बनाए रखना चाहिए। नीति तथा न्याय ही एैसे दो शब्द है जो मानव जीवन में आवश्यक और अनिवार्य है।

भोपालJan 04, 2017 / 01:38 pm

Manish Gite

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सिलवानी/भोपाल. नीति और न्याय के सिद्वांतों को जीवन में सदैव बनाए रखना चाहिए। नीति तथा न्याय ही एैसे दो शब्द है जो मानव जीवन में आवश्यक और अनिवार्य है। दो अक्षरों से बने यह शब्द इंसान को वास्तविक जीवन से परिचित कराने के साथ ही सदमार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते है।

यह उपदेश आचार्य विद्यासागर महाराज ने व्यक्त किए। नियमित प्रवचन माला में उपस्थित श्रावकों को गुरु के संकेत के महिमा का विस्तार से वर्णन करते हुए न्याय नीति के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित कर रहे थे। प्रारंभ में श्रावकों के द्वारा आचार्य पूजन की गई।

आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने बताया कि मार्ग पर चले बगैर कोई भी पथिक गंतव्य मक की यात्रा पूर्ण नहीं कर सकता है। यात्रा को पूर्ण कर गंतव्य तक पहुंचना है तो बगैर किसी भटकाव या विश्राम के सतत चलने की प्रक्रिया को बनाए रखना होगा, तभी मंजिल को प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि मार्ग में चलते समय अनेक चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है। रास्ता अनुकूल न होने, खाई होने पर भी यात्रा को पूर्ण करना ही होगा।

आचार्यश्री ने बताया कि मोक्ष मार्ग के गुरु ऐसे होते हैं जो सभी को साथ लेकर के चलते हंै, साथ चलना है तो गुरु साथ देंगे। यह ध्यान रखना होगा कि गुरु की यात्रा कभी रुकती नहीं है सदैव ही चलती रहती है। गुरु की चाल के अनुसार चलोगे तो यात्रा में साथ साथ गुरु के चल सकोगे। वरना रास्ते में ही गुरु का साथ छूट जाएगा। गुरु मात्र संकेत ही देते हंै, गुरु के संकेतों को समझो। मोझ मार्ग को विस्तारित करते हुए उन्होंने बताया कि मोह से रहित ही मोझ मार्ग है। 

मोझ का यह मार्ग अपने आप में सबसे अलग है। मोझ मार्ग तक पहुंचाने में गुरुओं की भूमिका विशेष होती है। गुरु बनाए बगैर मोझ मार्ग पर कदम नहीं बढ़ाया जा सकता है। गुरु ही मोझ मार्ग पर ले जाने प्रेरित करने के साथ ही रास्ते का हमसफर भी होता है। श्रावक की आत्मा में बहुत विशाल शक्ति होती है। आत्मा की शक्ति को जानने वाला ही उसका उपयोग करता है, जो इस शक्ति से अंजान है वह उसका उपयोग नहीं कर सकते हैं। 

कार्य तो पूर्ण करना है तो सभी को छोटे छोटे कदम उठा कर बड़े से बड़े कार्य को पूर्ण किया जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि श्रावक जिम्मेदारी के साथ कदम आंगे बढ़ाएं, मंजिल तक स्वत: ही पहुंचा जा सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि कार्य को करने के लिए समयावधि तैयार करना होगी। तैयारी के साथ ही कार्य प्रारंभ किया जाना चाहिए, क्योंकि सामने रास्ता तैयार है, लेकिन उस रास्ते पर चलना प्रारंभ करना होगा। एक चाल एक दिशा में कदम उठाना चाहिए। सेनापति के अनुसार ही पंच परमेष्ठी हुआ करते हैं। 

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