भोपाल। प्रदेश में डॉक्टरों की कमी दूर करने चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की सीटें पांच हजार करने के प्लान पर काम शुरू कर दिया है। प्रदेश में सात नए सरकारी मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं। मौजूदा मेडिकल कॉलेजों में भी सीटें डेढ़ सौ से ढ़ाई सौ की जाएंगी। इस प्लान पर 2017 में काम शुरू होगा।
चार हजार सीटें तो वर्ष 2017 में ही मिलने की संभावना है। वर्ष 2018 में पांच हजार सीटें शुरू हो जाएंगी। इससे प्रदेश के छात्रों को मेडिकल कोर्स में दाखिले के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। अभी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस और बीडीएस की 3274 सीटें हैं।
संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. जीएस पटेल के अनुसार एमसीआई को अनुमति के लिए प्रस्ताव भेज दिया गया है। सभी कॉलेजों में इंफ्रास्ट्रक्चर जुटाया जा रहा है। खंडवा-दतिया में वर्ष 2017 से प्रवेश मिलने की उम्मीद है। सात निजी मेडिकल कॉलेज भी पाइपलाइन में हैं।
हर साल मिलेंगे 56 सुपरस्पेशलिस्ट
चार मेडिकल कॉलेजों में सुपरस्पेशलिटी पीजी कोर्स की 56 सीटें शुरू होंगी। इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और रीवा के मेडिकल कॉलेजों में इसके लिए डेढ़-डेढ़ सौ करोड़ से सुपरस्पेशलिटी अस्पताल बनाए जाएंगे। वर्ष 2017 में यह सुपरस्पेशलिटी अस्पताल शुरू हो सकते हैं। प्रदेश में अभी केवल ग्वालियर और भोपाल के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ही सुपरस्पेशलिटी पीजी कोर्स की सीटें हैं। संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. जीएस पटेल ने बताया कि चारों कॉलेजों में 7 सबजेक्ट के सुपरस्पेशलिटी कोर्स चलेंगे। हर कॉलेज में सुपरस्पेशलिटी कोर्स की 14-14 सीटें रहेंगी।
एेसे बढ़ेंगी सीटें
* सात नए सरकारी मेडिकल कॉलेज 750
* मौजूदा कॉलेजों में 250 सीटें होने से 450
* नए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों से सीटें 400
ये खुले कॉलेज
शहडोल, दतिया, रतलाम, खंडवा, शिवपुरी, छिंदवाड़ा और विदिशा।
अभी सीटों की स्थिति
* सरकारी मेडिकल में एमबीबीएस की सीटें- 800
(बीएमसी सागर सहित)
* सरकारी कॉलेज में बीडीएस सीटें- 40
* प्राइवेट कॉलेजों में एमबीबीएस की सीटें- 1397
* प्राइवेट कॉलेजों में बीडीएस की सीटें- 1137
* कुल उपलब्ध सीटें- 3374
एक्सपर्ट व्यू
समुचित उपचार मिले
हर नया साल नई उम्मीदें और सौगात लेकर आता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी कई उम्मीदें हैं। हमीदिया में जो कार्रवाई चल रही है वो अच्छा कदम है, जरूरत है इसे बनाए रखने की। अक्सर एेसा होता है कि अचानक कई सारे फैसले लिए जाते हैं, लेकिन बाद में वो एेसे ही खत्म हो जाते हैं। एम्स व बीएमएचआरसी की व्यवस्थाएं सुधरें। गरीब मरीजों को समुचित उपचार के लिए यहां वहां ना भटकना पड़े, एेसा काम हों।
डॉ. एनआर भंडारी, पूर्व संचालक, चिकित्सा शिक्षा विभाग
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