सिलवानी/भोपाल। आप सभी भगवान के समोशरण में बैठे हैं। समोशरण का अर्थ सुनना और सुनाना नहीं है। बल्कि समोशरण में बैठने की मुद्रा ही मोक्ष मार्ग का संदेश देती है। अत: श्रावक को समोशरण में भगवान की ध्वनि को अंतर मन से सुन कर आत्म सात करना चाहिए न कि जल्दबाजी दिखानी चाहिए।
यह उपदेश राष्ट्रसंत, आचार्य विद्यासागर महाराज ने व्यक्त किए। आचार्यश्री के मुख से भगवान की वाणी को सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रावक उपस्थित रहें। आचार्यश्री ने बताया कि हम शब्दों को सुनकर ही मोझ मार्ग को समझना चाहते हैं, लेकिन मोक्ष मार्ग की नीति को समझना के लिए सुनना ही कारक नहीं हैं, लेकिन जीवन पर्यन्त समझने का प्रयास किया जाए तो भी जीवन कम पड़ जाता है।
आपने बताया कि भगवान के समोशरण में बैठे हैं और भगवान की दिव्य ध्वनि सुनना चाहते हैं, लेकिन बिजली गोल हो जाए तो मन विचलित हो जाता है, और यही विचलित मन दुकान पर पहुंच जाता है। श्रावक का तन तो समोशरण में बैठा है, लेकिन मन दुकान पर पहुंच गया है। ऐसे श्रावक कभी भी भगवान की दिव्य घ्वनि को आत्मसात नहीं कर सकते हैं।
अरविंद ने कराया आहार
आचार्यश्री विद्यासागर महाराज को पडग़ाहन कर आहार कराने का सौभाग्य अरविंद्र कुमार अमित कुमार जैन भाईजी परिवार को प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त आचार्य ज्ञान सागर महाराज के चित्र का अनावरण दिल्ली से आए रविंद्र कुमार जैन ने साथियों के साथ किया। जबकि दीप प्रज्ज्वलन ब्रम्हचारी नितिन भैया नरसिंहपुर के द्वारा किया गया।
Hindi News / Bhopal / आचार्य विद्यासागरजी बोले- सिर्फ शब्दों से मोक्ष मार्ग नहीं पाया जा सकता