आगरा। चौधरी चरण सिंह को किसानों का मसीहा कहा जाता है। उन्हें किसानों से सबसे ज्यादा लगाव था, उन्होने किसानों और गांवों की उन्नति के लिए बहुत काम किया। चौधरी चरण सिंह ने अपना पूरा जीवन किसानों के लिए संघर्ष करने में लगा दिया। किसानों को ही देश का कर्णधार मानने वाले चरण सिंह ने उनके लिए कई आंदोलन किए। वरिष्ठ अधिवक्ता कुंवर शैलराज सिंह ने बताया कि उनके निधन के बाद किसान को बहुत बड़ी क्षति हुई, जिसे पूरा नहीं किया जा सकता है।
भाई भतीजावाल से नहीं था कोई नाता
वरिष्ठ अधिवक्ता कुंवर शैलराज सिंह ने किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह पर एक किताब लिखी है, जिसका नाम है संघर्षों से जूझते दीप स्तम्भ की गाथा। इस किताब में उन्होंने लिखा है कि किसानों की स्थिति ठीक करने पर चौधरी चरण सिंह बहुत जोर दिया करते थे। वे एक कद्धावर किसाना नेता के तौर पर जाने जाते थे साथ ही वे समाजसेवी और स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भाई-भतीजावाद, और भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करने के लिए जाने जाते थे।
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इसलिए मानते हैं किसान उन्हें मसीहा
चौधरी चरण सिंह ने गांव के जिस परिवेश में आंख खोली, वहां व्याप्त थी भयानक गरीबी और शोषणवादी व्यवस्था। एक ओर दिन रात खेत में खटता किसान और मजदूर और दूसरी ओर किसान के खून पसीने की फसल को कौडियों के भाव लगातार समृद्ध होता बिचौलिया। इस व्यवस्था को चौधरी चरण सिंह ने बदलने के लिए काम किया। आजादी के बाद 1948 में यूपी के मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने उन्हें अपना सचिव नियुक्ति किया। पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने 1951 में उन्हें जमींदारी उन्मूलन विधेयक तैयार करने का काम सौंपा। इस विधेयक ने किसानों को वर्षों की पीड़ा से मुक्त करा दिया। खेत जोतने वालों को ऐसा हक हासिल हुआ, जिससे बेदखल संभव नहीं था। उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय चौधरी चरण सिंह को ही जाता है। लोगों के बीच रहकर अपनी सरलता, सादगी और ईमानदारी से उन्होने बहुत लोकप्रियता हासिल की थी। 1978 में उनका निधन हो गया। उनके निधन से देश और खासकर किसानों की बहुत क्षति हुई। किसानों ने अपना सबसे लोकप्रिय नेता खो दिया।